ETV Bharat / bharat

महिलाओं का नहीं है अपने ही शरीर पर अधिकार : संयुक्त राष्ट्र

दुनिया में इंसानों की लगभग आधी आबादी महिलाओं की है. महिलाओं के खिलाफ अपराध और भेदभाव अतीत में तो होते ही थे, लेकिन वर्तमान में भी मानव समाज को इससे मुक्ति नहीं मिली है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्व में सिर्फ 50 प्रतिशत महिलाओं का अपने शरीर पर पूर्ण अधिकार है.

women with body autonomy
women with body autonomy
author img

By

Published : Apr 16, 2021, 9:16 AM IST

Updated : Apr 16, 2021, 9:31 AM IST

हैदराबाद : विकासशील देशों में रह रही महिलाओं में सिर्फ 50 प्रतिशत का अपने शरीर पर पूर्ण अधिकार है. 57 देशों में रह रहीं 50 प्रतिशत महिलाओं के पास अपने शरीर से जुड़े निर्णय लेने का अधिकार नहीं है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है. इसमें यौन संबंध, गर्भनिरोधक और स्वास्थ्य से जुड़े निर्णय शामिल हैं. इसके अलावा उन्हें दुष्कर्म, जबरन नसबंदी और जननांग विकृति जैसी सामाजिक विकृतियों का समना करना पड़ता है.

'The My Body is My Own' अध्ययन में बलात्कार, जबरन नसबंदी, कौमार्य परीक्षण और जननांग विकृति सहित महिलाओं के खिलाफ प्रचिलित कुप्रथाओं को सूचिबद्ध किया गया है.

संयुक्त राष्ट्र की यूएनएफपीए की प्रमुख नतालिया कनेम ने कहा कि लाखों महिलाओं और लड़कियों का अपने ही शरीर पर पूर्ण अधिकार नहीं होता है. उनका जीवन दूसरों द्वारा नियंत्रित होता है. निर्णय लेने वालों में पति, परिवार के सदस्य, समाज और सरकार शामिल हो सकते हैं.

उन्होंने कहा कि यह लड़कियों और महिलाओं के मौलिक मानव अधिकारों के खिलाफ है. इस तरह की कुप्रथाएं लैंगिक भेदभाव और हिंसा को बढ़ावा देती हैं. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कैसे इन अधिकारों का हनन जीवन के अन्य आयामों में महिलाओं की प्रगति को बाधित करते हैं. इनमें स्वास्थ्य, आय और शिक्षा शामिल हैं.

नहीं मिलती हर बलात्कारी को सजा
कनेम ने कहा कि इस सब के लिए समाजिक समस्याएं, जैसे यौन संबंधों को लेकर निषेध (खासकर महिलाओं के लिए), यहां तक की उसपर बात करने की अनुमति भी न होना और पितृसत्ता हावी होना जिम्मेदार हैं. इससे पुरुष को बल मिलता है और महिलाएं अपने अधिकार से वंछित रह जाती हैं.

महिलाओं के शरीर पर उनके अधिकारों का उल्लंघन करने वाले अपराध और प्रथाओं में झूठी शान का खतिर हत्याएं, जबरन व जल्दी शादी करवाना और जननांग विकृति और जबरन गर्भधारण या गर्भपात शामिल हैं.

बलात्कार जैसे कृत्यों को अपराध माना जाता है, हालांकि यह जरूरी नहीं है कि हर मामले में अपराधी को सजा मिलती हो. वहीं अन्य कृत्यों को समाज और कानून से संरक्षण प्राप्त है. रिपोर्ट में कहा गया है कि कई देशों में लैंगिक समानता की संवैधानिक गारंटी के बावजूद, दुनिया भर में महिलाओं को पुरुषों के कानूनी अधिकारों का केवल 75% हिस्सा ही प्राप्त है.

