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तीसरा विमानवाहक पोत मिलते ही भारत हो जाएगा मजबूत

समुद्री सीमाओं की रक्षा करने और आक्रामक कौशल को बढ़ावा देने के लिए भारतीय नौसेना (Indian Navy) के पास कम से कम तीन विमानवाहक पोत (aircraft carrier) होने चाहिए. वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट.

विमानवाहक पोत
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Published : Aug 5, 2021, 10:59 PM IST

नई दिल्ली : भारतीय नौसेना (आईएन) की प्राथमिकता सूची में पनडुब्बियां (submarines) नहीं हैं. ऐसे में भारत को कम से कम तीन युद्धपोतों की आवश्यकता है. एक उसके पास पहले से है. एक का निर्माण वह कर चुका है. ऐसे में उसे अनुभव का लाभ मिलेगा और तीसरे का निर्माण भी उसके लिए आसान होगा.

फिलहाल भारत आईएनएस विक्रमादित्य (INS Vikramaditya) का संचालन करता है, जो उसने नवंबर 2013 में रूस से अधिग्रहित किया था. बुधवार को भारत के पहले स्वदेश निर्मित विमानवाहक जहाज 'विक्रांत' (india's first indigenous aircraft carrier (IAC) Vikrant) का समुद्र में बहुप्रतीक्षित परीक्षण बुधवार को शुरू हो गया. यह देश में निर्मित सबसे बड़ा और विशालकाय युद्धपोत है. यह विमानवाहक जहाज करीब 262 मीटर लंबा और 62 मीटर चौड़ा है और इसे कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड ने निर्मित किया है. अभी तीसरे युद्धपोत का इंतजार है.

आईएनएस विक्रांत का समुद्री परीक्षण चल रहा है, जिसमें कुछ महीने लगने की उम्मीद है, इसे पूर्ण रूप से 2023 तक मिलने की उम्मीद है. युद्धपोत मामलों से अच्छी तरह से परिचित एक अधिकारी ने बताया कि IAC-1 के चालू होने के बाद भी कई परीक्षण होंगे जैसे एयरक्रॉफ्ट और हेलीकॉप्टरों में हथियार लोड करना. ये विमान उस पर दिन और रात में समुद्री परिस्थितियों में उड़ान भरेंगे या उतरेंगे, जिसमें फिटिंग या आयुध, हवाई संपत्ति को पार्क करना या उन्हें टो करना शामिल है.

मोटे तौर पर, IAC-1 के समुद्री परीक्षणों में 'ड्राफ्ट टेस्ट' (जहाज को सुरक्षित रूप से नेविगेट करने के लिए पानी की न्यूनतम गहराई निर्धारित करने के लिए IAC-1 में 30 मीटर का ड्राफ्ट होने की उम्मीद है), 'एंकरिंग' (लंगर को लगभग 80 मीटर तक गिराए जाने के बाद जहाज की गतिशील स्थिरता की जांच करने के लिए), 'स्टीयरिंग' (पैंतरेबाज़ी की जांच करने के लिए), इंजन की सहनशक्ति, गति परीक्षण, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का परीक्षण आदि जैसे मापदंड शामिल होंगे.

चीन और अमेरिका की ये स्थिति

जबकि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (PLAN) दो एयरक्राफ्ट कैरियर्स- शेडोंग (70,000 टन) और लियाओनिंग (67,500 टन) संचालित करती है, वहीं अमेरिका 11 'सुपर' एयरक्राफ्ट कैरियर्स का संचालन करता है. इन सभी का वजन 1,00,000 टन से अधिक है.

नेवी ने तीन युद्धपोतों की बताई है आवश्यकता

भारतीय नौसेना ने अपनी परिप्रेक्ष्य योजना (Perspective Plan) (1985-2000) में तीन विमान वाहकों की जरूरत बताई है, जिनमें से दो पूर्व और पश्चिम समुद्र तटों पर परिचालित हों, जबकि एक किसी भी समय रिफिट में हो सकता है. समुद्री क्षमता परिप्रेक्ष्य योजना (2012-27) में भी इसे दोहराया गया है.

परंपरागत रूप से उसे शक्तिशाली माना जाता है जो समुद्री क्षेत्र में मजबूत हो. विमान वाहक-जिसे चलते हवाईअड्डा प्लेटफार्मों के रूप में देखा जाता है जो बड़े फोर्स मल्टीप्लायर्स (huge force multipliers) माने जाते हैं. लेकिन हाल के दिनों में बैलिस्टिक मिसाइलों और हाइपरसोनिक हथियारों के युग में इन महंगी संपत्तियों के महत्व में उल्लेखनीय गिरावट आई है.

परीक्षण के तीन चरण

एक विमानवाहक पोत आमतौर पर परीक्षणों की तीन-चरण प्रक्रिया से गुजरता है. पहला डेक ट्रायल है जहां घाट में अंतर्देशीय उपकरणों और मशीनरी का परीक्षण किया जाता है, दूसरे चरण में समुद्र परीक्षण शामिल होता है जो निर्माताओं द्वारा किया जाता है- जो इस मामले में सीएसएल है- जबकि तीसरे चरण में स्वीकृति परीक्षण शामिल हैं जो हैं डिलीवरी से ठीक पहले खरीदार द्वारा किया जाता है.

