ETV Bharat / bharat

यूक्रेन संकट से अमेरिका व रूस में टकराव संभव, भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंध होंगे प्रभावित

author img

By

Published : Feb 4, 2022, 9:38 PM IST

यूक्रेन संकट (Ukraine crisis ) को लेकर अमेरिका और रूस के बीच संभावित टकराव (Possible conflict between the US and Russia) से भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंध प्रभावित (India's international relations affected) हो सकते हैं. रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष तेज होने के साथ ही इस क्षेत्र में भू-राजनीतिक बदलाव देखा जा रहा है.

Symbolic photo
प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली : रूस-यूक्रेन सीमा पर तनाव (Tension on Russia Ukraine border) को खत्म करने के लिए चर्चा, चिंतन और उच्च स्तरीय कूटनीतिक वार्ताएं चल रही हैं. रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष तेज होने के साथ ही इस क्षेत्र में भू-राजनीतिक बदलाव देखा जा रहा है. संयुक्त राज्य अमेरिका ने चेतावनी दी है कि यूक्रेन के खिलाफ रूसी आक्रमण का सुरक्षा वातावरण के लिए निहितार्थ होगा.

इसने यह संकेत दिया कि चाहे वह पीआरसी (पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना) हो, भारत हो या दुनिया भर के देश हों इसके निहितार्थ दूरगामी होंगे. अब यदि बाइडेन के नेतृत्व वाले पश्चिम और पुतिन के रूस के बीच संभावित टकराव होता है तो इसका भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? क्योंकि भारत के प्रमुख शक्तियों अमेरिका, रूस, यूक्रेन या यूरोपीय संघ के साथ घनिष्ठ और तटस्थ संबंध हैं.

ईटीवी भारत से बात करते हुए पूर्व राजनयिक अचल मल्होत्रा ​​​​ने कहा कि मैं केवल अमेरिकियों द्वारा रूस पर लगाए जा रहे गंभीर आर्थिक प्रतिबंधों के बारे में सोच रहा हूं. यूरोपीय संघ और उनके सहयोगी जो भारत पर भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डाल सकते हैं क्योंकि इससे हम खुद को मुश्किल स्थिति में पा सकते हैं. हालांकि एस -400 के मामले में हमने रूस से कुछ भी खरीदने के लिए खुद को राजी नहीं होने दिया. लेकिन यह याद किया जा सकता है कि जब अमेरिकियों ने ईरानी तेल खरीदने पर प्रतिबंध लगाया था, तब भारत को समस्या हुई थी.

यह भी संभव है कि भारत संकट पर तटस्थ रुख बनाए रख सकता है. पूर्व राजदूत मल्होत्रा ​​​​ने कहा कि शायद अमेरिकी भारत को अलर्ट करने के संदर्भ में सोच रहे हैं कि उन्हें एक स्टैंड लेना चाहिए, जो अमेरिकियों और नाटो के साथ गठबंधन के रुप में हो. लेकिन पक्ष लेना भारत की नीति नहीं है. भारत गठबंधनों का हिस्सा बनना पसंद नहीं करता बल्कि साझेदारी में विश्वास करता है. साझेदारी के मामले में ऐसी कोई शर्त नहीं होती है.

उन्होंने रेखांकित किया कि यूरोप और उसके बाहर स्थिरता और शांति को देखते हुए कुल मिलाकर स्थिति अच्छी नहीं है. अब तक बहुत सारे राजनयिक प्रयास किए जा रहे हैं और फ्रांस, जर्मनी, रूस और यूक्रेन के बीच नॉरमैंडी प्रारूप में बातचीत चल रही है. इसलिए दोनों पक्ष (अमेरिका व रूस) युद्ध फैलने पर गंभीर परिणामों से अवगत हैं. इस बीच संयुक्त राज्य अमेरिका ने कहा है कि भारत के साथ अमेरिका के संबंध अपने गुणों पर खड़े हैं और रूस के साथ चल रहे तनाव से प्रभावित नहीं हुए हैं.

विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा है कि भारत के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक प्रक्रियात्मक वोट से दूर रहने के कुछ दिनों बाद यूक्रेन सीमा पर स्थिति पर चर्चा करने के लिए एक प्रश्न के उत्तर में कि यदि यूक्रेन संकट पर रूस के साथ तनाव के कारण भारत के साथ अमेरिका के संबंध प्रभावित हुए हैं, तो प्राइस ने कहा कि हमारा भारत के साथ एक रिश्ता है जो अपने दम पर खड़ा है. रिपोर्टों के मुताबिक रूस ने यूक्रेन के साथ सीमा के पास अनुमानित 100000 सैनिकों को इकट्ठा करने की जानकारी मिली है.

