जिनेवा/नई दिल्ली : विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कोरोना वायरस से बचाव के लिए फाइजर-बायोएनटेक के टीके के आपात इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है और अब गरीब देशों को भी ये टीके उपलब्ध हो सकेंगे. अब तक ये टीके यूरोप और उत्तर अमेरिका में ही उपलब्ध थे. वहीं भारतीय औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) वी.जी. सोमानी ने इस बात का संकेत दिया कि भारत नए साल में कोविड-19 टीके के आपात इस्तेमाल को लेकर बड़ा फैसला ले सकता है.
केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) के विशेषज्ञों की समिति ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के कोविड-19 टीके के आपात इस्तेमाल की अनुमति देने के सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के आग्रह और 'कोवैक्सीन' के आपात इस्तेमाल को अनुमति देने के भारत बायोटेक के आग्रह पर विचार करने के लिए बुधवार को बैठक की तथा अब यह समिति एक जनवरी यानी की आज फिर से बैठक करेगी.
WHO पर निर्भर रहते हैं कमजोर देश
गौरतलब है कि देशों की औषध नियामक एजेंसी किसी भी कोविड-19 टीके के लिए अपनी ओर से मंजूरी देती हैं, लेकिन कमजोर प्रणाली वाले देश आमतौर पर इसके लिए डब्ल्यूएचओ पर निर्भर करते हैं.
भारत में टीके का आपातकालीन इस्तेमाल
भारतीय औषधि महानियंत्रक ने टीके के आपात स्थिति में उपयोग के संदर्भ में कहा, कुछ तय मापदंड हैं कि अगर हमें काफी हद तक सुरक्षा और कारगर होने का सीमिति या आंशिक डाटा मिलता है तो हम संबंधित टीके को टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल करने की अनुमति देते हैं.'
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उन्होंने इस बात पर जोर दिया, 'टीके के आपात स्थिति में उपयोग के लिए आंशिक डाटा को स्वीकार करते हुए सुरक्षा, कारगर होने और गुणवत्ता को लेकर कोई समझौता नहीं किया जाता.'
भारत में क्लीनिकल परीक्षण
मौजूदा समय पर छह टीकों का क्लीनिकल परीक्षण अलग अलग चरणों में चल रहा है. इनमें से चार को स्वदेशी रूप से विकसित किया जा रहा है.
कारगर है कोविड वैक्सीन
डब्ल्यूएचओ ने कहा कि कोविड-19 के टीके के आपात इस्तेमाल की मंजूरी देने के उसके फैसले से देशों को अवसर मिलेगा कि वे टीके आयात करने तथा इन्हें लगाने संबंधी अपने नियामकों की मंजूरी प्रक्रिया को गति प्रदान कर सकें.
उसने कहा कि फाइजर-बायोएनटेक द्वारा निर्मित टीका 'संगठन द्वारा तय किए गए सुरक्षा मानकों एवं अन्य मापदंडों पर खरा उतरा है.'
कई देश दे चुके हैं मंजूरी
गौरतलब है कि इस टीके को अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ समेत अनेक देश मंजूरी दे चुके हैं.
इस टीके को बहुत ही कम तापमान पर रखना होता है जो विकासशील देशों के लिए एक बड़ी चुनौती है.