हैदराबाद: क्या भारत में कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा सरकार द्वारा जारी आंकड़े से 10 गुना अधिक है ? एक अमेरिकी संस्था के अध्ययन में चौंकाने वाले आंकड़े जारी किए हैं. जिसके मुताबिक भारत में कोरोना से करीब 50 लाख लोगों की मौत हुई है.
रिपोर्ट में क्या है ?
वाशिंगटन के सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट की ओर से जारी एक रिपोर्ट में सरकारी आंकड़ों, अंतरराष्ट्रीय अनुमानों और घरों में हुए सर्वे के आधार पर आंकड़े जारी किए गए हैं. रिपोर्ट में भारत सरकार द्वारा जारी कोविड से मौत के आंकड़ों पर संशय जताया गया है. खास बात ये है कि इस रिपोर्ट के ऑथर्स में मोदी सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे अरविंद सुब्रमण्यन भी शामिल हैं. शोधकर्ताओं का दावा है कि कोरोना से मृतकों की वास्तविक संख्या कुछ हजार या लाख नहीं दसियों लाख है.
रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कोविड-19 से 34 से 47 लाख (3.4 मिलियन से 4.7 मिलियन) लोगों की मौत हुई है. जबकि भारत में कोविड से मरने वालों का आधिकारक आंकड़ा 4.14 लाख है. रिपोर्ट में जारी आंकड़े आधिकारिक आंकड़ों से करीब 12 गुना अधिक है. जिसे देश में आजादी और विभाजन के बाद सबसे बड़ी त्रासदी बताया गया है.
मौत के सरकारी आंकड़ों पर सवाल
शोधकर्ताओं के मुताबिक भारत सरकार के आंकड़े वास्तविक संख्या से कम हैं. अप्रैल और मई में कोरोना की दूसरी लहर भारत में चरम पर थी. देशभर के अस्पतालों में जगह नहीं थी. मरीजों को अस्पताल से लौटाया जा रहा था और बाद में उनकी मौत घर में हो गई. सेटर फॉर ग्लोबर डेवलपमेंट के मुताबिक भारत में जनवरी 2020 से जून 2021 तक 34 लाख से लेकर 47 लाख लोगों की मौत का अनुमान है.
सरकारी आंकड़ों पर सवाल उठना लाजमी है
दरअसल भारत में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान रोजाना नए मामले और मौत के आंकड़े तेजी से बढ़ रहे थे. दूसरी लहर के दौरान 24 घंटे में मौत का आंकड़ा 4 हजार के पार पहुंचा और रोजाना नए केस औसतन 4 लाख से अधिक सामने आ रहे थे. मध्य प्रदेश से लेकर गुजरात और यूपी से लेकर बिहार, छत्तीसगढ़ और दिल्ली तक कोरोना संक्रमण से हो रही मौत पर सवाल भी उठे. दरअसल उन दिनों सरकारी मौत का आंकड़ा और श्मशान घाट से लेकर कब्रिस्तान तक जलती और दफन होती लाशों का आंकड़ा मेल नहीं खा रहा था. 24 घंटे श्मशान में जलती चिताएं और श्मशान की चिमनियों के पिघलने की खबरें अखबारों की सुर्खियां बनी रहीं.
मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक कोविड से मौत के सरकारी आंकड़ों पर सवाल उठने लगे. दुनियाभर के कई संस्थान इससे पहले भी आंकड़ों पर सवाल उठा चुके हैं. लेकिन इस बार ये आंकड़ा आधिकारिक आंकड़े से 10 से 12 गुना अधिक है. भारत में अभी तक 4.14 लाख मौत कोरोना से हुई है लेकिन वाशिंगटन के सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट की रिपोर्ट का आंकड़ा इस आधिकारिक आंकड़े से 10 से लेकर 12 गुना अधिक है. तो सवाल है कि क्या सच में कोरोना संक्रमण के चलते करीब 47 लाख लोगों की मौत हुई ?
रिसर्च में कौन-कौन शामिल
इस रिसर्च में तीन विशेषज्ञ थे. जिनमें भारत के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन के अलावा हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के अभिषेक आनंद और सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट के जस्टिन सेंडफर शामिल है. रिसर्च के मुताबिक सभी अनुमान भारत में मौत के सरकारी आंकड़े चार लाख से बहुत अधिक हैं. दूसरी लहर के मुकाबले पहली लहर का कहर भले कम नजर आता हो लेकिन इन विशेषज्ञों के मुताबिक पहली लहर भी घातक थी.