मास्को मांग कर रहा है कि नाटो ने यूक्रेन को कभी भी सैन्य गठबंधन में शामिल होने की अनुमति नहीं दी और रूसी सीमाओं के पास नाटो हथियारों की तैनाती को रोकने और पूर्वी यूरोप से अपनी सेना को वापस लेने का वादा किया. अमेरिका और नाटो ने रूस की मांगों को खारिज कर दिया है. इस पर टिप्पणी करते हुए अचल मल्होत्रा ​​ने कहा कि यह स्पष्ट है कि रूस नाटो पर जो मांग कर रहा है, नाटो के लिए उन मांगों को ब्लैक एंड व्हाइट में स्वीकार करना बहुत मुश्किल है.

उन्होंने कहा कि 2008 में भी जब रूस और जॉर्जिया के बीच युद्ध की स्थिति बनी तो जॉर्जिया नाटो के समर्थन पर भरोसा कर रहा था, लेकिन वे आगे नहीं आए. इसी तरह जब क्रीमिया को रूस द्वारा कब्जा कर लिया गया, तब भी नाटे सेना द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया गया. यहां तक ​​​​कि इस बार भी कोई सैन्य हस्तक्षेप नहीं होगा क्योंकि परिणाम बेहद खराब होने वाले हैं और यूरोप सीधे प्रभावित होने जा रहा है. विदेश नीति विशेषज्ञ ने बताया कि अमेरिकी विदेश विभाग प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा कि तनावपूर्ण स्थिति पर वाशिंगटन विभिन्न स्तरों पर नई दिल्ली के संपर्क में है.

प्राइस ने कहा कि रूस के सैन्य निर्माण, यूक्रेन के खिलाफ उसकी अकारण संभावित आक्रामकता के संबंध में हमारी चिंताओं पर अमेरिका हमारे भारतीय भागीदारों सहित दुनिया भर के विभिन्न देशों के संपर्क में है. हमने कई अलग-अलग स्तरों पर बातचीत की है. सोमवार को आयोजित यूक्रेन पर यूएनएससी की बैठक में संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत टीएस तिरुमूर्ति ने सभी पक्षों से सभी राजनयिक चैनलों के माध्यम से जुड़ना जारी रखने और पूर्ण रूप से काम करते रहने का आग्रह किया.

यह भी पढ़ें- Beijing Olympics 2022: पाक पीएम इमरान खान का अनिश्चित कार्यकाल, क्या मदद करेगा चीन?

तिरुमूर्ति ने स्पष्ट रूप से कहा कि 20000 से अधिक भारतीय छात्र और नागरिक हैं जो यूक्रेन के सीमावर्ती क्षेत्रों सहित विभिन्न हिस्सों में पढ़ाई करते हैं. तिरुमूर्ति ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारतीय नागरिकों की भलाई भारत के लिए प्राथमिकता है. रचनात्मक बातचीत के माध्यम से चिंताओं का समाधान सुनिश्चित करने के लिए ईमानदारी से और निरंतर राजनयिक प्रयासों द्वारा स्थिति के शांतिपूर्ण समाधान के लिए देश के आह्वान को दोहराया.

नई दिल्ली : रूस-यूक्रेन सीमा पर तनाव (Tension on Russia Ukraine border) को खत्म करने के लिए चर्चा, चिंतन और उच्च स्तरीय कूटनीतिक वार्ताएं चल रही हैं. रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष तेज होने के साथ ही इस क्षेत्र में भू-राजनीतिक बदलाव देखा जा रहा है. संयुक्त राज्य अमेरिका ने चेतावनी दी है कि यूक्रेन के खिलाफ रूसी आक्रमण का सुरक्षा वातावरण के लिए निहितार्थ होगा.

इसने यह संकेत दिया कि चाहे वह पीआरसी (पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना) हो, भारत हो या दुनिया भर के देश हों इसके निहितार्थ दूरगामी होंगे. अब यदि बाइडेन के नेतृत्व वाले पश्चिम और पुतिन के रूस के बीच संभावित टकराव होता है तो इसका भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? क्योंकि भारत के प्रमुख शक्तियों अमेरिका, रूस, यूक्रेन या यूरोपीय संघ के साथ घनिष्ठ और तटस्थ संबंध हैं.

ईटीवी भारत से बात करते हुए पूर्व राजनयिक अचल मल्होत्रा ​​​​ने कहा कि मैं केवल अमेरिकियों द्वारा रूस पर लगाए जा रहे गंभीर आर्थिक प्रतिबंधों के बारे में सोच रहा हूं. यूरोपीय संघ और उनके सहयोगी जो भारत पर भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डाल सकते हैं क्योंकि इससे हम खुद को मुश्किल स्थिति में पा सकते हैं. हालांकि एस -400 के मामले में हमने रूस से कुछ भी खरीदने के लिए खुद को राजी नहीं होने दिया. लेकिन यह याद किया जा सकता है कि जब अमेरिकियों ने ईरानी तेल खरीदने पर प्रतिबंध लगाया था, तब भारत को समस्या हुई थी.

