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उत्तराखंड के वैज्ञानिकों ने खोजा ऐसा फंगस, Black Carbon को करेगा खत्म

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Published : Aug 23, 2022, 3:14 PM IST

आईआईपी देहरादून के शोधकर्ताओं ने ट्रेमटिज मैक्सिमा नाम के फंगस की खोज की है. ये फंगस एक विशेष प्रकार का एंजाइम छोड़ता है, जो पॉली एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन के मॉलिक्यूल को विघटित कर देता है. यानी ये इसके हाइड्रोकार्बन रिंग को तोड़ देता है. इतना ही नहीं ये फंगस अपने आसपास मौजूद मिट्टी या पानी को पॉली हाइड्रोकार्बन युक्त प्रदूषण से मुक्त भी कर देता है.

Tremitis maxima fungus
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देहरादून: उत्तराखंड के जंगलों से वैज्ञानिकों ने एक ऐसा मशरूम खोज निकाला है जो कार्बन युक्त प्रदूषण को खत्म करता है. CSIR के केंद्रीय संस्थान IIP देहरादून में बायोटेक्नोलॉजी कन्वर्जन एरिया में शोध कर रहे प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉक्टर सुनील कुमार (Principal Scientist Dr Sunil Kumar) और उनकी टीम ने ये मशरूम खोजा है. वैज्ञानिकों ने बताया ये मशरूम अपने आसपास पानी और मिट्टी में मौजूद पॉली आरोमिक हाइड्रो कार्बन (polycyclic aromatic hydrocarbons) यानी इंसानों के लिए बेहद घातक माने जाने वाले कार्बन युक्त प्रदूषण को खत्म करता है. अब वैज्ञानिकों की टीम लैब में इसे लेकर अन्य संभावनाओं को तलाश कर रही है.

क्या होता है पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन: वैसे तो मानव जीवन के लिए कार्बन युक्त हर तरह का प्रदूषण बेहद खतरनाक है, लेकिन खासतौर से अगर हम बात करें पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन की तो यह कार्बन युक्त बेंजीन रिंग का एक बड़ा संग्रह है. इसमें एक नहीं बल्कि बड़ी संख्या में हाइड्रो कार्बन के बेंजीन रिंग होते हैं, जो कि ह्यूमन सेल्स के लिए बेहद खतरनाक होते हैं.

उत्तराखंड के वैज्ञानिकों ने खोजा ऐसा फंगस.

शोधकर्ताओं के मुताबिक अगर इस तरह के कार्बन युक्त पदार्थ का कोई भी मॉलिक्यूल इंसानों के संपर्क में आता है या फिर हमारी फूड चेन में कहीं से आ जाता है तो यह बेहद घातक साबित हो सकता है. यहां तक की अमेरिकन एनवायरमेंटल प्रोटक्शन एजेंसी EPNA ने इस तरह के पॉली एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन के संग्रह को कार्सिनोजेनिक कैटेगरी में रखा है. साथ ही इस बात की चेतावनी दी है कि इस तरह का मॉलिक्यूल यदि हमारे शरीर में प्रवेश करता है तो यह हमारी जीन में म्यूटेशन कर सकता है. एजेंसी ने स्पष्ट कहा है कि इस तरह का हाइड्रोकार्बन सीधे कैंसर के लिए जिम्मेदार है. इस तरह के हाइड्रो कार्बन से अपंगता और शरीर में कई तरह की विकृति उत्पन्न हो जाती है.

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कहां से आता है पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन: कार्बन युक्त प्रदूषण सबसे ज्यादा पेट्रोलियम पदार्थों से आता है. जहां तक बात पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन की है तो यह पेट्रोलियम इंडस्ट्री के आसपास सबसे ज्यादा मात्रा में देखने को मिलता है. वहीं इसका सबसे बड़ा प्रोडक्शन गाड़ियों से निकलने वाले धुएं से होता है, जो कि हमारे वातावरण में पहुंचता है. वातावरण से बरसात के दौरान पानी के साथ होते हुए यह जमीन तक पहुंचता है. उसके बाद यह हमारी धरती पर मौजूद रहता है. जहां से ये हमारे खाद्य पदार्थों के संपर्क में आता है. वहीं से इसकी हमारी शरीर में आने की सबसे ज्यादा संभावनाएं होती हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि आज लगातार बढ़ रहे पेट्रोलियम पदार्थों के उपयोग और वातावरण में बढ़ रहे हाइड्रोकार्बन के प्रदूषण के चलते हमारे भविष्य पर इस तरह का बड़ा खतरा मंडरा रहा है.

पॉली एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन से क्या है जंगल में उगने वाली मशरूम या फंगस का कनेक्शन? अब सवाल यह उठता है कि पेट्रोलियम इंडस्ट्री के अलावा अन्य तमाम कार्बन का उत्सर्जन करने वाली इंडस्ट्रीज के आसपास और वाहनों के धुएं से पहले आसमान और फिर हमारी धरती तक पहुंचने वाले इस बेहद घातक प्रदूषण पॉली एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन से जंगलों में पाई जाने वाली फंगस का क्या संबंध है?

