ETV Bharat / bharat

तेलंगाना हाईकोर्ट ने मार्गदर्शी के लिए 'प्राइवेट ऑडिटर' नियुक्त करने के आंध्र प्रदेश सरकार के फैसले पर लगाई रोक

मार्गदर्शी चिट फंड (Margadarsi Chit Fund) मामले में आंध्र प्रदेश सरकार के प्राइवेट ऑडिटर नियुक्त करने के फैसले पर तेलंगाना हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है. तेलंगाना हाईकोर्ट ने स्थगन आदेश (स्टे ऑर्डर) जारी कर ऑडिटर की नियुक्ति को कानून के तहत अस्वीकार्य बताया है.

Telangana High Court
तेलंगाना हाईकोर्ट
author img

By

Published : Apr 24, 2023, 10:23 PM IST

Updated : Apr 24, 2023, 10:59 PM IST

हैदराबाद: मार्गदर्शी चिट फंड (एमसीएफ) के ऑडिट के लिए एक निजी 'चिट ऑडिटर' नियुक्त करने के फैसले को लेकर आंध्र प्रदेश सरकार को झटका लगा है. तेलंगाना हाईकोर्ट ने एमसीएफ के खिलाफ ऑडिटर की सभी कार्रवाई पर रोक लगाते हुए कहा कि ये नियुक्ति 'कानून के तहत अस्वीकार्य' है.

न्यायमूर्ति मुम्मिनेनी सुधीर कुमार (Justice Mummineni Sudheer Kumar) की पीठ ने 20 अप्रैल को स्थगन आदेश पारित किया कि आंध्र प्रदेश के आयुक्त, स्टाम्प और पंजीकरण महानिरीक्षक के पास ऑडिट का आदेश देने की शक्ति नहीं है.

अदालत ने अपने विस्तृत स्थगन आदेश में कहा कि 'प्रथम दृष्टया न्यायालय का विचार है कि इस मामले में सामान्य लेखापरीक्षा करने के उद्देश्य से चिट फंड अधिनियम, 1982 की धारा 61 की उप-धारा 4 के तहत अपनी शक्ति का उपयोग करने में दूसरे प्रतिवादी (आंध्र प्रदेश सरकार) की कार्रवाई, कंपनी अधिकार क्षेत्र के बिना है. प्रतिवादी संख्या 2 को ऐसी कोई शक्ति प्रदान नहीं की गई है जो कि विवादित कार्यवाही द्वारा कवर की गई प्रकृति की लेखापरीक्षा का आदेश दे सके.'

दरअसल आंध्र प्रदेश के आयुक्त, स्टाम्प और पंजीकरण महानिरीक्षक ने 15 मार्च 2023 से एक वर्ष की अवधि के लिए वेमुलापति श्रीधर को निजी ऑडिटर के रूप में नियुक्त किया था. श्रीधर को आंध्र प्रदेश में मार्गदर्शी चिट फंड (Margadarsi Chit Fund) की 37 चिट इकाइयों के संबंध में एक विस्तृत ऑडिट करने के लिए कहा गया था.

इसके बाद मार्गदर्शी ने तेलंगाना उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की. याचिका में आंध्र सरकार के आदेश को रद्द करने की मांग की गई जिसमें श्रीधर को ऑडिट करने का निर्देश दिया गया था. ऑडिटर की किसी भी और सभी कार्रवाई पर रोक लगाते हुए, अदालत ने सवाल किया कि 'कैसे निजी ऑडिटर ने मार्गदर्शी चिट फंड के मामलों की जांच अपने दम पर की.'

