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आत्मनिर्भरता के लिए जरूरी है खाद्य आयात पर कम हो निर्भरता

खाद्य तेलों की बढ़ती कीमतों की वजह से आम गृहणियां परेशान हैं. पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतें पहले से आम लोगों की जेब खाली कर रहा है. समाज का हर तबका महंगाई से परेशान है. ऐसे में किसान ही वह वर्ग है, जो देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए बड़ी पहल कर सकता है. पर वह भी नहीं हो पा रहा है. समय की मांग है कि सरकार किसानों का समर्थन करने के लिए व्यापक राष्ट्रीय रणनीति बनाए ताकि महंगाई को काबू में किया जा सके.

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प्रतीकात्मक तस्वीर
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Published : Mar 9, 2021, 10:51 PM IST

पेट्रोल, डीजल और एलपीजी की बढ़ती कीमतों की वजह से गरीब और मध्यम वर्गीय लोग सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं. दाल की कीमत पहले से बढ़ी हुई है. दूसरी आवश्यक वस्तुओं के दामों में बेतहाशा वृद्धि हो रही है. इसने आम गृहणियों का बजट प्रभावित कर दिया है.

हालांकि, सरकार का दावा है कि पिछले साल के मुकाबले इस बार आवश्यक वस्तुओं की कीमतें औसतन कम हैं. सरकार यह मानती है कि तेल की कीमतों में वृद्धि की वजह से इनके दामों में तेजी आई है. खाद्य तेल की कीमत 150 रु प्रति लीटर हो चुकी है. अरहर दाल की कीमत 100 रु प्रति किलो से ज्यादा है. इमली का भाव आसमान छू रहा है. आम लोगों के खरीदने की क्षमता प्रभावित हुई है. सिर्फ एक महीने में आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में 37 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है. खाद्य तेलों की आयात में कमी का फायदा पेट्रोलियम पदार्थों के दामों में बढ़ोतरी की वजह से बेअसर हो गया.

बर्मा में राजनीतिक संकट की वजह से ब्लैक ग्राम का आयात प्रभावित हुआ. जाहिर है, इसका असर इडली और डोसा पर भी पड़ा. खाद्य तेलों की 70 फीसदी आपूर्ति आयात पर निर्भर है. ऐसे में उन देशों में हो रही उथल-पुथल हमारी कीमतों को सीधे प्रभावित करता है. मलेशिया और इंडोनेशिया में श्रमिकों की समस्या की वजह से पाम ऑयल का उत्पदान प्रभावित हुआ. अर्जेटीना में सूखे की वजह से सोयाबीन का उत्पादन कम हुआ. यूक्रेन में सूरजमूखी का उत्पादन काफी हद तक घट गया. ऐसे में खाद्य तेलों की कीमतें अचानक ही बढ़ गईं.

अमेरिका के बाद भारत में सबसे अधिक कृषि योग्य भूमि है. इसके बावजूद हम खाद्य तेल और दाल के लिए छोटे देशों पर निर्भर हैं. ऐसे में आत्मनिर्भर भारत का सपना कैसे पूरा होगा.

भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी क्रूड ऑयल आयात करता है. अब आप सोचिए भारत कृषि प्रधान देश है और हम बार-बार कहते हैं कि यहां के किसान मिट्टी से सोना पैदा करते हैं. ऊपर दिए गए आंकड़ों के प्ररिप्रेक्ष्य में देखिए यह दावा कितना उचित प्रतीत होता है.

1961 में खाद्य तेलों के वैश्विक आयात में भारत की भागीदारी 0.9 फीसदी थी. 2019 में यह आंकड़ा 12 फीसदी तक पहुंच गया. खाद्य तेलों के आयात पर भारत करीब 70 हजार करोड़ सालाना खर्च करता है. पीएम मोदी कहते हैं कि आयात पर खर्च होने वाले ये पैसे भारतीय किसानों को मिलने चाहिए. पर, किसान उन पर कैसे भरोसा करे कि कृषि कानून उनके पक्ष में है.

सरकार दावा करती है कि उसने 10.75 करोड़ किसानों को अब तक 1.15 लाख करोड़ पैसे बैंक अकाउंट में ट्रांसफर कर चुकी है. ये किसान कोई खैरात नहीं मांग रहे हैं. किसान तो बस अपनी फसल का उचित मूल्य चाहते हैं. खेती में आ रही कठिनाइयों और नुकसान की वजह से कई किसान खेती छोड़ चुके हैं. यह एक बड़ी वजह है कि बड़े शहरों के चारों ओर कृषि की जमीनों पर रीयल स्टेट का धंधा लगातार बढ़ता जा रहा है.

