हमीरपुर: हिमाचल प्रदेश के किसान लगातार प्राकृतिक खेती के साथ-साथ लाभकारी खेती की ओर बढ़ रहे (Natural Farming in Himachal) हैं. जिला हमीरपुर में भी एक लाभप्रद खेती का प्रयोग किया गया है जो सफल रही है. यहां आयुष विभाग के जिले में स्थित हर्बल गार्डन नेरी में सफलतम तरीके से हिमाचल की आब-ओ-हवा में साउथ अमेरिका की बिक्सा ओरेलाना प्रजाति के सिंदूर के पौधे बीज से तैयार किए गए (Vermilion Cultivation in Hamirpur) हैं. महाराष्ट्र के गोंदिया नामक स्थान से कुछ साल पहले इसके बीज लाकर हर्बल गार्डन में लगाए गए थे और अब मदर प्लांट के बीज से इस साल सिंदूर के 34 पौधे अंकुरित किए गए हैं.
ऐसे में हिमाचल के उप उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की जलवायु वाले जिलों में इसकी खेती की उम्मीद भी जग गई है. भारत में सिंदूर का पौधा नार्थ ईस्ट और साउथ के राज्यों में वर्तमान में पाया जाता है. इन क्षेत्रों में ही इसकी खेती भी की जाती है. ऐसे में हिमाचल के उप उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों यानि निचले हिमाचल के जिलों बिलासपुर, हमीरपुर और कांगड़ा में इसकी खेती की संभावना प्रबल मानी जा रही (Vermilion Cultivation in Himachal) है. आयुष विभाग के पूर्व में रहे ओएसडी डॉ. अशोक शर्मा ने कुछ साल पहले महाराष्ट्र में विभागीय भ्रमण के दौरान गोंदिया नामक स्थान से सिंदूर के बीज लाए थे.
उन्होंने हमीरपुर हर्बल गार्डन नेरी के तत्कालीन इंचार्ज उज्ज्वल शर्मा को अंकुरण प्रक्रिया को यह बीज ट्रायल के लिए दिए थे. लंबे समय तक ट्रायल के बाद हिमाचल की आब-आब-ओ-हवा में यह बीज अंकुरित होना शुरू हो गए हैं. अब हर्बल गार्डन में सिंदूर का मदर प्लांट (herbal garden hamirpur) तैयार हो चुका है जिससे साल दर साल पौधे तैयार किए जा रहे हैं. इस साल मदर प्लांट के बीज से 34 पौधे अंकुरित किए गए हैं. ऐसे में यदि सरकार इस दिशा में योजनाबद्ध तरीके से किसानों को सिंदूर की खेती (farmers of himachal) से जोड़ने का प्रयास करती है तो खेती प्रधान निचले हिमाचल के जिलों में आमदनी का बेहतर जरिया लोंगों के लिए उपलब्ध होगा.
बेहद आसान है इसकी सिंदूर की खेती: हिमाचल की आब-ओ-हवा में सफलतम तरीके से बीज से इसके पौधे अंकुरित किया जाना हिमाचल के किसानों के लिए किसी खुशखबरी से कम नहीं है. अब प्रदेश में भी सिंदूर के पौधे उगाकर किसान लाखों रुपये की कमाई कर सकेंगे. फिलहाल गार्डन में इतने पौधे तैयार नहीं है कि किसानों को इन्हें वितरित किया जाए, लेकिन भविष्य में अधिक मात्रा में पौधे तैयार होने पर यह किसानों के लिए आसानी से उपलब्ध होंगे, हालांकि इसमें दो से तीन साल का वक्त लगने की संभावना है. विभाग की तरफ से एक पौधे की कीमत 50 रुपये तय की गई है.
लागत और मेहनत भी बेहद कम: इस पौधे को बरसात के समय में एक फीट का गड्ढा खोद कर आसानी से लगाया जा सकता है. आठ से दस माह की उम्र के पौधे के रोपण के समय गड्ढे में गोबर की खाद इसके पोषण के लिए पर्याप्त है और इसके बाद प्राकृतिक तरीके से यह अपना पोषण जमीन से प्राप्त करेगा. उप उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की जलवायु इसके पोषण के लिए अपने आप में अनुकूल है. बेहद ही कम लागत में किसान दो मीटर की दूरी पर पहाड़ी नुमा और समतल खेतों में इसे लगा सकते है. मसलन खेतों में यदि फसल उगानी है तो पहाड़ी नुमा मेढ़ों पर इसे उगाया जा सकता है. यह सर्व प्लांट है जिसे झाड़ीनुमा पौध भी कहा जाता है. चौड़ाई में इस पौधे का दायरा एक मीटर तक होता है.
