जयपुर. राजस्थान में 2 साल बाद जंगलों में वन्यजीवों की गणना की जा रही है. सोमवार सुबह 8 बजे से राजस्थान के सभी जंगलों में 27 सेंचुरी में वन्यजीवों की गणना शुरू हो चुकी है. जंगलों में वाटर पॉइंट्स पर लगातार 24 घंटे निगरानी रखी जा रही है. वन कर्मियों के साथ वन्यजीव प्रेमी मचान पर बैठकर वन्यजीवों की गणना कर रहे हैं. मंगलवार सुबह 8 बजे तक वन्यजीवों की काउंटिंग जारी रहेगी. इसके बाद 30 मई तक वन्यजीव गणना के आंकड़े एकत्रित करके वन मुख्यालय अरण्य भवन भेजे जाएंगे.
वाटर होल पद्धति से वन्यजीवों की गणना की जा रही है. जंगलों में मचान पर बैठकर वन्यजीवों की 24 प्रजातियों की गणना की जा रही है. इस बार तकनीकी का भी उपयोग किया जा रहा है. कई जगह पर वाटर पॉइंट पर कैमरा ट्रैप भी लगाए गए हैं, जहां पानी पीने आने वाले वन्यजीवों की फोटो एविडेंस के साथ कैमरे में कैद होगी. कोरोना काल से पहले वन विभाग ने वन्यजीवों के आंकड़े जारी किए थे. अब दो साल बाद जंगलों में वन्यजीवों के हालात पता चल सकेंगे.
प्रदेश में रणथंबोर, सरिस्का, मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में वन्यजीवों की गणना एनटीसीए प्रोटोकॉल से की जाती है. ऐसे में इन टाइगर रिजर्व के अलावा 27 सेंचुरी क्षेत्र में वन्यजीवों को वाटर होल सेंसस के जरिए गिना जाता है. इस साल वन्यजीव गणना में पैंथर, भालू और भेड़ियों की तादाद पर नजर रहेगी. इसके साथ ही जंगलों में नीलगाय, सियागोश, चौसिंगा जैसे वन्यजीवों की वास्तविक स्थिति का भी पता लग पाएगा.
पूर्णिमा के दिन होती है वन्यजीव गणना: झालाना इंचार्ज जोगेंद्र सिंह शेखावत के मुताबिक वन्यजीव गणना हमेशा पूर्णिमा को ही की जाती है. क्योंकि पूर्णिमा की चांदनी रात में कर्मचारी आसानी से वन्यजीवों की गिनती कर पाते हैं. दिन में भी तेज धूप के चलते वन्यजीव पानी पीने के लिए वाटर पॉइंट पर जरूर आते हैं. राजधानी जयपुर की बात की जाए तो झालाना वन, गलता- आमागढ़ वन क्षेत्र और नाहरगढ़ वन क्षेत्र में गणना की जा रही है.
वन मुख्यालय भेजे जाएंगे आंकड़े: 24 घंटे वन्यजीव गणना करने के बाद आंकड़े एकत्रित करके (Wildlife Census through Water Hole method) वन मुख्यालय भेजे जाएंगे. वन्यजीव गणना के बाद आंकड़ों की अधिकारी तुलना करेंगे. वन्यजीवों की संख्या में बढ़ोतरी होती है, तो वन विभाग के लिए बड़ी खुशखबरी की बात होगी. अगर आंकड़ों में कमी आई तो वन विभाग के लिए चिंता का विषय होगा.
वाटर होल पद्धति के आधार पर वन्यजीव गणना: वन्यजीव गणना वाटर होल पद्धति के आधार पर की जा रही है. क्योंकि वन्यजीव गणना में मुख्य आधार सभी जल स्रोत होते हैं. वन क्षेत्रों में वन विभाग की ओर से वाटर पॉइंट बनाए जाते हैं. जहां पर वन्यजीव पानी पीने के लिए आते हैं. पूर्णिमा की चांदनी रात में आने वाले वन्यजीवों की गिनती की जाती है जिससे उनकी तादाद का एक अंदाजा लग जाता है. वन्यजीव गणना में कैमरा ट्रैप का भी उपयोग किया जा रहा है.
24 प्रजातियों के वन्यजीवों की गणना: वन्यजीव गणना में भालू, पैंथर, सियागोश, लकड़बग्घे, भेड़िए, सियार, लोमड़ी, जंगली बिल्ली, लंगूर, जंगली, सूअर, नीलगाय, सांभर, चीतल, काला हिरण, चिंकारा, नेवला, बिज्जू और सेही को गिना जाएगा. हालांकि प्रदेश में वन्यजीवों की सैकड़ों प्रजातियां हैं. लेकिन इस बार 24 प्रजातियों की गणना की जा रही है. झालाना के क्षेत्रीय वन अधिकारी जनेश्वर चौधरी ने बताया कि वाटर पॉइंट पर वन स्टाफ के साथ एक वॉलिंटियर बिठाकर बनियों की गिनती की जा रही है. जयपुर रेंज प्रादेशिक क्षेत्र की बात की जाए तो करीब 44 वाटर पॉइंट्स पर वन्यजीवों की गिनती की जा रही है. इनमें से 23 वाटर पॉइंट झालाना लेपर्ड रिजर्व के हैं, 13 वाटर पॉइंट आमागढ़ लेपर्ड रिजर्व के और 7 वाटर पॉइंट अन्य जगहों के हैं.
वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट धीरज कपूर ने बताया कि वन्य जीव गणना बहुत ही महत्वपूर्ण है. इसमें जंगल प्रेमियों को भी 24 घंटे मचान पर बैठकर गणना करने का मौका मिलता है. लोकल वॉलिंटियर्स का इंवॉल्वमेंट भी काफी इंपोर्टेंट रहता है. इससे वन विभाग के पास एक्चुअल फिगर आते हैं. कैमरा ट्रैप के माध्यम से एविडेंस के साथ वास्तविक स्थिति सामने आती है.
सरिस्का में वाटर मैनेजमेंट फॉर वाइल्डलाइफ: अलवर में सरिस्का प्रशासन ने वाटर मैनेजमेंट फॉर वाइल्डलाइफ के तहत नई बोरिंग को खुदवाई हैं. इन बोरिंग को पास के वाटर होल से जोड़ा गया है. साथ ही प्रत्येक बोरिंग के आसपास तीन नए वॉटरहोल बनाने का भी फैसला लिया गया है. बोरिंग सोलर ऊर्जा से संचालित होती हैं. सरिस्का प्रशासन की माने तो नए बोरिंग शुरू होने से वन्यजीवों को पीने के लिए पर्याप्त पानी मिल सकेगा.
भीषण गर्मी के चलते वाटर होल में पानी कम होने लगा. पानी की कमी के चलते वन्य जीव जंगल से बाहर आने लगते हैं, ऐसे में हादसे का खतरा रहता है. सरिस्का प्रशासन की तरफ से आईसीआईसीआई फाउंडेशन के साथ मिलकर सरिस्का के जंगलों में 10 नई बोरिंग खुदवाया गया है. एक बोरिंग के पास एक वाटर होल तैयार कराया गया है, जिसको बोरिंग से कनेक्ट किया गया है. सरिस्का प्रशासन की मानें तो प्रत्येक बोरिंग के आसपास तीन नए वाटर होल बनाने की योजना है. इस दिशा में काम चल रहा है.
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सरिस्का में 300 से ज्यादा वाटर होल: सरिस्का डीएफओ सुदर्शन शर्मा ने बताया कि सरिस्का में पहले से पांच बोरिंग थी, 10 नई बोरिंग शुरू होने से बोरिंग की संख्या 15 हो चुकी है. सरिस्का में 300 से ज्यादा वाटर होल हैं. इन सभी वाटरहोल पर नजर रखने के लिए वन कर्मियों को लगाया गया है. विभाग को प्रतिदिन रिपोर्ट दी जाती है. वाटर होल की मॉनिटरिंग के साथ ही पानी कम होने पर तुरंत उसमें पानी भरवाया जाता है.
भीषण गर्मी के चलते रहती है पानी की परेशानी: भीषण गर्मी के चलते सरिस्का के जंगल में पानी की कमी रहती है. सरिस्का में नेचुरल वाटर होल है. बारिश और सर्दी के समय इनमें पानी भरा रहता है. ऐसे में बाघ, पैंथर, हिरण, नीलगाय, बारहसिंघा और अन्य वन्य जीव पानी की तलाश में जंगल से बाहर और आसपास के क्षेत्र में जाते हैं. ऐसे में स्थानीय लोगों को साथ ही वन्य जीव की जान को भी खतरा रहता है.
प्रत्येक बोरिंग से जुड़ेंगे तीन नए वाटर होल: सरिस्का के सीसीएफ आरएन मीणा ने बताया कि प्रत्येक बोरिंग से (Water Management for Wildlife in Sariska) 3 नए वाटरहोल बनाकर जोड़े जाएंगे. इस हिसाब से आने वाले समय में 30 नए वाटर होल होंगे. उन्होंने कहा कि सरिस्का को बेहतर बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं.
अन्य जगहों से बेहतर है सरिस्का का जंगल : सीसीएफ ने कहा कि सरिस्का का जंगल अन्य जंगलों से बेहतर है. जंगल में सैकड़ों तरीके की वन्यजीव प्रजातियां हैं. इस जंगल को बाघ, पैंथर और अन्य वन्यजीवों के लिए बेहतर माना गया है. यहां बाघ-पैंथर आसानी से विचरण कर सकते हैं. उनके लिए पर्याप्त मात्रा में भोजन की भी व्यवस्था की जाती है. बाघ और पैंथर का पसंदीदा भोजन चीतल है. सरिस्का के जंगल में चीतल की भरमार है.