पढ़ें- भारत के पहले स्वदेश निर्मित विमानवाहक जहाज विक्रांत का समुद्र में परीक्षण शुरू

नई दिल्ली : भारतीय नौसेना (आईएन) की प्राथमिकता सूची में पनडुब्बियां (submarines) नहीं हैं. ऐसे में भारत को कम से कम तीन युद्धपोतों की आवश्यकता है. एक उसके पास पहले से है. एक का निर्माण वह कर चुका है. ऐसे में उसे अनुभव का लाभ मिलेगा और तीसरे का निर्माण भी उसके लिए आसान होगा.

फिलहाल भारत आईएनएस विक्रमादित्य (INS Vikramaditya) का संचालन करता है, जो उसने नवंबर 2013 में रूस से अधिग्रहित किया था. बुधवार को भारत के पहले स्वदेश निर्मित विमानवाहक जहाज 'विक्रांत' (india's first indigenous aircraft carrier (IAC) Vikrant) का समुद्र में बहुप्रतीक्षित परीक्षण बुधवार को शुरू हो गया. यह देश में निर्मित सबसे बड़ा और विशालकाय युद्धपोत है. यह विमानवाहक जहाज करीब 262 मीटर लंबा और 62 मीटर चौड़ा है और इसे कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड ने निर्मित किया है. अभी तीसरे युद्धपोत का इंतजार है.

आईएनएस विक्रांत का समुद्री परीक्षण चल रहा है, जिसमें कुछ महीने लगने की उम्मीद है, इसे पूर्ण रूप से 2023 तक मिलने की उम्मीद है. युद्धपोत मामलों से अच्छी तरह से परिचित एक अधिकारी ने बताया कि IAC-1 के चालू होने के बाद भी कई परीक्षण होंगे जैसे एयरक्रॉफ्ट और हेलीकॉप्टरों में हथियार लोड करना. ये विमान उस पर दिन और रात में समुद्री परिस्थितियों में उड़ान भरेंगे या उतरेंगे, जिसमें फिटिंग या आयुध, हवाई संपत्ति को पार्क करना या उन्हें टो करना शामिल है.

मोटे तौर पर, IAC-1 के समुद्री परीक्षणों में 'ड्राफ्ट टेस्ट' (जहाज को सुरक्षित रूप से नेविगेट करने के लिए पानी की न्यूनतम गहराई निर्धारित करने के लिए IAC-1 में 30 मीटर का ड्राफ्ट होने की उम्मीद है), 'एंकरिंग' (लंगर को लगभग 80 मीटर तक गिराए जाने के बाद जहाज की गतिशील स्थिरता की जांच करने के लिए), 'स्टीयरिंग' (पैंतरेबाज़ी की जांच करने के लिए), इंजन की सहनशक्ति, गति परीक्षण, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का परीक्षण आदि जैसे मापदंड शामिल होंगे.

चीन और अमेरिका की ये स्थिति

जबकि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (PLAN) दो एयरक्राफ्ट कैरियर्स- शेडोंग (70,000 टन) और लियाओनिंग (67,500 टन) संचालित करती है, वहीं अमेरिका 11 'सुपर' एयरक्राफ्ट कैरियर्स का संचालन करता है. इन सभी का वजन 1,00,000 टन से अधिक है.

नेवी ने तीन युद्धपोतों की बताई है आवश्यकता

भारतीय नौसेना ने अपनी परिप्रेक्ष्य योजना (Perspective Plan) (1985-2000) में तीन विमान वाहकों की जरूरत बताई है, जिनमें से दो पूर्व और पश्चिम समुद्र तटों पर परिचालित हों, जबकि एक किसी भी समय रिफिट में हो सकता है. समुद्री क्षमता परिप्रेक्ष्य योजना (2012-27) में भी इसे दोहराया गया है.

परंपरागत रूप से उसे शक्तिशाली माना जाता है जो समुद्री क्षेत्र में मजबूत हो. विमान वाहक-जिसे चलते हवाईअड्डा प्लेटफार्मों के रूप में देखा जाता है जो बड़े फोर्स मल्टीप्लायर्स (huge force multipliers) माने जाते हैं. लेकिन हाल के दिनों में बैलिस्टिक मिसाइलों और हाइपरसोनिक हथियारों के युग में इन महंगी संपत्तियों के महत्व में उल्लेखनीय गिरावट आई है.

परीक्षण के तीन चरण

एक विमानवाहक पोत आमतौर पर परीक्षणों की तीन-चरण प्रक्रिया से गुजरता है. पहला डेक ट्रायल है जहां घाट में अंतर्देशीय उपकरणों और मशीनरी का परीक्षण किया जाता है, दूसरे चरण में समुद्र परीक्षण शामिल होता है जो निर्माताओं द्वारा किया जाता है- जो इस मामले में सीएसएल है- जबकि तीसरे चरण में स्वीकृति परीक्षण शामिल हैं जो हैं डिलीवरी से ठीक पहले खरीदार द्वारा किया जाता है.

पढ़ें- भारत के पहले स्वदेश निर्मित विमानवाहक जहाज विक्रांत का समुद्र में परीक्षण शुरू

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