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एंबुलेंस का किराया नहीं दे पाने पर पिता ने झोले में रखा पांच महीने के शिशु का शव, तय की 200 KM की दूरी - इलाज के दैरान पांच महीने के बच्चे की हुई मौत

पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में एक पिता को अपने 5 महीने के बच्चे की लाश झोले में सफर करना पड़ा. उन्होंने बताया कि सरकारी अस्पताल में इलाज के बाद उसके पांच महीने के शिशु की मौत हो गई थी. जिसके बाद शव को ले जाने के लिए जब उसने एंबुलेंस वाले बात की तो उसने 8000 रुपये मांगे.

West Bengal News
उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज और अस्पताल
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Published : May 15, 2023, 10:45 AM IST

कोलकाता : पश्चिम बंगाल एक प्रशासनिक चूक का एक और शर्मनाक वाकया सामने आया है. एंबुलेंस का किराया देने में असमर्थ पिता को अपने पांच महीने के बच्चे का शव झोले में रख कर 200 किमी की यात्रा करनी पड़ी. बताया जा रहा है कि पीड़ित पिता असीम देबश्रमा अपने पांच महीने के बेटे के शव को सिलीगुड़ी (दार्जिलिंग जिला) से कलियागंज (उत्तर दिनाजपुर जिला) तक बस से लेकर गया. करीब 200 किलोमीटर का सफर सिलीगुड़ी के बस स्टैंड से शनिवार की रात से शुरू हुई और रविवार की दोपहर कलियागंज में समाप्त हुई. जहां पिता ने मीडिया को अपनी दर्द भरी यात्रा के बारे में बताया.

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पीड़ित असीम देबश्रमा अस्पताल के कागज दिखाता हुआ.

पढ़ें : Bengal News : कलकत्ता हाईकोर्ट ने रद्द कीं 36 हजार प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्तियां

उत्तरी दिनाजपुर जिले के डांगीपारा गांव के रहने वाले असीम देबश्रमा ने बताया कि पांच महीने पहले उनकी पत्नी ने जुड़वा बेटों को जन्म दिया था. सात मई को दोनों बीमार पड़ गये. दोनों बेटों को उत्तर दिनाजपुर जिले के रायगंज सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में भर्ती कराया गया. उनकी स्वास्थ्य स्थिति में कोई सुधार नहीं होने पर, दोनों को दार्जिलिंग के सिलीगुड़ी में उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (NBMCH) रेफर कर दिया गया. 10 मई को, दो बेटों में से एक की हालत में सुधार होने पर, उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई. आसिम की पत्नी उस बेटे के साथ अपने कालीगंज आ गई.

जबकि दूसरे बेटे की हालत लगातार अस्थिर बनी हुई थी. एनबीएमसीएच में ही उसका इलाज चलता रहा. असीम अस्पताल में अपने बेटे के पास रहे. शनिवार को डॉक्टरों ने बीमार शिशु को मृत घोषित कर दिया. जब असीम ने एंबुलेंस की सेवा के लिए फोन किया तो एंबुलेंस सेवा के बदले उससे आठ हजार रुपये की मांग की गई. असीम ने बताया कि बच्चों के इलाज में पहले ही 16 हजार रुपये खर्ज हो गये थे. अब एंबुलेंस को देने के लिए उसके पास और अधिक पैसे नहीं थे. ऐसे में उसने एक एजेंट की मदद से शव को बस में ले जाने की व्यवस्था की.

पढ़ें : Medicine Diploma course : विशेषज्ञों ने तीन वर्षीय मेडिसिन डिप्लोमा कोर्स में घोटाले की आशंका समेत बताए ये नुकसान

अब इस मामले में पश्चिम बंगाल सरकार आलोचनाओं में घिर गई है. भाजपा ने कहा कि सरकार एक ओर दावा करती है कि मरीजों को मुफ्त एंबुलेंस की सेवा दी जाती है. दूसरी ओर एक शिशु के मौत के बाद उसके पिता को इस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा. इस मामले में उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के प्रिंसिपल इंद्रजीत साहा ने कहा कि उस व्यक्ति ने अस्पताल के अधिकारियों को सूचित नहीं किया.

