उत्तराखंड: उत्तराखंड को इसलिए देवभूमि कहा जाता है क्योंकि यहां पर हिंदू सभ्यता और सनातन धर्म के कई ऐसे पौराणिक स्थल मौजूद हैं जो कि सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए भगवान का सीधा प्रमाण हैं. ऐसा ही एक प्रमाण है भगवान श्री कृष्ण के पोते अनिरुद्ध और दैत्य राज बाणासुर की पुत्री उषा का विवाह स्थल. ये स्थान ऊखीमठ के पास मौजूद है. दुर्भाग्य की बात है कि आज यह पौराणिक धरोहर खंडहर के रूप में है. जल्द ही इसे बदरी केदार मंदिर समिति द्वारा भव्य स्वरूप दिया जाएगा. क्या है इसकी पूरी रूपरेखा आपको बताते हैं.
हिंदू मान्यता से जुड़े विभिन्न युगों के प्रमाण उत्तराखंड में मौजूद: जैसा कि नाम से ही चरितार्थ होता है कि देवभूमि उत्तराखंड देवों की भूमि रही है. उत्तराखंड में अनगिनत ऐसे प्रमाण हमें देखने को मिलते हैं जो कि सीधे तौर से सनातन धर्म के धर्म ग्रंथों और हिंदू देवी देवताओं के होने का स्पष्ट प्रमाण माने जाते हैं. देवभूमि उत्तराखंड में मौजूद कई ऐसे पौराणिक स्थल मंदिर और स्मृतियां मौजूद हैं जो कि आदिकाल से संबंध रखती बताई जाती हैं. बात चाहे त्रिजुगीनारायण भगवान शंकर और गौरी माता के विवाह स्थल की हो या केदारनाथ मंदिर की बात हो. बदरीनाथ मंदिर की बात हो या भागीरथ ने जहां पर गंगा को धरती पर बुलाया था, उस गोमुख की बात हो. पाताल भुवनेश्वर और लाखामंडल जैसे असंख्य सक्षम प्रमाण देवभूमि उत्तराखंड में देखने को मिलते हैं. ये पौराणिक स्थल सीधे तौर से हिंदू धर्म ग्रंथों में लिखी बातों को चरितार्थ करते हैं.
धर्मग्रंथों में वर्णित स्वर्ग को बताते हैं देवभूमि उत्तराखंड: हिंदू धर्म के कई धर्मगुरु इस बात का भी जिक्र करते हैं कि धर्म ग्रंथों में जब स्वर्ग का जिक्र किया जाता है तो उसका संबंध देवभूमि उत्तराखंड से ही है. ऐसे ही प्रमाणों को चरितार्थ करता हुआ एक और पौराणिक स्थल देवभूमि उत्तराखंड के उखीमठ के पास मौजूद है. कहा जाता है कि यहां भगवान श्री कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध और दैत्यराज बाणासुर की पुत्री उषा का विवाह हुआ था. आज यह स्थल एक खंडहर के रूप में उखीमठ में मौजूद है. इसके पौराणिक महत्व को हिंदू अनुयायियों के सामने लाने के लिए और देवभूमि उत्तराखंड में देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों के लिए उजागर करने के लिए एक बार फिर से इसका जीर्णोद्धार किया जा रहा है.
ओंकारेश्वर मंदिर का ये है महत्व: ईटीवी से खास बातचीत करते हुए बदरी केदार मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने बताया कि देवभूमि उत्तराखंड के उखीमठ में मौजूद ओंकारेश्वर मंदिर का अपना एक पौराणिक महत्व है. भगवान केदारनाथ के शीतकालीन में जब कपाट बंद हो जाते हैं तो भगवान केदारनाथ की चल विग्रह डोली को उखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर में रखा जाता है और पूरे शीतकालीन के दौरान भगवान केदारनाथ की पूजा अर्चना उखीमठ की ओंकारेश्वर मंदिर में की जाती है.
जोशीमठ में है पंच केदारों का गद्दीस्थल: इसके अलावा जोशीमठ में पंच केदारों का भी गद्दी स्थल है. यही नहीं बदरी केदार मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने बताया कि उखीमठ में एक और पौराणिक स्थल है जो कि आज जीर्णशीर्ण अवस्था में है. इसका पौराणिक महत्व हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए और पूरे सनातन धर्म के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. मंदिर समिति के अध्यक्ष ने बताया कि उखीमठ में मौजूद कोठा भवन प्राचीन हिंदू सभ्यता का एक बड़ा प्रमाण है. इसमें भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध और दैत्यराज बाणासुर की पुत्री उषा का विवाह मंडप मौजूद है जो कि काफी जीर्ण शीर्ण अवस्था में है. इसे एक बार फिर से एक भव्य स्वरूप देने के लिए कवायद शुरू की गई है.
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पौराणिक स्थलों का होगा जीर्णोद्धार: दरअसल उत्तराखंड में केदारनाथ धाम और बदरीनाथ धाम में पुनर्निर्माण के बाद अब उत्तराखंड में मौजूद ऐसे तमाम पौराणिक और ऐतिहासिक स्थलों के जीर्णोद्धार की कवायद शुरू की जा रही है जो उपेक्षित हैं. बीकेटीसी अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने बताया कि उखीमठ में मौजूद इन तमाम पौराणिक धरोहरों के जीर्णोद्धार, विस्तारीकरण और सुंदरीकरण के लिए कार्य योजना तैयार की गई है. तीन अलग-अलग फेस में डीपीआर तैयार की जा रही है. पहले चरण की डीपीआर तैयार की जा चुकी है जो की 5 करोड़ रुपए की है. इसके बाद दूसरे चरण और तीसरे चरण की डीपीआर का काम शुरू होगा. इस पुनर्निर्माण और सौंदर्यीकरण के लिए देश की कई प्रतिष्ठित संस्थाएं आगे आ रही हैं जो कि अपने सीएसआर के माध्यम से इसमें आर्थिक सहयोग कर रही हैं. मंदिर समिति द्वारा इन संस्थाओं के साथ अनुबंध भी किए जा रहे हैं. मंदिर समिति के अनुसार मार्च में उखीमठ स्थित इन पौराणिक मंदिरों के पुनर्निर्माण की नींव रख दी जाएगी और भूमि पूजन किया जाएगा.