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कोविड-19 का बच्चों और युवाओं पर अधिक प्रभाव पड़ा : यूनिसेफ

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Published : Nov 20, 2020, 4:06 PM IST

कोविड-19 का स्पष्ट रूप से बच्चों और युवाओं पर अधिक प्रभाव पड़ा है. शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, पोषण और बाल संरक्षण जैसी आवश्यक सेवाओं में रुकावट से बच्चों को नुकसान हो रहा है. पढ़िए यूनिसेफ की रिपोर्ट.

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हैदराबाद: कोविड-19 महामारी शुरू होने के लगभग एक साल बाद दस लाख से अधिक लोगों की मौत हो गई है. महामारी का स्पष्ट रूप से बच्चों और युवाओं पर वायरस का प्रभाव पड़ा है. बच्चों को रोग, आवश्यक सेवाओं में रुकावट और बढ़ती गरीबी से जूझना पड़ रहा है.

किसी भी अन्य आयु वर्ग की तुलना में कम प्रभावित होने के बावजूद आंकड़ों से पता चलता है कि बच्चों और युवाओं के स्वास्थ्य पर कोविड​​-19 का अधिक प्रभाव पड़ा है. इसका अनुमान मूल रूप से 2019 के अंत में संकट शुरू होने पर ही लग गया था. शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल जैसी आवश्यक सेवाओं में व्यवधान से बच्चों के पोषण और बाल संरक्षण को नुकसान हो रहा है. एक गंभीर वैश्विक आर्थिक मंदी बच्चों के लिए पहले से मौजूद असमानताओं को और गहरा कर रही है.

विश्व बाल दिवस पर यूनिसेफ ने बच्चों और युवाओं पर कोविड-19 के वैश्विक प्रभाव का आंकड़ा जारी किया है. इसमें बताया गया है कि नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों और शोध के बावजूद दुनिया पशोपेश में है कि बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए क्या किया जाए? यूनिसेफ ने सभी देशों से बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए साहसिक और अभूतपूर्व कदम उठाने के लिए आग्रह किया है.

87 देशों से जुटाए यूनिसेफ के विश्लेषण के अनुसार, इन देशों में नवंबर 2020 तक बच्चों और किशोरों में 11 प्रतिशत कोविड​-19 संक्रमण की सूचना है. शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, पोषण और बाल संरक्षण जैसी आवश्यक सेवाओं में रुकावट से बच्चों को नुकसान हो रहा है.

एक गंभीर वैश्विक आर्थिक मंदी बच्चों को प्रभावित कर रही है और पूर्व विद्यमान असमानताओं को जटिल बना रही है. अधिकांश वंचित परिवार आजीविका और स्वास्थ्य सेवा के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

पढ़ें- 2024 तक भारत के हर नागरिक तक पहुंचेगी कोरोना की वैक्सीन : सीरम

स्वास्थ्य सेवा, पोषण, शिक्षा, पानी और स्वच्छता व सामाजिक और बाल संरक्षण सेवाओं में व्यवधान बच्चों और युवाओं के लिए विनाशकारी रहा है. महामारी से पहले भी लगभग 45 प्रतिशत बच्चे गंभीर रूप से कम से कम इन महत्वपूर्ण जरूरतों से वंचित थे.

कोविड के बाद सुविधा आधारित देखभाल जैसे बच्चे के जन्म की सेवाओं, टीकाकरण, गंभीर कुपोषण से पीड़ित बच्चों के उपचार और स्वास्थ्य देखभाल में और गिरावट आई है. विशेष रूप से दक्षिण एशिया, मध्य पूर्व और लैटिन अमेरिका के कई देशों में यह देखने को मिल रहा है.

हैदराबाद: कोविड-19 महामारी शुरू होने के लगभग एक साल बाद दस लाख से अधिक लोगों की मौत हो गई है. महामारी का स्पष्ट रूप से बच्चों और युवाओं पर वायरस का प्रभाव पड़ा है. बच्चों को रोग, आवश्यक सेवाओं में रुकावट और बढ़ती गरीबी से जूझना पड़ रहा है.

किसी भी अन्य आयु वर्ग की तुलना में कम प्रभावित होने के बावजूद आंकड़ों से पता चलता है कि बच्चों और युवाओं के स्वास्थ्य पर कोविड​​-19 का अधिक प्रभाव पड़ा है. इसका अनुमान मूल रूप से 2019 के अंत में संकट शुरू होने पर ही लग गया था. शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल जैसी आवश्यक सेवाओं में व्यवधान से बच्चों के पोषण और बाल संरक्षण को नुकसान हो रहा है. एक गंभीर वैश्विक आर्थिक मंदी बच्चों के लिए पहले से मौजूद असमानताओं को और गहरा कर रही है.

विश्व बाल दिवस पर यूनिसेफ ने बच्चों और युवाओं पर कोविड-19 के वैश्विक प्रभाव का आंकड़ा जारी किया है. इसमें बताया गया है कि नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों और शोध के बावजूद दुनिया पशोपेश में है कि बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए क्या किया जाए? यूनिसेफ ने सभी देशों से बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए साहसिक और अभूतपूर्व कदम उठाने के लिए आग्रह किया है.

87 देशों से जुटाए यूनिसेफ के विश्लेषण के अनुसार, इन देशों में नवंबर 2020 तक बच्चों और किशोरों में 11 प्रतिशत कोविड​-19 संक्रमण की सूचना है. शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, पोषण और बाल संरक्षण जैसी आवश्यक सेवाओं में रुकावट से बच्चों को नुकसान हो रहा है.

एक गंभीर वैश्विक आर्थिक मंदी बच्चों को प्रभावित कर रही है और पूर्व विद्यमान असमानताओं को जटिल बना रही है. अधिकांश वंचित परिवार आजीविका और स्वास्थ्य सेवा के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

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स्वास्थ्य सेवा, पोषण, शिक्षा, पानी और स्वच्छता व सामाजिक और बाल संरक्षण सेवाओं में व्यवधान बच्चों और युवाओं के लिए विनाशकारी रहा है. महामारी से पहले भी लगभग 45 प्रतिशत बच्चे गंभीर रूप से कम से कम इन महत्वपूर्ण जरूरतों से वंचित थे.

कोविड के बाद सुविधा आधारित देखभाल जैसे बच्चे के जन्म की सेवाओं, टीकाकरण, गंभीर कुपोषण से पीड़ित बच्चों के उपचार और स्वास्थ्य देखभाल में और गिरावट आई है. विशेष रूप से दक्षिण एशिया, मध्य पूर्व और लैटिन अमेरिका के कई देशों में यह देखने को मिल रहा है.

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