उसने ना तो ऐसी कोई मांग रखी और ना ही किसी एंबुलेंस चालक की शिकायत की. शिकायत मिलने पर हम जांच करेंगे. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के निर्देश पर इस तरह की किसी भी शिकायत को जल्दी से निपटाया जाता है. हमारे पास शव वाहन या शव ले जाने के लिए एंबुलेंस नहीं है. लेकिन मरीज के परिवार को ऐसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, तो अस्पताल के रोगी कल्याण संघ के फंड से व्यवस्था की जाती है. हमसे किसी ने संपर्क ही नहीं किया.

पढ़ें : Mamata proposes: ममता बनर्जी ने डॉक्टर बनने के लिए 3 साल के डिप्लोमा कोर्स का प्रस्ताव रखा

कोलकाता : पश्चिम बंगाल एक प्रशासनिक चूक का एक और शर्मनाक वाकया सामने आया है. एंबुलेंस का किराया देने में असमर्थ पिता को अपने पांच महीने के बच्चे का शव झोले में रख कर 200 किमी की यात्रा करनी पड़ी. बताया जा रहा है कि पीड़ित पिता असीम देबश्रमा अपने पांच महीने के बेटे के शव को सिलीगुड़ी (दार्जिलिंग जिला) से कलियागंज (उत्तर दिनाजपुर जिला) तक बस से लेकर गया. करीब 200 किलोमीटर का सफर सिलीगुड़ी के बस स्टैंड से शनिवार की रात से शुरू हुई और रविवार की दोपहर कलियागंज में समाप्त हुई. जहां पिता ने मीडिया को अपनी दर्द भरी यात्रा के बारे में बताया.

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पीड़ित असीम देबश्रमा अस्पताल के कागज दिखाता हुआ.

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उत्तरी दिनाजपुर जिले के डांगीपारा गांव के रहने वाले असीम देबश्रमा ने बताया कि पांच महीने पहले उनकी पत्नी ने जुड़वा बेटों को जन्म दिया था. सात मई को दोनों बीमार पड़ गये. दोनों बेटों को उत्तर दिनाजपुर जिले के रायगंज सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में भर्ती कराया गया. उनकी स्वास्थ्य स्थिति में कोई सुधार नहीं होने पर, दोनों को दार्जिलिंग के सिलीगुड़ी में उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (NBMCH) रेफर कर दिया गया. 10 मई को, दो बेटों में से एक की हालत में सुधार होने पर, उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई. आसिम की पत्नी उस बेटे के साथ अपने कालीगंज आ गई.

जबकि दूसरे बेटे की हालत लगातार अस्थिर बनी हुई थी. एनबीएमसीएच में ही उसका इलाज चलता रहा. असीम अस्पताल में अपने बेटे के पास रहे. शनिवार को डॉक्टरों ने बीमार शिशु को मृत घोषित कर दिया. जब असीम ने एंबुलेंस की सेवा के लिए फोन किया तो एंबुलेंस सेवा के बदले उससे आठ हजार रुपये की मांग की गई. असीम ने बताया कि बच्चों के इलाज में पहले ही 16 हजार रुपये खर्ज हो गये थे. अब एंबुलेंस को देने के लिए उसके पास और अधिक पैसे नहीं थे. ऐसे में उसने एक एजेंट की मदद से शव को बस में ले जाने की व्यवस्था की.

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अब इस मामले में पश्चिम बंगाल सरकार आलोचनाओं में घिर गई है. भाजपा ने कहा कि सरकार एक ओर दावा करती है कि मरीजों को मुफ्त एंबुलेंस की सेवा दी जाती है. दूसरी ओर एक शिशु के मौत के बाद उसके पिता को इस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा. इस मामले में उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के प्रिंसिपल इंद्रजीत साहा ने कहा कि उस व्यक्ति ने अस्पताल के अधिकारियों को सूचित नहीं किया.

उसने ना तो ऐसी कोई मांग रखी और ना ही किसी एंबुलेंस चालक की शिकायत की. शिकायत मिलने पर हम जांच करेंगे. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के निर्देश पर इस तरह की किसी भी शिकायत को जल्दी से निपटाया जाता है. हमारे पास शव वाहन या शव ले जाने के लिए एंबुलेंस नहीं है. लेकिन मरीज के परिवार को ऐसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, तो अस्पताल के रोगी कल्याण संघ के फंड से व्यवस्था की जाती है. हमसे किसी ने संपर्क ही नहीं किया.

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