देहरादून में मौजूद सीएसआईआर के केंद्रीय संस्थान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम में प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉक्टर सुनील बताते हैं कि हमारी धरती पर कई प्रकार की फंगस हैं. सभी की अपनी-अपनी एक अलग प्रॉपर्टी और गुणवत्ता है. डॉक्टर सुनील बताते हैं कि फंगस एक तरह का परजीवी है. यह अपने खाने के लिए दूसरे पर निर्भर रहता है. परजीवी या तो अपने खाने को निगल कर छोटे-छोटे टुकड़ों में परिवर्तित करता है या फिर विशेष तौर से इस तरह के फंगस कुछ एंजाइम छोड़ते हैं.

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IIP देहरादून के वैज्ञानिकों ने खोजा ट्रेमटिज मैक्सिमा फंगस: जिस फंगस को आईआईपी देहरादून के शोधकर्ताओं ने खोजा है उसका नाम 'ट्रेमटिज मैक्सिमा' है. यह एक विशेष प्रकार का एंजाइम छोड़ता है, जो कि पॉली एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन के मॉलिक्यूल को विघटित करता है. यानी ये इस हाइड्रोकार्बन के रिंग को तोड़ देता है. जिसके बाद यह फंगस इसे अपना भोजन बनाता है. यानी धरती पर मानव समाज के लिए एक सबसे बड़ी समस्या यानी पॉली एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन का विघटन कर यह ट्रेमटिज मैक्सिमा नामक फंगस अपना भोजन बना लेता है. इस तरह से वह अपने आसपास मौजूद मिट्टी या पानी को पॉली हाइड्रोकार्बन युक्त प्रदूषण से मुक्त कर देता है.

लैब में तलाशी जा रही संभावनाएं: सीएसआईआर की देहरादून (CSIR Dehradun) में मौजूद बायोलॉजिकल लैब में लगातार शोधकर्ता इस फंगस पर रिसर्च कर रहे हैं. इस फंगस को कैसे बायोलॉजिकल माध्यम से विकसित किया जा सकता है? इसे कितने वृहद मात्रा में विकसित किया जा सकता है? इन सभी संभावनाओं को तलाशा जा रहा है. साथ ही अलग-अलग तरह के परीक्षण भी इसे लेकर किये जा रहे हैं. ये फंगस किस एटमॉस्फियर में, कहां पर किस तरह से रह सकता है इसे लेकर भी शोध किया जा रहा है. बहरहाल शोधकर्ताओं द्वारा खोजी गई इस मशरूम या फिर फंगस के बाद कुछ हद तक यह स्पष्ट हो गया है कि शोधकर्ताओं के माध्यम से प्रकृति ने हमें एक बेहतर रास्ता दिखाया है. इस पर अगर सफलता हासिल होती है तो यह मानव विज्ञान का एक बड़ा कदम होगा.

देहरादून: उत्तराखंड के जंगलों से वैज्ञानिकों ने एक ऐसा मशरूम खोज निकाला है जो कार्बन युक्त प्रदूषण को खत्म करता है. CSIR के केंद्रीय संस्थान IIP देहरादून में बायोटेक्नोलॉजी कन्वर्जन एरिया में शोध कर रहे प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉक्टर सुनील कुमार (Principal Scientist Dr Sunil Kumar) और उनकी टीम ने ये मशरूम खोजा है. वैज्ञानिकों ने बताया ये मशरूम अपने आसपास पानी और मिट्टी में मौजूद पॉली आरोमिक हाइड्रो कार्बन (polycyclic aromatic hydrocarbons) यानी इंसानों के लिए बेहद घातक माने जाने वाले कार्बन युक्त प्रदूषण को खत्म करता है. अब वैज्ञानिकों की टीम लैब में इसे लेकर अन्य संभावनाओं को तलाश कर रही है.

क्या होता है पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन: वैसे तो मानव जीवन के लिए कार्बन युक्त हर तरह का प्रदूषण बेहद खतरनाक है, लेकिन खासतौर से अगर हम बात करें पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन की तो यह कार्बन युक्त बेंजीन रिंग का एक बड़ा संग्रह है. इसमें एक नहीं बल्कि बड़ी संख्या में हाइड्रो कार्बन के बेंजीन रिंग होते हैं, जो कि ह्यूमन सेल्स के लिए बेहद खतरनाक होते हैं.

उत्तराखंड के वैज्ञानिकों ने खोजा ऐसा फंगस.

शोधकर्ताओं के मुताबिक अगर इस तरह के कार्बन युक्त पदार्थ का कोई भी मॉलिक्यूल इंसानों के संपर्क में आता है या फिर हमारी फूड चेन में कहीं से आ जाता है तो यह बेहद घातक साबित हो सकता है. यहां तक की अमेरिकन एनवायरमेंटल प्रोटक्शन एजेंसी EPNA ने इस तरह के पॉली एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन के संग्रह को कार्सिनोजेनिक कैटेगरी में रखा है. साथ ही इस बात की चेतावनी दी है कि इस तरह का मॉलिक्यूल यदि हमारे शरीर में प्रवेश करता है तो यह हमारी जीन में म्यूटेशन कर सकता है. एजेंसी ने स्पष्ट कहा है कि इस तरह का हाइड्रोकार्बन सीधे कैंसर के लिए जिम्मेदार है. इस तरह के हाइड्रो कार्बन से अपंगता और शरीर में कई तरह की विकृति उत्पन्न हो जाती है.

