हैदराबाद : पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने बुधवार को मुंबई में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के प्रमुख शरद पवार से मुलाकात की. इस राजनीतिक मेलजोल के बाद TMC प्रमुख ममता बनर्जी ने कांग्रेस को दो जोरदार झटके दिए. पहला, कांग्रेस नेता राहुल गांधी के नेतृत्व की क्षमता पर सवाल उठा दिया. दूसरा, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन यानी यूपीए (UPA) के अस्तित्व को नकार दिया.
ममता बनर्जी ने दो टूक कहा कि अब 'यूपीए जैसा कुछ भी नहीं' है. इस बयान का मायने और मतलब निकालने वाले पॉलिटिकल पंडित यह मान रहे हैं कि जब यूपीए ही नहीं है तो 2024 लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा विरोधियों को एक नया अलायंस बनाना पड़ेगा. अभी इसे बनाने की जिम्मेदारी ममता बनर्जी उठा रही हैं.
इसमें कांग्रेस के लिए बुरी खबर यह है कि TMC प्रमुख ममता बनर्जी ने 'यूपीए नहीं है' वाला बयान शरद पवार के हवाले से दिया. ममता बनर्जी ने कहा कि शरद जी बेहद वरिष्ठ नेता हैं और मैं उनसे राजनीतिक मामलों पर बात करने के लिए आई हूं. मैं इस बात से सहमत हूं, जो शरद पवार जी ने कहा है कि कोई यूपीए ही नहीं है.
शरद पवार ने भी यूपीए के खत्म होने पर मुहर लगाई
शरद पवार ने कहा कि आज की स्थिति में राष्ट्रीय स्तर पर समान विचारधारा वाले दलों को एक साथ आना चाहिए और सामूहिक नेतृत्व के लिए एक मजबूत विकल्प तैयार करना चाहिए. हम 2024 लोकसभा चुनाव के बारे में भी सोच रहे हैं. इसके साथ ही राजनीति के दो दिग्गजों ने तय कर दिया कि अब गैर बीजेपी वाले किसी गठबंधन का नेतृत्व कांग्रेस के हाथों में ही होगा, यह जरूरी नहीं है. एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने ममता बनर्जी का समर्थन उस हालात में किया है, जब महाराष्ट्र में कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना की यूपीए सरकार है.
आखिर ममता बनर्जी ने क्यों कहा, अब UPA जैसा कुछ भी नहीं
पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी को परास्त करने के बाद TMC प्रमुख ममता बनर्जी का राजनीतिक कद बढ़ा है. उनके राजनीतिक सलाहकार प्रशांत किशोर ने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए जो खाका खींचा है, उसमें विपक्षी एकता के ऐसे सूत्र गढ़े गए हैं, जिसकी कमान ममता बनर्जी के हाथों में हो. कांग्रेस अभी तक खुद को मुख्य विपक्षी दल के तौर पेश करती रही है. कांग्रेस सरकार में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) का 10 साल तक नेतृत्व कर चुकी है. ऐसे हालात में 2024 में भी यूपीए का स्वभाविक नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी होंगे. यूपीए में रह चुके किसी दल ने अभी तक कांग्रेस के नेतृत्व को चुनौती नहीं दी थी.
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The IDEA and SPACE that #Congress represents is vital for a strong opposition. But Congress’ leadership is not the DIVINE RIGHT of an individual especially, when the party has lost more than 90% elections in last 10 years.
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Let opposition leadership be decided Democratically.
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Let opposition leadership be decided Democratically.
2024 लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी TMC प्रमुख ममता बनर्जी अब अन्य राज्यों के क्षत्रपों से मुलाकात कर रही है. अगर अपने राज्य के अलावा केंद्र की राजनीति में दखल देने की हैसियत रखने वाले शरद पवार जैसे राजनेता कांग्रेस के नेतृत्व को नकारते हैं, तभी किसी दूसरे दल को विपक्ष का नेतृत्व करने का मौका मिल सकता है. इस मकसद को हासिल करने का सीधा रास्ता संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) को खत्म करना ही है.