यह भी संभव है कि भारत संकट पर तटस्थ रुख बनाए रख सकता है. पूर्व राजदूत मल्होत्रा ​​​​ने कहा कि शायद अमेरिकी भारत को अलर्ट करने के संदर्भ में सोच रहे हैं कि उन्हें एक स्टैंड लेना चाहिए, जो अमेरिकियों और नाटो के साथ गठबंधन के रुप में हो. लेकिन पक्ष लेना भारत की नीति नहीं है. भारत गठबंधनों का हिस्सा बनना पसंद नहीं करता बल्कि साझेदारी में विश्वास करता है. साझेदारी के मामले में ऐसी कोई शर्त नहीं होती है.

उन्होंने रेखांकित किया कि यूरोप और उसके बाहर स्थिरता और शांति को देखते हुए कुल मिलाकर स्थिति अच्छी नहीं है. अब तक बहुत सारे राजनयिक प्रयास किए जा रहे हैं और फ्रांस, जर्मनी, रूस और यूक्रेन के बीच नॉरमैंडी प्रारूप में बातचीत चल रही है. इसलिए दोनों पक्ष (अमेरिका व रूस) युद्ध फैलने पर गंभीर परिणामों से अवगत हैं. इस बीच संयुक्त राज्य अमेरिका ने कहा है कि भारत के साथ अमेरिका के संबंध अपने गुणों पर खड़े हैं और रूस के साथ चल रहे तनाव से प्रभावित नहीं हुए हैं.

विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा है कि भारत के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक प्रक्रियात्मक वोट से दूर रहने के कुछ दिनों बाद यूक्रेन सीमा पर स्थिति पर चर्चा करने के लिए एक प्रश्न के उत्तर में कि यदि यूक्रेन संकट पर रूस के साथ तनाव के कारण भारत के साथ अमेरिका के संबंध प्रभावित हुए हैं, तो प्राइस ने कहा कि हमारा भारत के साथ एक रिश्ता है जो अपने दम पर खड़ा है. रिपोर्टों के मुताबिक रूस ने यूक्रेन के साथ सीमा के पास अनुमानित 100000 सैनिकों को इकट्ठा करने की जानकारी मिली है.

मास्को मांग कर रहा है कि नाटो ने यूक्रेन को कभी भी सैन्य गठबंधन में शामिल होने की अनुमति नहीं दी और रूसी सीमाओं के पास नाटो हथियारों की तैनाती को रोकने और पूर्वी यूरोप से अपनी सेना को वापस लेने का वादा किया. अमेरिका और नाटो ने रूस की मांगों को खारिज कर दिया है. इस पर टिप्पणी करते हुए अचल मल्होत्रा ​​ने कहा कि यह स्पष्ट है कि रूस नाटो पर जो मांग कर रहा है, नाटो के लिए उन मांगों को ब्लैक एंड व्हाइट में स्वीकार करना बहुत मुश्किल है.

उन्होंने कहा कि 2008 में भी जब रूस और जॉर्जिया के बीच युद्ध की स्थिति बनी तो जॉर्जिया नाटो के समर्थन पर भरोसा कर रहा था, लेकिन वे आगे नहीं आए. इसी तरह जब क्रीमिया को रूस द्वारा कब्जा कर लिया गया, तब भी नाटे सेना द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया गया. यहां तक ​​​​कि इस बार भी कोई सैन्य हस्तक्षेप नहीं होगा क्योंकि परिणाम बेहद खराब होने वाले हैं और यूरोप सीधे प्रभावित होने जा रहा है. विदेश नीति विशेषज्ञ ने बताया कि अमेरिकी विदेश विभाग प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा कि तनावपूर्ण स्थिति पर वाशिंगटन विभिन्न स्तरों पर नई दिल्ली के संपर्क में है.

प्राइस ने कहा कि रूस के सैन्य निर्माण, यूक्रेन के खिलाफ उसकी अकारण संभावित आक्रामकता के संबंध में हमारी चिंताओं पर अमेरिका हमारे भारतीय भागीदारों सहित दुनिया भर के विभिन्न देशों के संपर्क में है. हमने कई अलग-अलग स्तरों पर बातचीत की है. सोमवार को आयोजित यूक्रेन पर यूएनएससी की बैठक में संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत टीएस तिरुमूर्ति ने सभी पक्षों से सभी राजनयिक चैनलों के माध्यम से जुड़ना जारी रखने और पूर्ण रूप से काम करते रहने का आग्रह किया.

यह भी पढ़ें- Beijing Olympics 2022: पाक पीएम इमरान खान का अनिश्चित कार्यकाल, क्या मदद करेगा चीन?

तिरुमूर्ति ने स्पष्ट रूप से कहा कि 20000 से अधिक भारतीय छात्र और नागरिक हैं जो यूक्रेन के सीमावर्ती क्षेत्रों सहित विभिन्न हिस्सों में पढ़ाई करते हैं. तिरुमूर्ति ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारतीय नागरिकों की भलाई भारत के लिए प्राथमिकता है. रचनात्मक बातचीत के माध्यम से चिंताओं का समाधान सुनिश्चित करने के लिए ईमानदारी से और निरंतर राजनयिक प्रयासों द्वारा स्थिति के शांतिपूर्ण समाधान के लिए देश के आह्वान को दोहराया.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.