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पुलवामा में शहीद विजय सोरेंग को परिवार के साथ CRPF के जवानों ने दी श्रद्धांजलि

झारखंड के गुमला के रहने वाले विजय सोरेंग पुलवामा हमले में शहीद हो गए थे. आज विजय की शहादत को दो साल हो गए. लेकिन, सरकार ने परिवार से जो वादा किया था उसे अभी तक पूरा नहीं किया है. परिवार भी सम्मान का इंतजार कर रहा है.

CRPF के जवानों ने दी श्रद्धांजलि
CRPF के जवानों ने दी श्रद्धांजलि
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Published : Feb 15, 2021, 7:48 AM IST

रांची : कितना मुश्किल है एक मां-बाप के लिए कहना उन्हें अपने बेटे की शहादत पर गर्व है...14 फरवरी 2019 पूरा हिंदुस्तान जब वैलेंटाइन डे मनाने में मशगूल था, तभी जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में एक आतंकी हमला होता है और 41 जवान देश के लिए शहीद हो जाते हैं. इसी में से एक जवान झारखंड का गुमला का भी रहने वाला था. आज पूरे दो साल हो गए विजय सोरेंग को गए हुए. लेकिन, पिता को आज भी लगता है कि उनका बेटा कहीं नहीं गया. बस छुट्टियों में घर लौटकर आएगा.

बेटे को खोने का गम क्या होता यह विजय सोरेंग की मां लक्ष्मी देवी और पिता बिरिस सोरेंग से बेहतर कौन जान सकता है. पिता कहते हैं कि मैं खुद भी फौज से रिटायर हुआ हूं और शहादत को अच्छे से समझ सकता हूं. मातृभूमि की रक्षा में बेटे की शहादत ने मेरा सीना गर्व से चौड़ा कर दिया.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

शहीद विजय सोरेंग सीआरपीएफ की 82 वीं बटालियन में हेड कॉन्स्टेबल के पद पर तैनात थे. विजय सोरेंग 1993 में विजय सेना में भर्ती हुए थे और 1995 में उन्हें एसपीजी में कमांडो दस्ता में शामिल होने का गौरव प्राप्त हुआ. परिस्थितिवश विजय ने दो शादियां की थी. उनकी पहली पत्नी कार्मेला बा रांची होटवार में झारखंड पुलिस टेंट में महिला बटालियन में कार्यरत हैं, जबकि दूसरी पत्नी बिमला अपने मायके सिमडेगा में रहती हैं. पहली पत्नी से एक बेटा है जिसे सीआरपीएफ ने नौकरी का प्रस्ताव दिया था. लेकिन, अरुण ने सिविल में नौकरी की मांग की है. शहीद के पिता ने मुख्यमंत्री को भी ज्ञापन सौंपा है. दूसरी पत्नी से तीन बेटी और एक बेटा है.

गांव को भी है विकास का इंतजार...

सीमा पर शहीद होकर अमर होने वाले विजय का गांव अभी भी उपेक्षित है. पिता बताते हैं कि गांव में पेयजल की समस्या है. सड़क भी जर्जर है. प्रशासन से मांग की थी कि शहीद की प्रतिमा लगाई जाए और शहीद के नाम पर स्टेडियम का निर्माण हो. अब तक एक भी मांग पूरी नहीं हुई. रांची की एक कंपनी ने फ्लैट देने की घोषणा की थी लेकिन वह भी नहीं मिला.

पढ़ें - यूपी : बर्खास्त सिपाही की पुलिस को खुलेआम धमकी, 'लगातार करूंगा तीन हत्या, दम है तो रोक लो'

बीसीसीएल ने 91 लाख रुपए देने की घोषणा की थी. उसे सिर्फ इस बात पर रोक दिया गया है कि परिवार में विवाद हैं, जबकि ऐसा कुछ नहीं है. प्रखंड विकास पदाधिकारी रविंद्र कुमार गुप्ता ने कहा कि गांव में जल्द ही मूलभूत सुविधा बहाल कर फरसामा को आदर्श गांव के रूप में विकसित किया जाएगा.