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कहां से आता है पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन: कार्बन युक्त प्रदूषण सबसे ज्यादा पेट्रोलियम पदार्थों से आता है. जहां तक बात पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन की है तो यह पेट्रोलियम इंडस्ट्री के आसपास सबसे ज्यादा मात्रा में देखने को मिलता है. वहीं इसका सबसे बड़ा प्रोडक्शन गाड़ियों से निकलने वाले धुएं से होता है, जो कि हमारे वातावरण में पहुंचता है. वातावरण से बरसात के दौरान पानी के साथ होते हुए यह जमीन तक पहुंचता है. उसके बाद यह हमारी धरती पर मौजूद रहता है. जहां से ये हमारे खाद्य पदार्थों के संपर्क में आता है. वहीं से इसकी हमारी शरीर में आने की सबसे ज्यादा संभावनाएं होती हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि आज लगातार बढ़ रहे पेट्रोलियम पदार्थों के उपयोग और वातावरण में बढ़ रहे हाइड्रोकार्बन के प्रदूषण के चलते हमारे भविष्य पर इस तरह का बड़ा खतरा मंडरा रहा है.

पॉली एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन से क्या है जंगल में उगने वाली मशरूम या फंगस का कनेक्शन? अब सवाल यह उठता है कि पेट्रोलियम इंडस्ट्री के अलावा अन्य तमाम कार्बन का उत्सर्जन करने वाली इंडस्ट्रीज के आसपास और वाहनों के धुएं से पहले आसमान और फिर हमारी धरती तक पहुंचने वाले इस बेहद घातक प्रदूषण पॉली एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन से जंगलों में पाई जाने वाली फंगस का क्या संबंध है?

देहरादून में मौजूद सीएसआईआर के केंद्रीय संस्थान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम में प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉक्टर सुनील बताते हैं कि हमारी धरती पर कई प्रकार की फंगस हैं. सभी की अपनी-अपनी एक अलग प्रॉपर्टी और गुणवत्ता है. डॉक्टर सुनील बताते हैं कि फंगस एक तरह का परजीवी है. यह अपने खाने के लिए दूसरे पर निर्भर रहता है. परजीवी या तो अपने खाने को निगल कर छोटे-छोटे टुकड़ों में परिवर्तित करता है या फिर विशेष तौर से इस तरह के फंगस कुछ एंजाइम छोड़ते हैं.

पढे़ं-राजधानी देहरादून के रायपुर में बादल फटा, कई लोग फंसे, ऋषिकेश श्रीनगर हाईवे 5 जगह बंद

IIP देहरादून के वैज्ञानिकों ने खोजा ट्रेमटिज मैक्सिमा फंगस: जिस फंगस को आईआईपी देहरादून के शोधकर्ताओं ने खोजा है उसका नाम 'ट्रेमटिज मैक्सिमा' है. यह एक विशेष प्रकार का एंजाइम छोड़ता है, जो कि पॉली एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन के मॉलिक्यूल को विघटित करता है. यानी ये इस हाइड्रोकार्बन के रिंग को तोड़ देता है. जिसके बाद यह फंगस इसे अपना भोजन बनाता है. यानी धरती पर मानव समाज के लिए एक सबसे बड़ी समस्या यानी पॉली एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन का विघटन कर यह ट्रेमटिज मैक्सिमा नामक फंगस अपना भोजन बना लेता है. इस तरह से वह अपने आसपास मौजूद मिट्टी या पानी को पॉली हाइड्रोकार्बन युक्त प्रदूषण से मुक्त कर देता है.

लैब में तलाशी जा रही संभावनाएं: सीएसआईआर की देहरादून (CSIR Dehradun) में मौजूद बायोलॉजिकल लैब में लगातार शोधकर्ता इस फंगस पर रिसर्च कर रहे हैं. इस फंगस को कैसे बायोलॉजिकल माध्यम से विकसित किया जा सकता है? इसे कितने वृहद मात्रा में विकसित किया जा सकता है? इन सभी संभावनाओं को तलाशा जा रहा है. साथ ही अलग-अलग तरह के परीक्षण भी इसे लेकर किये जा रहे हैं. ये फंगस किस एटमॉस्फियर में, कहां पर किस तरह से रह सकता है इसे लेकर भी शोध किया जा रहा है. बहरहाल शोधकर्ताओं द्वारा खोजी गई इस मशरूम या फिर फंगस के बाद कुछ हद तक यह स्पष्ट हो गया है कि शोधकर्ताओं के माध्यम से प्रकृति ने हमें एक बेहतर रास्ता दिखाया है. इस पर अगर सफलता हासिल होती है तो यह मानव विज्ञान का एक बड़ा कदम होगा.

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