2019 के चुनाव के दौरान यूपीए में थे 22 राजनीतिक दल
2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान UPA में 22 पार्टियां थीं. कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम, राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी (RLSP), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML), झारखंड मुक्ति मोर्चा, जनता दल (S), कांग्रेस KC (M), राष्ट्रीय लोक दल, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, स्वाभिमान पक्ष, भारतीय ट्रायबल पार्टी (BTP), झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) JVM (P), हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM), केरला कांग्रेस KC(J), कम्युनिस्ट मार्क्सिस्ट पार्टी (J), पीस पार्टी ऑफ इंडिया, महान दल, कर्नाटक प्रज्ञनयावंथा जनता पार्टी, तेलंगाना जन समिति TJS और लोकतांत्रिक जनता दल. एनडीए से निकलने के बाद इस गठबंधन में शिवसेना भी शामिल हुई. राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी का विलय जेडी-यू में हो चुका है.
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) में कांग्रेस के अलावा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (DMK), झारखंड मुक्ति मोर्चा, जनता दल (S) ही ऐसी पार्टी है, जो अपने दम पर राज्यों के चुनाव और लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करती है. इसके बाकी के घटक वोट शेयर बढ़ाने में ही कांग्रेस की मदद करते हैं.
जो बीजेपी का विरोध करने की ताकत रखेगा, वही बनेगा बादशाह
अभी देश में कई ऐसे क्षेत्रीय दल भी हैं, जो अपने इलाकों में बड़ी राजनीतिक ताकत हैं मगर एनडीए या यूपीए का हिस्सा नहीं हैं. सीपीआई, तृणमूल कांग्रेस, टीआरएस, वाईएसआर कांग्रेस, अकाली दल, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी, पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस. ये सभी दल भारतीय जनता पार्टी के विरोधी तो हैं मगर चुनाव में कांग्रेस का मुकाबला भी करती है. खंडित जनादेश मिलने के बाद ये सभी दल बीजेपी विरोध के नाम पर एकजुट होकर यूपीए का समर्थन करते हैं.
यूपीए खत्म होते ही कांग्रेस से छिन जाएगा विपक्ष का नेतृत्व
राजनीति में संभावना यह बनती है कि यूपीए के खत्म होने के बाद ये सभी दल उसी गठबंधन को समर्थन करेंगे, जो बीजेपी के मुकाबले के लिए ज्यादा सशक्त होगा. ममता बनर्जी की रणनीति है कि अगले 2024 लोकसभा चुनाव तक विपक्ष के नाम पर यूपीए जैसा कोई राजनीतिक गठबंधन बचे ही नहीं. इसे हासिल करने के लिए तृणमूल कांग्रेस जहां त्रिपुरा और गोवा जैसे छोटे राज्यों में अपने विस्तार की संभावना तलाश रही हैं, वहीं कांग्रेस के नेताओं को टीएमसी में शामिल भी कर रही हैं. चर्चा है कि अगले दो साल में नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों में टीएमसी यूपीए की अगुवाई करने वाली कांग्रेस को कई झटके दे सकती है.
2004 में बना था संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA)
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) 2004 में उस समय बनी थी, जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को लोकसभा चुनाव में स्पष्ट बहुमत नहीं मिला. बीजेपी के विरोध के नाम पर दस राजनीतक दल चुनाव के बाद एकजुट हुए थे. जबकि एनडीए गठबंधन के घटक दलों ने लोकसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ा था. 2004 में सबसे अधिक सीटें हासिल करने वाली कांग्रेस ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन का नेतृत्व हासिल किया. कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी इस गठबंधन की चेयरपर्सन बनी. 2004 से 2014 तक यह गठबंधन केंद्र की सत्ता में रहा और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने रहे.