कोविड-19 और महिलाओं की स्थिति
कोरोना वायरस से फैली महामारी ने महिलाओं की स्थिति को खराब कर दिया है. कनेम ने कहा कि हालात बद से बदतर हो गए हैं. इसके परिणामस्वरूप यौन हिंसा में वृद्धि हुई है, अधिक अनपेक्षित गर्भधारण, स्वास्थ्य के लिए नई बाधाएं खड़ी हुई है और नौकरी व शिक्षा को नुकसान पहुंचा है. विश्वव्यापी लॉकडाउन के चलते घरेलू हिंसा में 20% की वृद्धि हुई है. इस महामारी ने कुप्रथाओं को खत्म करने के प्रयासों को भी बाधित किया है, जिसके चलते आने वाले दशक में 13 मिलियन बाल विवाह और महिला जननांग विकृति के 2 मिलियन अन्य मामले हो सकते हैं.

संस्कृति या स्थान कारण नहीं
दुनिया के किसी भी देश ने शत प्रतिशत लैंगिक समानता हासिल नहीं की है, लेकिन स्वीडन, उरुग्वे, कंबोडिया, फिनलैंड और नीदरलैंड का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन रहा है. विविधता दर्शाती है कि समानता हासिल में संस्कृति या स्थान बाधा नहीं है.

कनेम ने इस बात पर जोर दिया कि मानवाधिकार संधियों के तहत दायित्वों को पूरा करने के साथ-साथ सामाजिक, राजनैतिक, संस्थागत और आर्थिक संरचनाओं में परिवर्तन करना सरकारों की मुख्य भूमिका है.

चौंकाने वाले तथ्य
रिपोर्ट में बताया गया है कि न केवल महिलाओं और लड़कियों, बल्कि पुरुषों और लड़कों की शारीरिक स्वायत्तता का उल्लंघन किया जाता है. इसे दिव्यांगता जैसे हालात और बिगाड़ते हैं. उदाहरण के लिए, दिव्यांग लड़कियों और लड़कों के यौन हिंसा के शिकार होने की संभावना लगभग तीन गुना अधिक होती है, लेकिन सबसे बड़ा जोखिम लड़कियों के साथ होता है.

दंडात्मक कानूनी वातावरण, भेदभाव और हिंसा के उच्च स्तर के कारण, समलैंगिक पुरुषों और उन पुरुषों को एचआईवी संक्रमण का जोखिम होता है जो अन्य पुरुषों के साथ यौन संबंध रखते हैं. क्योंकि वे अभियोजन या अन्य नकारात्मकता के डर से स्वास्थ्य मदद के लिए सामने नहीं आते. नतीजतन, वे उचित स्वास्थ्य शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते हैं, और स्वास्थ्य सेवाओं, परीक्षण और उपचार के लिए आगे नहीं आते.

पढ़ें-महिलाओं की स्थिति सुधरी, लेकिन अब भी बहुत हैं रोड़े

रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ 20 देशों या क्षेत्रों में तथाकथित 'marry-your-rapist' कानून हैं. इसके तहत आपराधिक मुकदमे से बचने के लिए व्यक्ति उस महिला या लड़की से शादी कर सकता है, जिसके साथ उसने बलात्कार किया है. इसके अलावा 43 देश ऐसे हैं जहां वैवाहिक बलात्कार को लेकर कोई कानून नहीं है.

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कैसे इस तरह की समस्या के समाधान की प्रक्रिया में शारीरिक स्वायत्तता के और उल्लंघन हो सकते हैं. उदाहरण के लिए, बलात्कार के मामले में मुकदमा चलाने के लिए, तथाकथित कौमार्य परीक्षण की जरूरत पड़ती है.

पुरुषों को आना होगा साथ
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस भयावह स्थिति को दूर करने के लिए सिर्फ परियोजनाओं से काम नहीं चलेगा. वास्तविक प्रगति काफी हद तक लैंगिक असमानता और भेदभाव के सभी रूपों को उखाड़ फेंकने और उन्हें बनाए रखने वाली सामाजिक और आर्थिक संरचनाओं को बदलने पर निर्भर करती है.

इसमें पुरुषों को सहयोगी बनना होगा. लोगों को विशेषाधिकार और प्रभुत्व के पैटर्न से दूर जाना होगा, जो गहराई से शारीरिक स्वायत्तता को प्रभावित करते हैं. सभी को अधिक निष्पक्ष और सामंजस्यपूर्ण तरीकों को अपनाना होगा.