भारत को आत्म-मुग्धता के भाव से बाहर आना होगा कि उसने खाद्य उत्पादन के क्षेत्र में आत्म निर्भरता हासिल कर ली है. समय की मांग है कि हम किसानों के साथ खड़े हों. उनका समर्थन करें. अगर खाद्य संकट बढ़ा, तो इतने बड़े देश की इतनी बड़ी आबादी की मदद कौन कर सकता है ? कोई नहीं. लिहाजा, किसानों का समर्थन करने के लिए व्यापक राष्ट्रीय रणनीति की जरूरत है. इसके बाद ही भारत खाद्य उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकता है.

पेट्रोल, डीजल और एलपीजी की बढ़ती कीमतों की वजह से गरीब और मध्यम वर्गीय लोग सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं. दाल की कीमत पहले से बढ़ी हुई है. दूसरी आवश्यक वस्तुओं के दामों में बेतहाशा वृद्धि हो रही है. इसने आम गृहणियों का बजट प्रभावित कर दिया है.

हालांकि, सरकार का दावा है कि पिछले साल के मुकाबले इस बार आवश्यक वस्तुओं की कीमतें औसतन कम हैं. सरकार यह मानती है कि तेल की कीमतों में वृद्धि की वजह से इनके दामों में तेजी आई है. खाद्य तेल की कीमत 150 रु प्रति लीटर हो चुकी है. अरहर दाल की कीमत 100 रु प्रति किलो से ज्यादा है. इमली का भाव आसमान छू रहा है. आम लोगों के खरीदने की क्षमता प्रभावित हुई है. सिर्फ एक महीने में आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में 37 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है. खाद्य तेलों की आयात में कमी का फायदा पेट्रोलियम पदार्थों के दामों में बढ़ोतरी की वजह से बेअसर हो गया.

बर्मा में राजनीतिक संकट की वजह से ब्लैक ग्राम का आयात प्रभावित हुआ. जाहिर है, इसका असर इडली और डोसा पर भी पड़ा. खाद्य तेलों की 70 फीसदी आपूर्ति आयात पर निर्भर है. ऐसे में उन देशों में हो रही उथल-पुथल हमारी कीमतों को सीधे प्रभावित करता है. मलेशिया और इंडोनेशिया में श्रमिकों की समस्या की वजह से पाम ऑयल का उत्पदान प्रभावित हुआ. अर्जेटीना में सूखे की वजह से सोयाबीन का उत्पादन कम हुआ. यूक्रेन में सूरजमूखी का उत्पादन काफी हद तक घट गया. ऐसे में खाद्य तेलों की कीमतें अचानक ही बढ़ गईं.

अमेरिका के बाद भारत में सबसे अधिक कृषि योग्य भूमि है. इसके बावजूद हम खाद्य तेल और दाल के लिए छोटे देशों पर निर्भर हैं. ऐसे में आत्मनिर्भर भारत का सपना कैसे पूरा होगा.

भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी क्रूड ऑयल आयात करता है. अब आप सोचिए भारत कृषि प्रधान देश है और हम बार-बार कहते हैं कि यहां के किसान मिट्टी से सोना पैदा करते हैं. ऊपर दिए गए आंकड़ों के प्ररिप्रेक्ष्य में देखिए यह दावा कितना उचित प्रतीत होता है.

1961 में खाद्य तेलों के वैश्विक आयात में भारत की भागीदारी 0.9 फीसदी थी. 2019 में यह आंकड़ा 12 फीसदी तक पहुंच गया. खाद्य तेलों के आयात पर भारत करीब 70 हजार करोड़ सालाना खर्च करता है. पीएम मोदी कहते हैं कि आयात पर खर्च होने वाले ये पैसे भारतीय किसानों को मिलने चाहिए. पर, किसान उन पर कैसे भरोसा करे कि कृषि कानून उनके पक्ष में है.

सरकार दावा करती है कि उसने 10.75 करोड़ किसानों को अब तक 1.15 लाख करोड़ पैसे बैंक अकाउंट में ट्रांसफर कर चुकी है. ये किसान कोई खैरात नहीं मांग रहे हैं. किसान तो बस अपनी फसल का उचित मूल्य चाहते हैं. खेती में आ रही कठिनाइयों और नुकसान की वजह से कई किसान खेती छोड़ चुके हैं. यह एक बड़ी वजह है कि बड़े शहरों के चारों ओर कृषि की जमीनों पर रीयल स्टेट का धंधा लगातार बढ़ता जा रहा है.

भारत को आत्म-मुग्धता के भाव से बाहर आना होगा कि उसने खाद्य उत्पादन के क्षेत्र में आत्म निर्भरता हासिल कर ली है. समय की मांग है कि हम किसानों के साथ खड़े हों. उनका समर्थन करें. अगर खाद्य संकट बढ़ा, तो इतने बड़े देश की इतनी बड़ी आबादी की मदद कौन कर सकता है ? कोई नहीं. लिहाजा, किसानों का समर्थन करने के लिए व्यापक राष्ट्रीय रणनीति की जरूरत है. इसके बाद ही भारत खाद्य उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकता है.

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