नई दिल्ली : लगातार दूसरी बार वर्ष 2019 में देश की बागडोर संभालने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत सात जुलाई को अपनी मंत्रिपरिषद में व्यापक फेरबदल और विस्तार किया. इसके तहत उन्होंने जहां 12 मंत्रियों की छुट्टी कर दी, वहीं 36 नए चेहरों को शामिल करते हुए उन्हें विभिन्न मंत्रालयों की जिम्मेदारी भी सौंप दी. इस कवायद से जुड़े विभिन्न पहुलओं पर पेश है सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के निदेशक संजय कुमार के जवाब.
सवाल : पिछले दिनों केंद्रीय मंत्रिपरिषद में फेरबदल व विस्तार की कवायद के आप क्या राजनीतिक निहितार्थ देखते हैं?
जवाब : जब भी मंत्रिपरिषद में फेरबदल या विस्तार होता है तो यह माना जाता है कि सरकार मान रही है कि जिस क्षेत्र में जितना विकास होना चाहिए था, वह नहीं हो सका है. जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए सरकार काबिल नेताओं को सामने लेकर आती है, ताकि विभिन्न मंत्रालयों के जरिए देश के अलग-अलग क्षेत्रों का विकास हो सके. जिस तरह का इस बार विस्तार हुआ है उससे यही संदेश देने की कोशिश की गई है कि देश की प्रगति के लिए जिम्मेदारी काबिल हाथों में सौंपी गई है. यह संदेश भी देने की कोशिश हुई है कि सिर्फ विकास ही सरकार का एजेंडा नहीं है, बल्कि सामाजिक न्याय भी उसके लिए उतना ही महत्वपूर्ण है. चूंकि अगले साल कई राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं, इसलिए जहां अल्पकालिक लाभ के लिए उत्तर प्रदेश जैसे राज्य का प्रतिनिधित्व बढ़ाया गया है, वहीं 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर दीर्घकालिक लाभ के लिए सामाजिक समीकरण भी साधने की कोशिश हुई है और 25 राज्यों को इसमें प्रतिनिधित्व दिया गया है. भाजपा को पता है कि चुनावों में जीत दर्ज करने के लिए उसे अपने परंपरागत वोट बैंक के अलावा दलित, आदिवासी सहित अन्य पिछड़ा वर्ग सहित व अलग-अलग जाति समुदाय के लोगों को भी साधना होगा. कोशिश यही की गई है.
सवाल : लेकिन विपक्ष कह रहा है कि डिब्बे बदलने से कुछ नहीं होगा, इंजन ही बदलना पड़ेगा, आपकी राय?
जवाब : अपनी-अपनी सोच है. लेकिन कम से कम भाजपा के अंदर ऐसी सोच नहीं है और मुझे लगता है कि इस वक्त जनता के बीच भी ऐसी सोच अभी नहीं आई है कि इंजन में कोई खराबी आ गई है या फिर इंजन पुराना हो गया है. यह जरूर है कि जब कोविड-19 महामारी अपने चरम पर थी, लोगों में उन्हें लेकर निराशा थी. लेकिन अब वह धीरे-धीरे कम हो रही है. प्रधानमंत्री अपनी पुरानी छवि को फिर से हासिल करने में सफल होते दिख रहे हैं. इसलिए, मुझे नहीं लगता कि जनता को लगने लगा है कि अब इंजन बदलने का समय आ गया है.
सवाल : तो क्या पूर्व स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन को बलि का बकरा बनाया गया?
जवाब : सरकार को इस बात का आभास था कि कोरोना की दूसरी लहर में लोगों को जिस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा, उससे देश की जनता सरकार से नाराज है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सरकार की छीछालेदर हुई. कम से कम जनता को यह बताना था कि जो अच्छा नहीं करेगा, उसके लिए इस सरकार में जगह नहीं है. सरकार ने इस बात को खुलकर तो नहीं माना कि कोविड प्रबंधन के मोर्चे पर उसका प्रदर्शन खराब रहा, लेकिन हर्षवर्धन को हटाकर यह बताने की कोशिश की गई कि जो व्यक्ति जनता की आशाओं पर खरा नहीं उतरा, उसको हम अपने मंत्रिमंडल से हटा रहे हैं. स्वास्थ्य मंत्री को हटाकर, प्रधानमंत्री ने जो अपनी छवि धूमिल हुई थी, उसको वापस हासिल करने की कोशिश की है तो उन्हें बलि का बकरा बनाया ही गया है.
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सवाल : इस कवायद से जनता को क्या मिला? क्या लोगों को महंगाई से राहत मिलने और दूसरी लहर जैसी स्थिति का फिर से सामना न करना पड़े की उम्मीद करनी चाहिए?
जवाब : देश की जनता को कुछ नहीं मिला, केवल उम्मीदें जगाई गई हैं. इस कवायद से पहले भी ऐसी उम्मीदें जगाई जाती रही हैं. जनता को एक भरोसा दिया गया है कि जिन लोगों ने अच्छा काम नहीं किया, उनको हमने बदल दिया है. अब हम नई टीम लेकर आए हैं. अब आप उम्मीद करें कि हमारी नई टीम बेहतर काम करेगी, आप उम्मीद और हौसला बनाए रखें. यह नयी टीम काफी सक्षम है और इसमें पेशेवर, अनुभवी, शिक्षित लोग हैं. जनता को इस भरोसे के सिवाय कुछ नहीं मिला है.
सवाल : सहकारिता मंत्रालय के गठन के भी क्या कोई राजनीतिक मायने हैं?
जवाब : इस नवगठित मंत्रालय के कामकाज और उसके दायरों के बारे में स्पष्टता नहीं है. अभी-अभी इसके बारे में कुछ भी कह पाना जल्दबाजी होगा. हो सकता है कि देशभर में जो सहकारी संस्थाएं और समितियां हैं उनके बारे में कोई एक राष्ट्रव्यापी दिशा-निर्देश बने या फिर इस क्षेत्र का विकेंद्रीकरण किया जाए. सहकारिता क्षेत्र पर नियंत्रण करने की भी मंशा हो सकती है.
(पीटीआई-भाषा)