नई दिल्ली : 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार आई तो कई कल्याणकारी योजनाएं शुरु की गईं. इनमें वे योजनाएं भी शामिल हैं जो मुस्लिम वोट बैंक को ध्यान में रखकर बनाई और धरातल पर उतारी गईं. चाहे वह महिलाओं को तीन तलाक जैसी कुरीति से छुटकारा दिलाने का काम हो या मुस्लिम छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति.
इनसे अलावा महिलाओं की उज्जवला योजना, सौभाग्य योजना, राशन कार्ड पर महिला मुखिया का होना, महिलाओं के लिए जनधन खाता योजना कुछ ऐसी योजनाएं रही हैं जो कहीं न कहीं इस समुदाय के कुछ प्रतिशत वोट बैंक को भाजपा की तरफ देखने मोड़ने में सफलता पाई है.
देखा जाए तो 2014 के बाद से नरेंद्र मोदी सरकार ने अल्पसंख्यक वर्गों के लिए जितने भी कार्यक्रम बनाए हैं उसकी सफलता का ग्राफ अच्छा रहा है. अब बीजेपी की नजर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोट बैंक पर भी है. लेकिन पार्टी इस मामले में फूंक-फूंककर कदम रख रही है. योजनाएं ऐसी बन रही हैं ताकि मुस्लिम मतदाताओं को रिझाया जा सके और बीजेपी के हिंदू मतदाता अलग न हों. अब इसकी जिम्मेदारी अल्पसंख्यक मोर्चा के कार्यकर्ताओं को सौंपी गई है.
यह है भाजपा की रणनीति
सत्ताधारी बीजेपी इस बार के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोट पाने की रणनीति पर काम कर रही है और पार्टी का लक्ष्य है कि हर विधानसभा में कम से कम 5000 मुस्लिम वोट उसे मिलें. देखा जाए तो यूपी विधानसभा में लगभग 50 सीटें ऐसी हैं जो मुस्लिम बहुल हैं और इन पर बीजेपी पिछले विधानसभा चुनाव में पांच हजार वोट या उससे भी कम वोटों से हारी थी. उत्तर प्रदेश में कुल 403 विधानसभा सीट है और किसी भी पार्टी को बहुमत के लिए 202 सीटों की जरूरत होती है. जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 325 सीटें मिली थी.
हर विधानसभा पर पैनी नजर
पिछली बार बीजेपी के पास कोई सीएम चेहरा नहीं था लेकिन इस बार मुख्यमंत्री का सशक्त चेहरा भी मौजूद है. इसलिए पार्टी ने हिंदू वोट बैंक के साथ-साथ अल्पसंख्यक वोट बैंक को भी रिझाने में कोई कसर नहीं रखना चाहती. बीजेपी ने अल्पसंख्यक मोर्चा के सक्रिय सदस्यों को चुनाव के दौरान जनता के बीच भेजने का काम करेगी. हर विधानसभा में 50 अल्पसंख्यक मजबूत कार्यकर्ताओं को चिन्हित किया जा रहा है. हर ट्रेंड कार्यकर्ता को पार्टी के पक्ष में कम से कम 100 मुस्लिम मतदाताओं के वोट दिलाने का टारगेट दिया गया है. यानी एक विधानसभा में 5000 मुस्लिम वोट का लक्ष्य रखा गया है.
यहां से मिला आइडिया
इसके पीछे की मुख्य वजह यह भी मानी जा रही है कि हाल में हुए बंगाल विधानसभा चुनाव में बीजेपी 20 फीसदी सीट मात्र 5000 या इससे कम वोटों से हारी है. यह वे इलाके थे जहां मुस्लिम बहुल मतदाता हैं. यूपी में भी 50 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम बहुल जनसंख्या है. सूत्रों की मानें तो वहां भाजपा इस बार मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने पर भी विचार कर सकती है.
क्या कहते हैं मुस्लिम नेता
इस मुद्दे पर बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष बासित अली ने कहा कि अब मुस्लिम वोटर्स बीजेपी को अछूती पार्टी नहीं मानते और खासतौर पर तीन तलाक जैसी कुरीति से छुटकारा पाने के बाद तो मुस्लिम वर्ग की महिलाओं का एक बड़ा वर्ग पार्टी से जुड़ा है. उन्होंने कहा कि हमारी सरकार अल्पसंख्यक बालिकाओं की शिक्षा और ड्रॉप आउट को कम करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है. उन्हें छात्रवृत्ति दी जा रही है.
यह भी पढ़ें- उत्तरप्रदेश में अलीगढ़ बनेगा हरिगढ़, शहरों का नाम बदलना जरूरी है या सियासी मजबूरी है
उन्होंने कहा की अल्पसंख्यक मोर्चा के कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग दी जा रही ताकि वे सरकार की योजनाओं को अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों को बता सकें. उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि मुस्लिम इस बार बड़ी संख्या में बीजेपी को वोट करेंगे.