कुछ और तथ्य
शोध से पता चला है कि लड़कियां और महिलाएं अक्सर इस बात से अनजान होती हैं कि उन्हें 'ना'/'नहीं' कहने का अधिकार है. उदाहरण के लिए भारत में एक अध्ययन से पता चला है कि नवविवाहित महिलाएं अपने पहले यौन संबंध को 'उनकी इच्छा के खिलाफ' देखती हों, ऐसा कम ही होता है क्योंकि शादि के बाद मान लिया जाता है कि यौन संबंध बनाने के लिए सहमति की जरूरत नहीं होती. उनके लिए सहमति की धारणा अप्रासंगिक थी क्योंकि यौन संबंध, भले ही वह जबरन बनाया गया हो, 'वैवाहिक कर्तव्य' माना जाता था और इसलिए सहमति का सवाल ही नहीं उठता.

महिला नेताओं, पत्रकारों और सामाजित कार्यकर्ताओं के खिलाफ अपराध बढ़े हैं. इसके अलावा लैंगिक समानता से पुरुषों की सेहत को भी लाभ होता है, जिसमें मृत्यु दर कम होना, अवसादग्रस्त होने की संभावना आधी होना और हिंसा में मौत होने की संभावना कम होना शामिल है.

विरोधी कानून
जहां परस्पर विरोधी कानून मौजूद हैं, वहां भ्रम हो सकता है कि कौन से कानून को मान्यता मिलेगी या किसको माना जाएगा. भ्रम कभी-कभी न केवल व्यक्तियों को बल्कि उन लोगों को भी प्रभावित कर सकता है जो इसे लागू करने के लिए जिम्मेदार हैं. यहां तक ​​कि परस्पर विरोधी कानून के अभाव में, स्पष्टता की कमी एक समस्या बन सकती है.

जबरन और बाल विवाह
दहेज प्रथा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से महिलाओं पर अत्याचार करती है. यह अक्सर दुर्व्यवहार और हिंसा का कारण बनती है और लैंगिक असमानता की व्यवस्था को बनाए रखती है. यह बाल विवाह को प्रोत्साहित करता है क्योंकि परिवार को कम उम्र की दुल्हन के लिए कम दहेज का भुगतान करना पड़ता है. अपेक्षित दहेज का भुगतान नहीं होने पर भी महिलाओं की हत्या हो जाती है.

इसके अलावा जिनकी शादी 18 वर्ष की उम्र के बाद होती है उन्हें स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना उनकी तुलना में कम करना पड़ता है जिनका बाल विवाह हुआ होता है. बाल विवाह में घरेलू हिंसा के संभावना भी बढ़ जाती है.

हैदराबाद : विकासशील देशों में रह रही महिलाओं में सिर्फ 50 प्रतिशत का अपने शरीर पर पूर्ण अधिकार है. 57 देशों में रह रहीं 50 प्रतिशत महिलाओं के पास अपने शरीर से जुड़े निर्णय लेने का अधिकार नहीं है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है. इसमें यौन संबंध, गर्भनिरोधक और स्वास्थ्य से जुड़े निर्णय शामिल हैं. इसके अलावा उन्हें दुष्कर्म, जबरन नसबंदी और जननांग विकृति जैसी सामाजिक विकृतियों का समना करना पड़ता है.

'The My Body is My Own' अध्ययन में बलात्कार, जबरन नसबंदी, कौमार्य परीक्षण और जननांग विकृति सहित महिलाओं के खिलाफ प्रचिलित कुप्रथाओं को सूचिबद्ध किया गया है.

संयुक्त राष्ट्र की यूएनएफपीए की प्रमुख नतालिया कनेम ने कहा कि लाखों महिलाओं और लड़कियों का अपने ही शरीर पर पूर्ण अधिकार नहीं होता है. उनका जीवन दूसरों द्वारा नियंत्रित होता है. निर्णय लेने वालों में पति, परिवार के सदस्य, समाज और सरकार शामिल हो सकते हैं.

उन्होंने कहा कि यह लड़कियों और महिलाओं के मौलिक मानव अधिकारों के खिलाफ है. इस तरह की कुप्रथाएं लैंगिक भेदभाव और हिंसा को बढ़ावा देती हैं. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कैसे इन अधिकारों का हनन जीवन के अन्य आयामों में महिलाओं की प्रगति को बाधित करते हैं. इनमें स्वास्थ्य, आय और शिक्षा शामिल हैं.

