धमतरी: इंसान यदि गलती करे तो अदालत में उसे सजा सुनाई जाती है.लेकिन छत्तीसगढ़ में एक अदालत ऐसी भी है.जिसमें देवी देवताओं को भी सजा मिलती है.सुनने में अजीब लग रहा हो लेकिन ये सच है. ये सजा देवी देवताओं के न्यायधीश देते हैं. जिन्हें लोग भंगाराव माई के नाम से जाना जाता है. भंगाराव माई की अदालत में देवी देवताओं को भी गलती की सजा मिलती है.
कहां देवी देवताओं को दी जाती है सजा ? (Unique story of Chhattisgarh) : छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के आदिवासी समाज में ये परंपरा सैंकड़ों साल से चली आ रही है. भंगाराव देवी को मानने वाले लोगों के मुताबिक आदिवासी समाज की रुढ़ी देवप्रथा के परंपरा अनुसार कुलदेवी-देवताओं को, भी अपने आप को दोषमुक्त साबित करना होता है.इसके लिए भंगाराव माई का दरबार लगता है.सुनवाई के बाद यहां अपराधी को दंड और वादी को इंसाफ मिलता है.धमतरी जिले के कुर्सीघाट बोराई में हर साल भादों माह में आदिवासी देवी देवताओं के न्यायधीश भंगा राव माई की जात्रा होती है. जिसमें बीस कोस बस्तर और सात पाली ओड़िसा सहित सोलह परगना सिहावा के देवी देवता इकट्ठा होते हैं.
हजारों की संख्या में जुटे ग्रामीण : इस अनोखी प्रथा और न्याय के दरबार का साक्षी बनने 9 सितम्बर को हजारों की तादाद में लोग कुर्सीघाट पहुंचे. जहां कुंवरपाट और डाकदार की अगुवाई में यह जात्रा पूरे विधि विधान के साथ संपन्न हुई. कुर्सीघाट में सदियों पुराना भंगाराव माई का दरबार है. जिसे देवी देवताओं के न्यायालय के रूप में जाना जाता है.ऐसा माना जाता है कि भंगाराव माई की मान्यता के बिना क्षेत्र में कोई भी देवी देवता कार्य नहीं कर सकता है. इस विशेष न्यायालय स्थल पर महिलाओं का आना प्रतिबंधित है.
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ऐसी अदालत जहां देवी देवता को भी मिलती है सजा |
क्यों देवी देवताओं को दी जाती है सजा ? : मान्यता है कि आस्था और विश्वास के कारण देवी देवताओं की लोग उपासना करते है. लेकिन देवी देवता अपने कर्तव्य का निर्वहन करने में असफल हुए तो भंगाराव माई के दरबार में उन्हें सजा मिलती है. सुनवाई के दौरान देवी देवता एक कठघरे में खड़े होते हैं. यहां भंगाराव माई न्यायाधीश के रूप में विराजमान होते हैं. गांव में होने वाली किसी प्रकार की कष्ट,परेशानी को दूर न कर पाने की स्थिति में गांव में स्थापित देवी-देवताओं को ही दोषी माना जाता है. सुनवाई के बाद यहां अपराधी को दंड और वादी को इंसाफ मिलता है.
''भंगाराम माई की जो कथा है काफी अचरज करने वाली है.ये माई बंग देश से आईं.इसलिए बंग देश से आने के कारण इनका नाम भंगाराव पड़ा. क्षेत्र में कई तरह की देवी देवताओं की समस्याएं रहती हैं.इसलिए ये एक न्यायालय के रुप में स्थापित हुआ है.' रामप्रसाद मरकाम, ग्रामीण
बकरी, मुर्गी और स्थानीय चीजों को देवी देवताओं का दर्जा : विदाई के तौर पर देवी देवताओं के नाम से चिन्हित बकरी, मुर्गी और लाट, बैरंग, डोली को नारियल फूल चावल के साथ लेकर ग्रामीण साल में एक बार लगने वाले भंगाराव जात्रा में आते हैं.यहां भंगाराव माई की उपस्थिति में कई गांवों से आए शैतान, देवी-देवताओं की एक-एक कर शिनाख्ती की जाती है.इसके बाद आंगा, डोली, बैरंग के साथ लाए गए मुर्गी, बकरी, डांग को खाईनुमा गहरे गड्ढे किनारे फेंक दिया जाता है. जिसे ग्रामीण कारागार कहते है.
''जैसे कचहरी में दोषियों को सजा मिलती है. जांच किया जाता है और बयान लिया जाता है. ठीक उसी तरह यहां भंगाराव के द्वारा हर देवियों की परीक्षा ली जाती है.गलती किया है या उसके गांव में वो सुरक्षा नहीं दिया है तो उसका भी ये दंड का भागीदारी बनाता है.'' मनोज साक्षी
कैसे सुनाई जाती है सजा : ? पूजा अर्चना के बाद देवी देवताओं पर लगने वाले आरोपों की गंभीरता से सुनवाई होती है.आरोपी पक्ष की ओर से दलील पेश करने सिरहा, पुजारी, गायता, माझी, पटेल सहित ग्राम के प्रमुख उपस्थित होते हैं.दोनों पक्षों की गंभीरता से सुनवाई के बाद आरोप सिद्ध होने पर फैसला सुनाया जाता है. दोषी पाए जाने पर देवी-देवताओं को सजा दी जाती है. ग्रामीणों की माने तो इस साल माई ने चोला बदला है.इसलिए यात्रा काफी महत्वपूर्ण है.
''इस साल यह जात्रा इसलिए और महत्वपूर्ण है क्योंकि कई पीढ़ी बाद इस बार देवता ने अपना चोला बदला है.'' कुंदन साक्षी,ग्रामीण
इस परंपरा को समझने और इसके इंसाफ के तरीके को लेकर कई मत हो सकते हैं.लेकिन जिन देवी देवताओं की आराधना इंसान करता हो,यदि उन्हें भी सजा मिले तो ये अजीब जरुर है.लेकिन कुर्सीघाट में ये परंपरा ना जाने कब से यूं ही चली आ रही है.जिसमें देवी देवताओं को अपना कार्य ठीक तरीके से ना कर पाने के कारण सजा का हकदार बनना पड़ता है.