उज्जैन। जिंदगी में कुछ बनने के लिए इंसान दिन-रात मेहनत करता है और वह वो सब कुछ हासिल करना चाहता है, जिससे उसे जिंदगी की तमाम सुख-सुविधाएं हासिल हो सके, लेकिन कई बार ये सब हासिल होने के बाद भी जब मन को शांति और सुकून ना मिले तो फिर यह सब कुछ एक पल में व्यर्थ हो जाता है. ऐसे में कई लोग या तो सन्यास धारण कर लेते हैं या फिर एकांत में जीवन जीते हैं. ऐसा ही कुछ हाल उज्जैन में देखने मिला है. जहां एक एमबीए पास लड़की ने सांसारिक मोह माया को छोड़कर संयम का मार्ग चुना है.
25 साल की सलोनी बनी सन्यासी: दरअसल, धर्म नगरी में संयम की यात्रा दीक्षा महोत्सव में बुधवार को 25 वर्षीय युवती सलोनी भंडारी ने साध्वी की दीक्षा ग्रहण की है और सांसारिक बंधनों का त्याग कर दिया है. सलोनी ने जैन संत के हाथों से दीक्षा ली. जिसके बाद मंच पर परिवार के साथ झूम कर उत्सव मनाया. वहीं समाज के लोग भी सलोनी के साध्वी बनते ही उत्सव में डूबे नजर आए. जानकारी के अनुसार आचार्य मति चंद्र सागर जीमसा, आध्यात्म योगी गणिवर्य आदर्श रत्नसागर मसा, साध्वी मुक्ति दर्शना श्रीजी मसा आदि ठाणा की निश्रा में भव्य वरघोड़ा निकला. जिसमें प्रभु का रथ, इंद्र ध्वजा, सजे धजे परिधान में महिला मंडल, बग्गी, घोड़े शामिल हुए. इस रथ पर बैठकर सलोनी जैन ने माता-पिता व भाई, बहन के साथ वर्षीदान किया. विधायक पारस जैन ने अगवानी की.
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सादा जीवन व्यतीत करेगी सलोनीः सलोनी अब माता-पिता, भाई-बहन या रिश्तेदार से कोई नाता नहीं रखेगी. आजीवन पैदल विहार पर चलेगी. जैन धर्म में मुनि दीक्षा लेना बेहद कठिन निर्णय होता है, क्योंकि संयम जीवन में ना वाहन, ना इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, ना किसी तरह की विलासिता होती है. आजीवन पैदल विहार मंदिर उपाश्रय में ही प्रवास करता होता है. माता-पिता भाई-बहन सहित सभी सांसारिक रिश्तों का त्याग कर केवल धर्म के उद्देश्य के लिए सादा जीवन जीना होता है. सलोनी का भावुक पलों के साथ विदाई कार्यक्रम हुआ. जिसमें अंतिम बार उसने भाई की कलाई पर राखी बांधी तो सभी रिश्तेदारों ने उसे दुलार किया और संयम जीवन की मंगल कामनाएं दी. इस दृश्य को देखकर वहां मौजूद लोगों की आंखें भर आई. बता दें सलोनी के जैन का दीक्षा कार्यक्रम अरविंद नगर स्थित मनोरमा-महाकाल परिसर में किया गया था.