नहीं मिलती हर बलात्कारी को सजा
कनेम ने कहा कि इस सब के लिए समाजिक समस्याएं, जैसे यौन संबंधों को लेकर निषेध (खासकर महिलाओं के लिए), यहां तक की उसपर बात करने की अनुमति भी न होना और पितृसत्ता हावी होना जिम्मेदार हैं. इससे पुरुष को बल मिलता है और महिलाएं अपने अधिकार से वंछित रह जाती हैं.

महिलाओं के शरीर पर उनके अधिकारों का उल्लंघन करने वाले अपराध और प्रथाओं में झूठी शान का खतिर हत्याएं, जबरन व जल्दी शादी करवाना और जननांग विकृति और जबरन गर्भधारण या गर्भपात शामिल हैं.

बलात्कार जैसे कृत्यों को अपराध माना जाता है, हालांकि यह जरूरी नहीं है कि हर मामले में अपराधी को सजा मिलती हो. वहीं अन्य कृत्यों को समाज और कानून से संरक्षण प्राप्त है. रिपोर्ट में कहा गया है कि कई देशों में लैंगिक समानता की संवैधानिक गारंटी के बावजूद, दुनिया भर में महिलाओं को पुरुषों के कानूनी अधिकारों का केवल 75% हिस्सा ही प्राप्त है.

कोविड-19 और महिलाओं की स्थिति
कोरोना वायरस से फैली महामारी ने महिलाओं की स्थिति को खराब कर दिया है. कनेम ने कहा कि हालात बद से बदतर हो गए हैं. इसके परिणामस्वरूप यौन हिंसा में वृद्धि हुई है, अधिक अनपेक्षित गर्भधारण, स्वास्थ्य के लिए नई बाधाएं खड़ी हुई है और नौकरी व शिक्षा को नुकसान पहुंचा है. विश्वव्यापी लॉकडाउन के चलते घरेलू हिंसा में 20% की वृद्धि हुई है. इस महामारी ने कुप्रथाओं को खत्म करने के प्रयासों को भी बाधित किया है, जिसके चलते आने वाले दशक में 13 मिलियन बाल विवाह और महिला जननांग विकृति के 2 मिलियन अन्य मामले हो सकते हैं.

संस्कृति या स्थान कारण नहीं
दुनिया के किसी भी देश ने शत प्रतिशत लैंगिक समानता हासिल नहीं की है, लेकिन स्वीडन, उरुग्वे, कंबोडिया, फिनलैंड और नीदरलैंड का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन रहा है. विविधता दर्शाती है कि समानता हासिल में संस्कृति या स्थान बाधा नहीं है.

कनेम ने इस बात पर जोर दिया कि मानवाधिकार संधियों के तहत दायित्वों को पूरा करने के साथ-साथ सामाजिक, राजनैतिक, संस्थागत और आर्थिक संरचनाओं में परिवर्तन करना सरकारों की मुख्य भूमिका है.

चौंकाने वाले तथ्य
रिपोर्ट में बताया गया है कि न केवल महिलाओं और लड़कियों, बल्कि पुरुषों और लड़कों की शारीरिक स्वायत्तता का उल्लंघन किया जाता है. इसे दिव्यांगता जैसे हालात और बिगाड़ते हैं. उदाहरण के लिए, दिव्यांग लड़कियों और लड़कों के यौन हिंसा के शिकार होने की संभावना लगभग तीन गुना अधिक होती है, लेकिन सबसे बड़ा जोखिम लड़कियों के साथ होता है.

दंडात्मक कानूनी वातावरण, भेदभाव और हिंसा के उच्च स्तर के कारण, समलैंगिक पुरुषों और उन पुरुषों को एचआईवी संक्रमण का जोखिम होता है जो अन्य पुरुषों के साथ यौन संबंध रखते हैं. क्योंकि वे अभियोजन या अन्य नकारात्मकता के डर से स्वास्थ्य मदद के लिए सामने नहीं आते. नतीजतन, वे उचित स्वास्थ्य शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते हैं, और स्वास्थ्य सेवाओं, परीक्षण और उपचार के लिए आगे नहीं आते.