कोर्ट ने ये की टिप्पणी : कोर्ट ने कहा कि 'इस न्यायालय का विचार है कि प्रतिवादी संख्या 3 (वेमुलापति श्रीधर) की चिट ऑडिटर के रूप में नियुक्ति में प्रतिवादी संख्या 2 (आंध्र स्टाम्प और पंजीकरण) की कार्रवाई और सामान्य मामलों में लेखा परीक्षा का आदेश देना, वह भी याचिकाकर्ता (कंपनी) के बिना किसी चिट या चिट के समूह के किसी विशिष्ट संदर्भ के बिना, प्रथम दृष्टया कानून के तहत अस्वीकार्य है.'

स्टे ऑर्डर में कहा गया है कि 'प्रतिवादी संख्या 3 (वेमुलापति श्रीधर) की सेवाएं 09 जनवरी 2023 को चिट फंड कंपनियों की लेखापरीक्षा करने में निरीक्षण अधिकारियों की सहायता करने के उद्देश्य से ली गई थीं लेकिन न्यायालय के समक्ष रखी गई प्रारंभिक रिपोर्ट से पता चलता है कि श्रीधर ने स्वयं एक जांच की और प्रतिवादी संख्या 2 (आंध्र प्रदेश सरकार) को एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें निरीक्षण अधिकारियों की कोई भागीदारी नहीं थी.'

कोर्ट ने कहा कि ' प्रतिवादी संख्या 3 (वेमुलापति श्रीधर) ने याचिकाकर्ता-कंपनी के मामलों की जांच अपने दम पर कैसे की? यह अंतिम रूप से प्रतिवादियों द्वारा जवाबी हलफनामे दायर करने के बाद जांच की जाने वाली बात है. इसके अलावा, प्रारंभिक रिपोर्ट व्यक्तिगत चर्चाओं को संदर्भित करती है. जब वेमुलापति श्रीधर को निरीक्षण अधिकारियों की सहायता के लिए नियुक्त किया गया था, तो प्रतिवादी संख्या 2 (आंध्र प्रदेश सरकार) ने श्रीधर के साथ व्यक्तिगत चर्चा क्यों की?, इससे प्रथम दृष्टया मुकुल रोहतगी के इस तर्क को बल मिलता है कि आपत्तिजनक कार्रवाई बाहरी विचारों के लिए है.'

रोहतगी का तर्क, याचिकाकर्ता के व्यवसाय को प्रभावित करने की मंशा से ऐसा किया गया : इससे पहले, मार्गदर्शी चिट फंड का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी (Senior Advocate Mukul Rohatgi) ने तर्क दिया कि चिट ऑडिटर केवल एक विशेष चिट या चिट के समूह में ऑडिट करने का हकदार था, लेकिन सामान्य तौर से कंपनी के कामकाज के लिए नहीं.

रोहतगी ने तर्क दिया कि प्रतिवादी, याचिकाकर्ता को पूर्वाग्रह पैदा करने की दृष्टि से, बाहरी विचारों के कारण किसी विशेष चिट या चिट समूह के संबंध में कोई विशेष आरोप लगाए बिना 'मछली पकड़ने और घूमने वाली पूछताछ' करने की कोशिश कर रहे थे.

उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यदि क़ानून किसी विशेष तरीके से किए जाने वाले किसी विशेष कार्य को अनिवार्य करता है, तो उसे उसी तरीके से किया जाना चाहिए उसे किसी अन्य तरीके से नहीं किया जा सकता है. उन्होंने तर्क दिया कि विवादित कार्यवाही केवल याचिकाकर्ता को परेशान करने और विभिन्न बाहरी विचारों के कारण याचिकाकर्ता के व्यवसाय को प्रभावित करने के लिए जारी की गई थी.

रोहतगी ने कहा कि याचिकाकर्ता के वित्तीय संस्थान के खिलाफ जैसा वित्तीय अनियमितता का कोई भी आरोप लगाया गया है उससे कंपनी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, उस पर से जनता का विश्वास भी कम हो सकता है, जबकि ये कंपनी 1962 से इस व्यवसाय में है. ये पूरी तरह से सत्ता के दबाव का मामला है. कोर्ट ने सारे तर्क सुनने के बाद आदेश दिया कि आगे की सभी कार्यवाहियों पर अंतरिम रोक रहेगी. मामले की अगली सुनवाई 19 जून को होगी.

