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क्या कांग्रेस नेताओं को जोड़ने वाली तृणमूल की रणनीति गठबंधन राजनीति के लिए आदर्श है?

असम, त्रिपुरा, गोवा और अब उत्तर प्रदेश में तृणमूल कांग्रेस ने अपने संगठनात्मक आधार का विस्तार किया है. इसी क्रम में कांग्रेस को कमजोर करने और कांग्रेसी नेताओं को तृणमूल खेमे में शामिल करने की रणनीति अपनाई गई है. यूपी में पूर्वांचल के कद्दावर कांग्रेसी घराने को तृणमूल में शामिल करना इसी रणनीति का हिस्सा है, जिसके दूरगामी परिणाम मिल सकते हैं. यह कदम भले की 2022 के विधानसभा चुनावों में प्रभावी न हो लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में इसका असर दिखेगा.

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Published : Oct 26, 2021, 8:15 PM IST

कोलकाता : तृणमूल कांग्रेस की हालिया पहल से यह सवाल स्वाभाविक रूप से उठता है कि इन राज्यों में कांग्रेस को कमजोर करने की रणनीति गठबंधन की राजनीति की भावना के लिए कितनी आदर्श है? खासकर जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने खुद भाजपा विरोधी विपक्षी एकता को ध्यान में रखकर तैयारियां शुरू की हैं.

2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के परिणाम ने साबित कर दिया कि बुनियादी संगठनात्मक नेटवर्क के बिना अन्य दलों के नेताओं को लुभाने और अपने पाले में मिलाने से चुनाव जीतना असंभव है. 2021 के चुनावों से पहले भाजपा ने अन्य दलों के नेताओं को पार्टी में शामिल किया. मुख्य रूप से तृणमूल कांग्रेस से.

हालांकि जहां तक ​​चुनावी नतीजों का सवाल है तो वह रणनीति भगवा खेमे के लिए पॉजिटिव नतीजे देने में नाकाम रही. अब वही सवाल उठता है कि तृणमूल कांग्रेस अपनी राष्ट्रीय विस्तार योजनाओं में कहां तक सफल होगी. केवल अन्य राजनीतिक दलों विशेषकर कांग्रेस के नेताओं को आकर्षित करके, उसके उद्देश्य की पूर्ति हो पाएगी.

कोलकाता विश्वविद्यालय के पूर्व रजिस्ट्रार राजा गोपाल धर चक्रवर्ती ने कहा कि इन दिनों राजनीतिक दलों को बदलने की संस्कृति प्रचलित है. इस संस्कृति की जड़ें वास्तव में उत्तर भारत में हैं. जहां निर्वाचित प्रतिनिधियों के एक बड़े हिस्से ने दल-बदल करके सरकारें तक बदल दीं.

राज्य कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने सवाल उठाया कि तृणमूल कांग्रेस भाजपा के बजाय कांग्रेस पर ध्यान केंद्रित क्यों कर रही है? चक्रवर्ती ने कहा कि मैं उनसे सहमत हूं कि बड़ा विपक्षी गठबंधन और कांग्रेस का कमजोर होना साथ-साथ नहीं चल सकता. यह घटना गठबंधन की राजनीति की भावना पर सवाल उठाने के लिए बाध्य करती है.

इसी तरह प्रख्यात समाज विज्ञानी और तत्कालीन प्रेसीडेंसी कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ अमल कुमार मुखोपाध्याय ने कहा कि निस्संदेह कांग्रेस की अपनी कमजोरियां हैं. कांग्रेस में गुटीय अंदरूनी कलह उनकी सबसे बड़ी समस्या है. हमने देखा है कि वाम मोर्चा, जिसमें लगभग 15 विभिन्न राजनीतिक दल शामिल हैं, पश्चिम बंगाल में 34 वर्षों से सत्ता में थी. हालांकि वाम मोर्चा में प्रमुख सहयोगी के रूप में माकपा है जिसने कभी अन्य दलों के नेताओं को कमजोर करने की कोशिश नहीं की.

तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पार्टी सांसद सौगत रॉय को इस रणनीति में कुछ भी अनैतिक नहीं लगता. रॉय ने कहा कि हम कांग्रेस के साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं जहां उनकी मजबूत उपस्थिति नहीं है. लेकिन कई जगह हैं जहां भाजपा सिर्फ कांग्रेस की आंतरिक कमजोरी के कारण ताकत हासिल कर रही है. हम उन जगहों पर कदम रख रहे हैं और भाजपा के खिलाफ एकजुट विपक्ष विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें-नीतीश कुमार का बड़ा बयान- लालू यादव चाहें तो मुझे गोली मरवा दें, इसके अलावा कुछ नहीं कर सकते

हालांकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सदस्य प्रदीप भट्टाचार्य इस प्रवृत्ति को ज्यादा महत्व नहीं देना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि कांग्रेस महासागर की तरह है. समुद्र के लिए यह कोई मायने नहीं रखता कि कुछ बाल्टी पानी निकाल लिया जाए. इस रणनीति के माध्यम से कोई भी कांग्रेस को कमजोर नहीं कर पाएगा.