दवाइयों में भी होता है सिंदूर का प्रयोग: सिंदूर के पौधे को इसके औषधीय गुणों के लिए जानाा जाता है. सुहागिन महिलाओं में इसका खास महत्व है. मांग भरने से लेकर विभिन्न सौंदर्य प्रसाधनों लिपस्टिक बनाने, बाल रंगने और नेल पॉलिश में भी सिंदूर का इस्तेमाल होता है. सिंदूर का पौधा औषधीय गुणों का भंडार है. इन औषधीय गुणों के चलते कई दवाइयों के निर्माण में इसका इस्तेमाल भी किया जाता है (Vermilion also used in medicine).
फूड इंडस्ट्री में सिंदूर का इस्तेमाल: यह एंटीपायरेटिक, एंटीडायरल, एंटी डायबिटिक औषधि का कार्य भी करता है. इसका रस महत्वपूर्ण दवाइयां बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है. इतना ही नहीं फीवर, डायरिया, मलेरिया और जख्म के इलाज और यह खून की गति बढ़ाने के लिए और रक्त शोधन, हृदय की शक्ति बढ़ाने में रामबाण औषधि के रूप में काम करता है. औषधियों के साथ फूड इंडस्ट्री में इसका इस्तेमाल इन दिनों खूब हो रहा है. चीज बटर और राइस की कलरिंग के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता (Vermilion use in food industry) है.
सिंदूर 500 और बीज की 8000 रु. प्रति किलो: सिंदूर को बेचने के साथ ही बीज की बिक्री कर भी किसान कमाई कर सकते हैं. ढाई साल के बाद सिंदूर का पौधा फल देना शुरू कर देता है. 5 से 10 साल की उम्र में यह सर्वाधिक उत्पादन किसान को देता है. इस आयु वर्ग में किसान एक पौधे से एक किलो ग्राम से अधिक सिंदूर और 250 से 350 ग्राम तक बीज प्राप्त कर सकता है. वर्तमान में बाजार में सिंदूर की कीमत अधिकतम 500 रुपये प्रति किलोग्राम है. पौधे में सिंदूर का फल गुच्छे में लगता है और बाद में इसे पीसकर सिंदूर बनाया जाता है. सिंदूर निकालने के बाद पौधे से प्राप्त होने वाले बीज को किसान 8000 हजार रुपये प्रतिकिलों के हिसाब से बेच सकते हैं. आयुष विभाग ने आठ से दस माह के पौधे की कीमत 50 रुपये तय की और साथ ही बीज की कीमत 8000 रुपये प्रतिकिलो तय की है.
पशुओं से खतरा नहीं, 2 से 8 मीटर होती है पौधे की ऊंचाई: सिंदूर की खेती उन किसानों के लिए बेहतर विकल्प है जो जंगली और बेसहारा पशुओं की उजाड़ से तंग होकर खेत खलियानों को उजाड़ रखने को मजबूर हैं. सिंदूर की खेती को उजाड़ का भी कोई खतरा नहीं है. पशु और पक्षी इसे नहीं उजाड़ते हैं. ऐसे में किसानों के लिए आमदनी का यह बेहतर जरिया है. प्रदेश से बाहर रहने वाले वह लोग जो नौकरी की वजह से मौसमी खेती नहीं कर पाते हैं उनके लिए भी खेती का आसान जरिया है. एक दफा पौधे रोपित करने के बाद इसकी खेती में अधिक मेहनत नहीं है. ऐसे में लोग बेहद कम मेहनत से उजाड़ हो चुके खेतों में फिर कमाई का जरिया खोज सकते हैं. इस पौधे की ऊंचाई लगभग दो से आठ मीटर तक होती है.
बीज की अंकुरण क्षमता कम, सर्वाइवल रेट बेहतर: हिमाचल प्रदेश के आयुष विभाग की उप उष्णकटिबंधीय जोन हमीरपुर में स्थित हर्बल गार्डन नेरी के इंचार्ज डॉ. कमल भारद्वाज का कहना कि बीजों के अंकुरण की क्षमता फिलहाल कम है. बीज के अंकुरण की प्रतिशतता 17 से 22 फीसदी के बीच है जिसे बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं. हर्बल गार्डन में लगे सिंदूर पौधे से इस साल बीज अप्रैल 2022 में एकत्रित किए गए थे, जिससे 34 पौधे अंकुरित हुए हैं.
उन्होंने कहा कि बेशक इन पौधों का अंकुरण प्रतिशत कम है, लेकिन जलवायु अनुकूल होने के चलते आठ से दस माह बाद जब किसानों को जब यह वितरित होगा तो इसका सर्वाइवल रेट बेहतर होगा. 60 दिन में इसका बीज पौधे के रूप में अंकुरित होता है और फिर इसे पौली बैग में डाल दिया जाता है. सात से आठ माह के बाद किसान को यह पौधा वितरित किया जा सकता है. फिलहाल गार्डन में वितरण के लिए पर्याप्त पौधे नहीं है, लेकिन दो और तीन साल में किसानों को यह पौधे उपलब्ध होने की संभावना है.