पढ़ें- मार्गदर्शी के समर्थन में आया ऑल इंडिया चिट फंड्स एसोसिएशन, कहा- कंपनी के खिलाफ कोई शिकायत नहीं है

हैदराबाद: मार्गदर्शी चिट फंड (एमसीएफ) के ऑडिट के लिए एक निजी 'चिट ऑडिटर' नियुक्त करने के फैसले को लेकर आंध्र प्रदेश सरकार को झटका लगा है. तेलंगाना हाईकोर्ट ने एमसीएफ के खिलाफ ऑडिटर की सभी कार्रवाई पर रोक लगाते हुए कहा कि ये नियुक्ति 'कानून के तहत अस्वीकार्य' है.

न्यायमूर्ति मुम्मिनेनी सुधीर कुमार (Justice Mummineni Sudheer Kumar) की पीठ ने 20 अप्रैल को स्थगन आदेश पारित किया कि आंध्र प्रदेश के आयुक्त, स्टाम्प और पंजीकरण महानिरीक्षक के पास ऑडिट का आदेश देने की शक्ति नहीं है.

अदालत ने अपने विस्तृत स्थगन आदेश में कहा कि 'प्रथम दृष्टया न्यायालय का विचार है कि इस मामले में सामान्य लेखापरीक्षा करने के उद्देश्य से चिट फंड अधिनियम, 1982 की धारा 61 की उप-धारा 4 के तहत अपनी शक्ति का उपयोग करने में दूसरे प्रतिवादी (आंध्र प्रदेश सरकार) की कार्रवाई, कंपनी अधिकार क्षेत्र के बिना है. प्रतिवादी संख्या 2 को ऐसी कोई शक्ति प्रदान नहीं की गई है जो कि विवादित कार्यवाही द्वारा कवर की गई प्रकृति की लेखापरीक्षा का आदेश दे सके.'

दरअसल आंध्र प्रदेश के आयुक्त, स्टाम्प और पंजीकरण महानिरीक्षक ने 15 मार्च 2023 से एक वर्ष की अवधि के लिए वेमुलापति श्रीधर को निजी ऑडिटर के रूप में नियुक्त किया था. श्रीधर को आंध्र प्रदेश में मार्गदर्शी चिट फंड (Margadarsi Chit Fund) की 37 चिट इकाइयों के संबंध में एक विस्तृत ऑडिट करने के लिए कहा गया था.

इसके बाद मार्गदर्शी ने तेलंगाना उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की. याचिका में आंध्र सरकार के आदेश को रद्द करने की मांग की गई जिसमें श्रीधर को ऑडिट करने का निर्देश दिया गया था. ऑडिटर की किसी भी और सभी कार्रवाई पर रोक लगाते हुए, अदालत ने सवाल किया कि 'कैसे निजी ऑडिटर ने मार्गदर्शी चिट फंड के मामलों की जांच अपने दम पर की.'

कोर्ट ने ये की टिप्पणी : कोर्ट ने कहा कि 'इस न्यायालय का विचार है कि प्रतिवादी संख्या 3 (वेमुलापति श्रीधर) की चिट ऑडिटर के रूप में नियुक्ति में प्रतिवादी संख्या 2 (आंध्र स्टाम्प और पंजीकरण) की कार्रवाई और सामान्य मामलों में लेखा परीक्षा का आदेश देना, वह भी याचिकाकर्ता (कंपनी) के बिना किसी चिट या चिट के समूह के किसी विशिष्ट संदर्भ के बिना, प्रथम दृष्टया कानून के तहत अस्वीकार्य है.'