पढ़ें-महिलाओं की स्थिति सुधरी, लेकिन अब भी बहुत हैं रोड़े

रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ 20 देशों या क्षेत्रों में तथाकथित 'marry-your-rapist' कानून हैं. इसके तहत आपराधिक मुकदमे से बचने के लिए व्यक्ति उस महिला या लड़की से शादी कर सकता है, जिसके साथ उसने बलात्कार किया है. इसके अलावा 43 देश ऐसे हैं जहां वैवाहिक बलात्कार को लेकर कोई कानून नहीं है.

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कैसे इस तरह की समस्या के समाधान की प्रक्रिया में शारीरिक स्वायत्तता के और उल्लंघन हो सकते हैं. उदाहरण के लिए, बलात्कार के मामले में मुकदमा चलाने के लिए, तथाकथित कौमार्य परीक्षण की जरूरत पड़ती है.

पुरुषों को आना होगा साथ
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस भयावह स्थिति को दूर करने के लिए सिर्फ परियोजनाओं से काम नहीं चलेगा. वास्तविक प्रगति काफी हद तक लैंगिक असमानता और भेदभाव के सभी रूपों को उखाड़ फेंकने और उन्हें बनाए रखने वाली सामाजिक और आर्थिक संरचनाओं को बदलने पर निर्भर करती है.

इसमें पुरुषों को सहयोगी बनना होगा. लोगों को विशेषाधिकार और प्रभुत्व के पैटर्न से दूर जाना होगा, जो गहराई से शारीरिक स्वायत्तता को प्रभावित करते हैं. सभी को अधिक निष्पक्ष और सामंजस्यपूर्ण तरीकों को अपनाना होगा.

कुछ और तथ्य
शोध से पता चला है कि लड़कियां और महिलाएं अक्सर इस बात से अनजान होती हैं कि उन्हें 'ना'/'नहीं' कहने का अधिकार है. उदाहरण के लिए भारत में एक अध्ययन से पता चला है कि नवविवाहित महिलाएं अपने पहले यौन संबंध को 'उनकी इच्छा के खिलाफ' देखती हों, ऐसा कम ही होता है क्योंकि शादि के बाद मान लिया जाता है कि यौन संबंध बनाने के लिए सहमति की जरूरत नहीं होती. उनके लिए सहमति की धारणा अप्रासंगिक थी क्योंकि यौन संबंध, भले ही वह जबरन बनाया गया हो, 'वैवाहिक कर्तव्य' माना जाता था और इसलिए सहमति का सवाल ही नहीं उठता.

महिला नेताओं, पत्रकारों और सामाजित कार्यकर्ताओं के खिलाफ अपराध बढ़े हैं. इसके अलावा लैंगिक समानता से पुरुषों की सेहत को भी लाभ होता है, जिसमें मृत्यु दर कम होना, अवसादग्रस्त होने की संभावना आधी होना और हिंसा में मौत होने की संभावना कम होना शामिल है.

विरोधी कानून
जहां परस्पर विरोधी कानून मौजूद हैं, वहां भ्रम हो सकता है कि कौन से कानून को मान्यता मिलेगी या किसको माना जाएगा. भ्रम कभी-कभी न केवल व्यक्तियों को बल्कि उन लोगों को भी प्रभावित कर सकता है जो इसे लागू करने के लिए जिम्मेदार हैं. यहां तक ​​कि परस्पर विरोधी कानून के अभाव में, स्पष्टता की कमी एक समस्या बन सकती है.

जबरन और बाल विवाह
दहेज प्रथा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से महिलाओं पर अत्याचार करती है. यह अक्सर दुर्व्यवहार और हिंसा का कारण बनती है और लैंगिक असमानता की व्यवस्था को बनाए रखती है. यह बाल विवाह को प्रोत्साहित करता है क्योंकि परिवार को कम उम्र की दुल्हन के लिए कम दहेज का भुगतान करना पड़ता है. अपेक्षित दहेज का भुगतान नहीं होने पर भी महिलाओं की हत्या हो जाती है.

इसके अलावा जिनकी शादी 18 वर्ष की उम्र के बाद होती है उन्हें स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना उनकी तुलना में कम करना पड़ता है जिनका बाल विवाह हुआ होता है. बाल विवाह में घरेलू हिंसा के संभावना भी बढ़ जाती है.

Last Updated : Apr 16, 2021, 9:31 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.