कैसे निकाला गया मौत का आंकड़ा ?
पहली विधि में, टीम ने 7 राज्यों आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश से कोरोना से हुई मौतों का आंकड़ा लिया गया. इन राज्यों में भारत की कुल आबादी का आधा हिस्सा रहता है. इन सात राज्यों और आबादी के आधार पर देशभर में 3.4 मिलयन यानि 34 लाख मौत का अनुमान लगाया गया. हालांकि टीम ने माना कि 7 राज्यों के आंकड़ों के आधार पर देशभर में कोरोना संक्रमण से मौत के आंकड़ों तक पहुंचने की कुछ सीमाएं हैं. वो भी तब जब हर राज्य में कोरोना का असर और स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल अलग-अलग है. राज्यों से लिए आंकड़े इस साल मई तक के हैं.
7 राज्यों में मौत के आंकड़ों के आधार पर 13 महीने लंबी चली पहली लहर में 2 मिलियन यानि 20 लाख की मौत हुए जब 1.4 मिलियन यानि 14 लाख लोगों की मौत लगभग तीन महीने की तीसरी लहर के दौरान हुई. जबकि सरकार द्वारा मौत का आधिकारिक आंकड़ा पहली लहर में 1.6 लाख और दूसरी लहर में 2.4 लाख है.
दूसरी विधि में सीरो सर्वे के डेटा का इस्तेमाल किया जिसमें देश की आबादी में कोविड-19 एंटीबॉडी की उपस्थिति का पता चलता है और आयु-विशिष्ट संक्रमण मृत्यु दर (आईएफआर) के अंतरराष्ट्रीय अनुमानों को लागू करता है. जो किसी देश में कुल संक्रमितों के मुकाबले मौत के अनुपात को बताता है. दूसरी विधि के अनुसार, भारत में कोविड की मृत्यु का आंकड़ा लगभग 4 मिलियन (40 लाख) से भी अधिक हो सकता है, जो राज्यों द्वारा बताई गई आधिकारिक संख्या का दस गुना है. जो राज्यों द्वारा जारी आंकड़ों से दस गुना अधिक है. उनके अनुमान से पता चलता है कि पहली और दूसरी लहर में क्रमश: 1.5 और 2.4 मिलियन मौतें हो सकती है, जिससे कुल संख्या 3.9 मिलियन हो जाती है.
इसके अलावा मौतों का सरकारी संस्थाओं द्वारा पंजीकरण और घर-घर सर्वे के डाटा का इस्तेमाल किया गया. CPHS ( Consumer Pyramid Household Survey) ने साल में तीन बार सभी राज्यों में 8 लाख से अधिक लोगों को सर्वेक्षण के दौरान कवर किया. हर चार महीने में हुए इस सर्वे के दौरान लोगों से पूछा गया कि क्या पिछले 4 महीने में परिवार में कोई मौत हुए, हालांकि यहां मौत की वजह नहीं पूछी गई. इस डाटा के मुताबिक पहली लहर में 3.4 मिलियन और दूसीर लहर में 1.5 मिलियन लोगों की मौत हुई. इस तरह दोनों लहरों के दौरान मौत के आंकड़े का अनुमान 4.9 मिलियन लगाया गया.
तीन डेटा स्रोतों में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ यह है कि राज्यों के नागरिक पंजीकरण डेटा (सीआरएस) और सीएमआईई के उपभोक्ता पिरामिड घरेलू सर्वेक्षण (सीपीएचएस) के आंकड़ों से पता चलता है कि पहली लहर में कोविड की मौत का आंकड़ा क्रमशः 2 मिलियन और 3.4 मिलियन था और दूसरी लहर में मृत्यु संख्या 1.4 मिलियन और 1.5 मिलियन है.
जबकि, भारत की जनसांख्यिकी और सीरो-प्रचलन दर पर लागू अंतर्राष्ट्रीय संक्रमण मृत्यु दर (IFR) का उपयोग करते हुए लेखकों के विश्लेषण ने सुझाव दिया कि कोविड से मृत्यु पहली लहर में 1.5 मिलियन से कम और दूसरी लहर में 2.4 मिलियन से अधिक है.