स्टे ऑर्डर में कहा गया है कि 'प्रतिवादी संख्या 3 (वेमुलापति श्रीधर) की सेवाएं 09 जनवरी 2023 को चिट फंड कंपनियों की लेखापरीक्षा करने में निरीक्षण अधिकारियों की सहायता करने के उद्देश्य से ली गई थीं लेकिन न्यायालय के समक्ष रखी गई प्रारंभिक रिपोर्ट से पता चलता है कि श्रीधर ने स्वयं एक जांच की और प्रतिवादी संख्या 2 (आंध्र प्रदेश सरकार) को एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें निरीक्षण अधिकारियों की कोई भागीदारी नहीं थी.'

कोर्ट ने कहा कि ' प्रतिवादी संख्या 3 (वेमुलापति श्रीधर) ने याचिकाकर्ता-कंपनी के मामलों की जांच अपने दम पर कैसे की? यह अंतिम रूप से प्रतिवादियों द्वारा जवाबी हलफनामे दायर करने के बाद जांच की जाने वाली बात है. इसके अलावा, प्रारंभिक रिपोर्ट व्यक्तिगत चर्चाओं को संदर्भित करती है. जब वेमुलापति श्रीधर को निरीक्षण अधिकारियों की सहायता के लिए नियुक्त किया गया था, तो प्रतिवादी संख्या 2 (आंध्र प्रदेश सरकार) ने श्रीधर के साथ व्यक्तिगत चर्चा क्यों की?, इससे प्रथम दृष्टया मुकुल रोहतगी के इस तर्क को बल मिलता है कि आपत्तिजनक कार्रवाई बाहरी विचारों के लिए है.'

रोहतगी का तर्क, याचिकाकर्ता के व्यवसाय को प्रभावित करने की मंशा से ऐसा किया गया : इससे पहले, मार्गदर्शी चिट फंड का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी (Senior Advocate Mukul Rohatgi) ने तर्क दिया कि चिट ऑडिटर केवल एक विशेष चिट या चिट के समूह में ऑडिट करने का हकदार था, लेकिन सामान्य तौर से कंपनी के कामकाज के लिए नहीं.

रोहतगी ने तर्क दिया कि प्रतिवादी, याचिकाकर्ता को पूर्वाग्रह पैदा करने की दृष्टि से, बाहरी विचारों के कारण किसी विशेष चिट या चिट समूह के संबंध में कोई विशेष आरोप लगाए बिना 'मछली पकड़ने और घूमने वाली पूछताछ' करने की कोशिश कर रहे थे.

उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यदि क़ानून किसी विशेष तरीके से किए जाने वाले किसी विशेष कार्य को अनिवार्य करता है, तो उसे उसी तरीके से किया जाना चाहिए उसे किसी अन्य तरीके से नहीं किया जा सकता है. उन्होंने तर्क दिया कि विवादित कार्यवाही केवल याचिकाकर्ता को परेशान करने और विभिन्न बाहरी विचारों के कारण याचिकाकर्ता के व्यवसाय को प्रभावित करने के लिए जारी की गई थी.

रोहतगी ने कहा कि याचिकाकर्ता के वित्तीय संस्थान के खिलाफ जैसा वित्तीय अनियमितता का कोई भी आरोप लगाया गया है उससे कंपनी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, उस पर से जनता का विश्वास भी कम हो सकता है, जबकि ये कंपनी 1962 से इस व्यवसाय में है. ये पूरी तरह से सत्ता के दबाव का मामला है. कोर्ट ने सारे तर्क सुनने के बाद आदेश दिया कि आगे की सभी कार्यवाहियों पर अंतरिम रोक रहेगी. मामले की अगली सुनवाई 19 जून को होगी.

पढ़ें- मार्गदर्शी के समर्थन में आया ऑल इंडिया चिट फंड्स एसोसिएशन, कहा- कंपनी के खिलाफ कोई शिकायत नहीं है

Last Updated : Apr 24, 2023, 10:59 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.