नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए रविवार को तीसरे चरण के लिए वोटिंग हो गई. अब यूपी में चार चरणों के मतदान बाकी हैं. माना जाता है कि बाकी बचे चार चरणों में राजनीतिक बयानबाजी तेज होगी और चुनावी माहौल गरमाएगा. अब तक यूपी विधानसभा की 403 सीटों में से 172 के लिए वोटिंग हो चुकी है. तीसरे फेज से ही यूपी की चुनावी राजनीति में 'कमंडल' के बाद 'मंडल (सामाजिक न्याय)' की एंट्री हुई है. बाकी बचे चार चरण बीजेपी और समाजवादी पार्टी के लिए बड़ी चुनौती साबित होने वाली है. ग्राउंड रिपोर्ट में यह सामने आ रहा है कि पहले दो फेज में बीजेपी को 2017 की तरह बड़ी सफलता नहीं मिली है, वहीं इसका सीधा फायदा समाजवादी पार्टी को हुआ है. अब भारतीय जनता पार्टी इसकी भरपाई अगले चार चरणों में करने की कोशिश करेगी. वहीं दूसरी ओर समाजवादी पार्टी इस दौर में बढ़त का प्रयास कर रही है.
राजनीतिक दल करेंगे तीखे हमले
मतदान के फेज जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे हैं, चुनाव में राजनीतिक बहस का लहजा तीखा हो गया है. थर्ड फेज के चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सपा पर तीखे हमले किए. उन्होंने कहा कि गुजरात में आतंकवादियों ने साइकिल में बम लगाए थे, जो कि सपा का चुनाव चिह्न है. उसी दिन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गोंडा में एक रैली में सपा के समाजवाद को नकली करार दिया. उन्होंने कहा कि सपा के नकली समाजवाद से मुकाबला भाजपा का असली समाजवाद ही कर सकता है. तीसरे चरण के चुनाव प्रचार में समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव भी व्हीलचेयर पर बैठकर जनता के बीच गए. इस दौरान करीब 5 साल बाद पहली बार अखिलेश, शिवपाल और धर्मेंद्र यादव समेत पूरे यादव परिवार एक साथ एक मंच पर नजर आया. इस दौरान शिवपाल यादव की सीट के लिए भी विपक्ष ने सपा को आड़े हाथ लिया.
सुस्त रहे शहरी वोटर, गांवों में खूब पड़े वोट
थर्ड फेज में बुंदेलखंड की 13 सीटों और कानपुर की 14 सीटों के अलावा 'यादव बेल्ट' के नाम से मशहूर 32 सीटों पर भी वोटिंग हुई. 2017 के चुनाव में बीजेपी ने 59 में 49 सीटें जीती थी. करीब एक दर्जन सीटों पर जीत का अंतर तीस हजार से ज्यादा था. इन सीटों पर 2012 तक समाजवादी पार्टी का प्रभुत्व था. अब देखना यह है कि पिछले चुनाव में अपनी सियासी जमीन गंवाने वाली सपा इस चुनाव में अपन गढ़ दोबारा हासिल कर पाती है या नहीं. तीसरे चरण में 2017 के मुकाबले कम मतदान हुआ. इस दौरान 60.18 प्रतिशत वोटरों ने वोट डाले. पिछले दो चरणों की तरह तीसरे फेज में भी शहरी वोटरों का मत प्रतिशत कम रहा जबकि ग्रामीण इलाकों में जमकर वोटिंग हुई. इन इलाकों में मुस्लिम वोटरों की तादाद कम हैं. माना जाता है कि तीसरे चरण के कुल वोटरों में मुस्लिम वोटरों का प्रतिशत 7 से 12 के बीच है. इटावा, मैनपुरी, एटा, फरुखाबाद और कन्नौज सहित जिलों में 10 से 15 फीसदी के बीच यादव वोटर हैं. थर्ड फेज में किसान आंदोलन में आगे रहने वाले जाट वोटरों का प्रभाव नहीं था. इस दौर में सपा तभी बढ़त हासिल कर सकती है, जब वह यादव और मुसलमानों के अलावा अन्य जाति का वोट हासिल करे.
यूपी चुनाव के तीसरे चरण में कुर्मी, प्रजापति, शाक्य, मौर्य और लोध सहित गैर-यादव ओबीसी वोटरों का भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. बुंदेलखंड यानी झांसी, जालौन, ललितपुर और महोबा जैसे जिले में दलितों की आबादी लगभग 22 प्रतिशत है. विधानसभा चुनाव 2017 में बीजेपी गैर यादव और गैर जाटव वोटों को अपने पक्ष में लाने में कामयाब हुई थी, इस कारण उसे बड़ी सफलता मिली थी. विधानसभा चुनाव 2022 में बीजेपी ने डर (बेहतर कानून और व्यवस्था) और भूख (मुफ्त राशन) के सहारे चुनावी नैया पार कराने की कोशिश की है.
दलित और गैर यादव ओबीसी बीजेपी के साथ
तीसरे फेज की वोटिंग के बाद मिली रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि ओबीसी और दलित इस बार भी भाजपा के समर्थन में रहे जबकि कुर्मी, मौर्य और यादवों ने बीजेपी से दूरी बनाई. माना जाता है कि इस क्षेत्र में केशव प्रसाद मौर्य का काफी प्रभाव है. इस चरण में चुनाव से ठीक पहले पाला बदलने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य की भी परीक्षा हुई है. इस चरण में नतीजे इस पर निर्भर करेंगे कि सपा गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलित वोटरों के बीच अपनी पैठ कितनी बना पाई.
जमीनी रिपोर्टों से पता चलता है कि बुंदेलखंड में सपा को मामूली बढ़त मिल सकती है. 2017 में भाजपा ने बुंदेलखंड की सभी 13 सीटों पर जीत हासिल की थी. इसके अलावा कानपुर शहरी और ग्रामीण की 14 सीटों के साथ-साथ यादव बेल्ट में भी भाजपा और सपा के बीच कांटे की टक्कर है. तीसरे चरण से यह संदेश निकला है कि भले ही भाजपा लखनऊ में अपनी सरकार बनाए रखने में कामयाब हो, लेकिन विधानसभा में उसकी ताकत बहुत कम होगी.
(डिस्क्लेमर: इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं. यहां व्यक्त किए गए तथ्य और राय ईटीवी भारत के विचारों को नहीं दर्शाते हैं)
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