पहली लहर में मृतकों का आंकड़ा छिपाना बना दूसरी लहर का कारण
रिपोर्ट में, विशेषज्ञों ने जोर देकर कहा कि पहली लहर में कोरोना से मौत के वास्तविक आंकड़े छिपाने के कारण दूसरी लहर पैदा हुई.
"भले देखने में पहली लहर को कम खतरनाक माना गया लेकिन ये उससे कहीं अधिक घातक थी. क्योंकि ये कम वक्त में अधिक से अधिक स्थानों तक फैल गई. जबकि दूसरी लहर के आंकड़ों में अचानक और तेज उछाल देखा गया जो कि पहली लहर में मध्यम थी''
“लेकिन सीआरएस के आंकड़े भी बताते हैं कि उस अवधि में 20 लाख लोगों की मौत हो सकती थी. वास्तव में, पहली लहर में मौत के आंकड़े कम आने से लोगों में डर भी कम रहा. जिसके कारण दूसरी लहर में स्थिति और भी भयावह हो गई. ऐसे में अगर आंकड़ों को छिपाया जाए तो तीसरी लहर में मौत का आंकड़ा और भी अधिक हो सकता है''
प्रत्येक डेटा स्रोत की सीमाओं को स्वीकार करते हुए, लेखकों ने कहा कि डेटा-आधारित अनुमानों को समझना और उनसे जुड़ना आवश्यक था क्योंकि इस भयावह त्रासदी में, गिनती और जवाबदेही की गणना भविष्य के लिए भी होगी.
लेखकों ने स्वीकार किया कि उनके द्वारा उपयोग किए गए तीन डेटा स्रोतों के अनुसार, अतिरिक्त कोविड की मृत्यु कुल मिलाकर 1 मिलियन से 6 मिलियन की सीमा में हो सकती है, केंद्रीय अनुमान 3.4 से 4.9 मिलियन के बीच भिन्न हो सकते हैं.
“स्रोत और अनुमान के बावजूद, कोविड महामारी के दौरान वास्तविक मौतें आधिकारिक गणना से अधिक परिमाण का एक क्रम होने की संभावना है. मौतों की संभावना सैंकड़ों और हजारों में नहीं लाखों में हो सकती हैं. जिससे यह यकीनन भारत की विभाजन और आजादी के बाद से सबसे खराब मानवीय त्रासदी बन गई है"
1.19 लाख बच्चों ने माता-पिता को खोया
उधर नेशनल इंस्टीट्यूड ऑन ड्रग एब्यूज (एनआईडीए) और नेशनल इंस्टीट्यूट्स ऑफ हेल्थ के अध्ययन में कहा गया है कि भारत में 25,500 बच्चों ने कोविड के कारण अपनी मां को खो दिया जबकि 90,751 बच्चों ने अपने पिता को खोया. वहीं 12 बच्चे ऐसे थे जिन्होंने अपने माता और पिता दोनों को खोया. कोरोना महामारी के पहले 14 महीने के दौरान देश में 1.19 लाख बच्चों ने अपने माता-पिता को खोया. जबति कुल 21 देशों में 15 लाख से ज्यादा बच्चों ने कोरोना संक्रमण के कारण अपने माता-पिता को खो दिया.
तीसरी लहर और डेल्टा प्लस
भारत में दूसरी लहर के बाद मामले भले कम हुए हैं लेकिन फिलहाल अब भी 40 हजार से अधिक मामले रोजाना सामने आ रहे हैं. कई विशेषज्ञ अगस्त और सितंबर में कोरोना की तीसरी लहर की भविष्यवाणी कर रहे हैं. कोरोना के डेल्टा प्लस वेरिएंट के मामले में देश में लगातार सामने आ रहे हैं. कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि तीसरी लहर के लिए डेल्टा प्लस वेरिएंट ही जिम्मेदार होगा, साथ ही देशभर में लॉकडाउन में मिली छूट के बाद बाजार से लेकर सड़कों और पर्यटन स्थलों तक भीड़ जुटने लगी है. सरकार से लेकर वैज्ञानिक तक चेतावनी दे चुके हैं कि इस तरह की भीड़ कोरोना की तीसरी लहर को न्योता दे सकती है.
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