नई दिल्ली: कांग्रेस सांसद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को सूरत की एक अदालत ने मानहानि मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद दो साल जेल की सजा सुनाई है. शुक्रवार को लोकसभा सचिवालय ने नोटिफिकेशन जारी कर उनकी सदस्यता रद्द करने की घोषणा कर दी. देखा जाए तो राहुल पर खतरा उसी अध्यादेश को लेकर मंडरा रहा था, जिसे उन्होंने खुद फाड़ दिया था. दूसरे शब्दों में कहें तो अगर 2013 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश को सार्वजनिक रूप से रद्द नहीं किया गया होता तो उन पर ये खतरा नहीं होता.
10 जुलाई, 2013 के सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले में उस आदेश को पलट दिया था जिसमें दोषी सांसदों, विधायकों, एमएलसी को अपनी सीट बरकरार रखने की तब तक अनुमति दी गई थी, जब तक कि वे भारत के सर्वोच्च न्यायालय से दोषी नहीं करार दिए जाते. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि दोषी पाए जाने पर सांसदों-विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी जाएगी. इस पर मनमनोहन सरकार इस फैसले को पलटने के लिए अध्यादेश लाई थी. इस पर भाजपा और अन्य विपक्ष ने आरोप लगाए कि सरकार भ्रष्टाचारियों को बचाना चाहती है. बराबर विपक्ष का निशाना बनने के बाद राहुल गांधी ने सार्वजनिक रूप से उस अध्यादेश को बकवास बताते हुए खुद फाड़ दिया था. अब वही अध्यादेश राहुल के लिए फांस बनता नजर आ रहा है.
पहले का आदेश ये था : लिली थॉमस बनाम भारत सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि 'कोई भी सांसद, विधायक या एमएलसी जिसे अपराध का दोषी ठहराया जाता है और न्यूनतम 2 साल की जेल की सजा दी जाती है, वह तत्काल प्रभाव से सदन की सदस्यता खो देता है.' इसने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8(4) को रद्द कर दिया, जिसने निर्वाचित प्रतिनिधियों को अपनी सजा के खिलाफ अपील करने की अनुमति को 'असंवैधानिक' बताया.
दो महीने बाद, यूपीए सरकार ने आदेश को नकारने के लिए एक अध्यादेश पारित किया. इसे चारा घोटाला मामले में दोषी साबित होने पर राजद सुप्रीमो और कांग्रेस के सहयोगी लालू प्रसाद को अयोग्यता से बचाने के कदम के रूप में देखा गया था. दूसरी ओर वयोवृद्ध कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद राशिद मसूद, पहले से ही भ्रष्टाचार के एक मामले में दोषी थे और तत्काल अयोग्यता का सामना कर रहे थे.
इस पर भाजपा और वाम दलों सहित उस समय के विपक्ष ने अध्यादेश को लेकर मनमोहन सिंह सरकार और कांग्रेस की कड़ी आलोचना की, और दोषी सांसदों को बचाने का आरोप लगाया था. अध्यादेश पारित होने के कुछ दिनों बाद, 27 सितंबर 2013 को राहुल ने दिल्ली में पार्टी के एक प्रेस कार्यक्रम में नाटकीय ढंग से इंट्री की सार्वजनिक रूप से यूपीए सरकार को अध्यादेश 'पूरी तरह से बकवास' कहा, और कहा कि इसे 'फाड़कर फेंक दिया जाना चाहिए'
प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए, राहुल ने कहा, 'मैं आपको बता रहा हूं कि आंतरिक रूप से क्या हो रहा है - हमें राजनीतिक विचारों के कारण ऐसा (अध्यादेश लाने) की आवश्यकता है हर कोई ऐसा करता है. कांग्रेस पार्टी ऐसा करती है, बीजेपी ऐसा करती है, जनता दल ऐसा करती है, समाजवादी पार्टी ऐसा करती है और हर कोई ऐसा करता है. और इस बकवास को रोकने का समय आ गया है.'
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