पूरे दो साल हो गए विजय सोरेंग की शहादत को. आज हम सबके बीच विजय नहीं हैं लेकिन विजय का जो पताका वह फहराकर गए उससे पूरा हिंदुस्तान वाकिफ है. 14 फरवरी यानि वैलेंटाइन डे के दिन सीमा पर जान गंवाने वालों के लिए किसी शायर ने खूब लिखा था-भिगोकर खून में वर्दी कहानी दे गए अपनी, मोहब्बत मुल्क की सच्ची निशानी दे गए अपनी...मनाते रह गए वैलेंटाइन डे यहां हम तुम, वहां कश्मीर में सैनिक जवानी दे गए अपनी. जय हिंद...वंदे मातरम.

रांची : कितना मुश्किल है एक मां-बाप के लिए कहना उन्हें अपने बेटे की शहादत पर गर्व है...14 फरवरी 2019 पूरा हिंदुस्तान जब वैलेंटाइन डे मनाने में मशगूल था, तभी जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में एक आतंकी हमला होता है और 41 जवान देश के लिए शहीद हो जाते हैं. इसी में से एक जवान झारखंड का गुमला का भी रहने वाला था. आज पूरे दो साल हो गए विजय सोरेंग को गए हुए. लेकिन, पिता को आज भी लगता है कि उनका बेटा कहीं नहीं गया. बस छुट्टियों में घर लौटकर आएगा.

बेटे को खोने का गम क्या होता यह विजय सोरेंग की मां लक्ष्मी देवी और पिता बिरिस सोरेंग से बेहतर कौन जान सकता है. पिता कहते हैं कि मैं खुद भी फौज से रिटायर हुआ हूं और शहादत को अच्छे से समझ सकता हूं. मातृभूमि की रक्षा में बेटे की शहादत ने मेरा सीना गर्व से चौड़ा कर दिया.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

शहीद विजय सोरेंग सीआरपीएफ की 82 वीं बटालियन में हेड कॉन्स्टेबल के पद पर तैनात थे. विजय सोरेंग 1993 में विजय सेना में भर्ती हुए थे और 1995 में उन्हें एसपीजी में कमांडो दस्ता में शामिल होने का गौरव प्राप्त हुआ. परिस्थितिवश विजय ने दो शादियां की थी. उनकी पहली पत्नी कार्मेला बा रांची होटवार में झारखंड पुलिस टेंट में महिला बटालियन में कार्यरत हैं, जबकि दूसरी पत्नी बिमला अपने मायके सिमडेगा में रहती हैं. पहली पत्नी से एक बेटा है जिसे सीआरपीएफ ने नौकरी का प्रस्ताव दिया था. लेकिन, अरुण ने सिविल में नौकरी की मांग की है. शहीद के पिता ने मुख्यमंत्री को भी ज्ञापन सौंपा है. दूसरी पत्नी से तीन बेटी और एक बेटा है.

गांव को भी है विकास का इंतजार...

सीमा पर शहीद होकर अमर होने वाले विजय का गांव अभी भी उपेक्षित है. पिता बताते हैं कि गांव में पेयजल की समस्या है. सड़क भी जर्जर है. प्रशासन से मांग की थी कि शहीद की प्रतिमा लगाई जाए और शहीद के नाम पर स्टेडियम का निर्माण हो. अब तक एक भी मांग पूरी नहीं हुई. रांची की एक कंपनी ने फ्लैट देने की घोषणा की थी लेकिन वह भी नहीं मिला.

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बीसीसीएल ने 91 लाख रुपए देने की घोषणा की थी. उसे सिर्फ इस बात पर रोक दिया गया है कि परिवार में विवाद हैं, जबकि ऐसा कुछ नहीं है. प्रखंड विकास पदाधिकारी रविंद्र कुमार गुप्ता ने कहा कि गांव में जल्द ही मूलभूत सुविधा बहाल कर फरसामा को आदर्श गांव के रूप में विकसित किया जाएगा.

पूरे दो साल हो गए विजय सोरेंग की शहादत को. आज हम सबके बीच विजय नहीं हैं लेकिन विजय का जो पताका वह फहराकर गए उससे पूरा हिंदुस्तान वाकिफ है. 14 फरवरी यानि वैलेंटाइन डे के दिन सीमा पर जान गंवाने वालों के लिए किसी शायर ने खूब लिखा था-भिगोकर खून में वर्दी कहानी दे गए अपनी, मोहब्बत मुल्क की सच्ची निशानी दे गए अपनी...मनाते रह गए वैलेंटाइन डे यहां हम तुम, वहां कश्मीर में सैनिक जवानी दे गए अपनी. जय हिंद...वंदे मातरम.

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