लेकिन जाहिर है कि हमें अपनी आंतरिक कमजोरियों पर आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता है. साथ ही आपसी गठबंधन की राजनीति में विश्वास की भावना होनी चाहिए और सभी पार्टियों को इसका सम्मान करना चाहिए.

कोलकाता : तृणमूल कांग्रेस की हालिया पहल से यह सवाल स्वाभाविक रूप से उठता है कि इन राज्यों में कांग्रेस को कमजोर करने की रणनीति गठबंधन की राजनीति की भावना के लिए कितनी आदर्श है? खासकर जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने खुद भाजपा विरोधी विपक्षी एकता को ध्यान में रखकर तैयारियां शुरू की हैं.

2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के परिणाम ने साबित कर दिया कि बुनियादी संगठनात्मक नेटवर्क के बिना अन्य दलों के नेताओं को लुभाने और अपने पाले में मिलाने से चुनाव जीतना असंभव है. 2021 के चुनावों से पहले भाजपा ने अन्य दलों के नेताओं को पार्टी में शामिल किया. मुख्य रूप से तृणमूल कांग्रेस से.

हालांकि जहां तक ​​चुनावी नतीजों का सवाल है तो वह रणनीति भगवा खेमे के लिए पॉजिटिव नतीजे देने में नाकाम रही. अब वही सवाल उठता है कि तृणमूल कांग्रेस अपनी राष्ट्रीय विस्तार योजनाओं में कहां तक सफल होगी. केवल अन्य राजनीतिक दलों विशेषकर कांग्रेस के नेताओं को आकर्षित करके, उसके उद्देश्य की पूर्ति हो पाएगी.

कोलकाता विश्वविद्यालय के पूर्व रजिस्ट्रार राजा गोपाल धर चक्रवर्ती ने कहा कि इन दिनों राजनीतिक दलों को बदलने की संस्कृति प्रचलित है. इस संस्कृति की जड़ें वास्तव में उत्तर भारत में हैं. जहां निर्वाचित प्रतिनिधियों के एक बड़े हिस्से ने दल-बदल करके सरकारें तक बदल दीं.

राज्य कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने सवाल उठाया कि तृणमूल कांग्रेस भाजपा के बजाय कांग्रेस पर ध्यान केंद्रित क्यों कर रही है? चक्रवर्ती ने कहा कि मैं उनसे सहमत हूं कि बड़ा विपक्षी गठबंधन और कांग्रेस का कमजोर होना साथ-साथ नहीं चल सकता. यह घटना गठबंधन की राजनीति की भावना पर सवाल उठाने के लिए बाध्य करती है.

इसी तरह प्रख्यात समाज विज्ञानी और तत्कालीन प्रेसीडेंसी कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ अमल कुमार मुखोपाध्याय ने कहा कि निस्संदेह कांग्रेस की अपनी कमजोरियां हैं. कांग्रेस में गुटीय अंदरूनी कलह उनकी सबसे बड़ी समस्या है. हमने देखा है कि वाम मोर्चा, जिसमें लगभग 15 विभिन्न राजनीतिक दल शामिल हैं, पश्चिम बंगाल में 34 वर्षों से सत्ता में थी. हालांकि वाम मोर्चा में प्रमुख सहयोगी के रूप में माकपा है जिसने कभी अन्य दलों के नेताओं को कमजोर करने की कोशिश नहीं की.

तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पार्टी सांसद सौगत रॉय को इस रणनीति में कुछ भी अनैतिक नहीं लगता. रॉय ने कहा कि हम कांग्रेस के साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं जहां उनकी मजबूत उपस्थिति नहीं है. लेकिन कई जगह हैं जहां भाजपा सिर्फ कांग्रेस की आंतरिक कमजोरी के कारण ताकत हासिल कर रही है. हम उन जगहों पर कदम रख रहे हैं और भाजपा के खिलाफ एकजुट विपक्ष विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं.

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हालांकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सदस्य प्रदीप भट्टाचार्य इस प्रवृत्ति को ज्यादा महत्व नहीं देना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि कांग्रेस महासागर की तरह है. समुद्र के लिए यह कोई मायने नहीं रखता कि कुछ बाल्टी पानी निकाल लिया जाए. इस रणनीति के माध्यम से कोई भी कांग्रेस को कमजोर नहीं कर पाएगा.

लेकिन जाहिर है कि हमें अपनी आंतरिक कमजोरियों पर आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता है. साथ ही आपसी गठबंधन की राजनीति में विश्वास की भावना होनी चाहिए और सभी पार्टियों को इसका सम्मान करना चाहिए.

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