नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से कहा कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और राज्य के राज्यपाल के बीच कई चीजें हैं जिन्हें सुलझाना है. कोर्ट ने कहा कि अगर राज्यपाल सीएम के साथ बातचीत करते हैं और गतिरोध को हल करते हैं तो अदालत इसकी सराहना करेगी. कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल किसी बिल की हत्या नहीं कर सकते.
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि मिस्टर अटॉर्नी जनरल, हम चाहेंगे कि राज्यपाल इस गतिरोध को हल करें. हम इस तथ्य से अवगत हैं कि हम उच्च संवैधानिक पदाधिकारी के बारे में बात कर रहे हैं. अनुच्छेद 200 के मूल भाग के तहत राज्यपाल के पास तीन विकल्प हैं: वह विधेयक पर सहमति दे सकता है, या वह सहमति रोक सकता है, या वह इसे सुरक्षित रख सकता है.
इस मामले में सीजेआई ने कहा कि आप कहते हैं कि नवंबर 2023 में उन्होंने सहमति रोक दी थी. अब, एक बार जब उन्होंने सहमति रोक दी तो इसे राष्ट्रपति को संदर्भित करने का कोई सवाल ही नहीं है. एजी ने जवाब दिया कि यह एक खुला प्रश्न है और इसकी जांच की जाएगी.
कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल के पास तीन विकल्प हैं. उन्हें उनमें एक से एक का पालन करना होगा: सहमति देना, अनुमति रोकना और इसे राष्ट्रपति के पास भेजना. इसलिए, जब वह सहमति रोकता है तो फिर वह यह नहीं कह सकता कि अब मैं इसे राष्ट्रपति के पास भेज रहा हूं. सीजेआई ने कहा कि हम इसे बहुत आम बोलचाल की भाषा में कहें तो वह बिल को वहां नहीं रोक सकते.
विस्तृत सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने मामले में आगे की सुनवाई दिसंबर के दूसरे सप्ताह में निर्धारित की. 20 नवंबर को, सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सहमति के लिए प्रस्तुत बिलों के निपटान में तमिलनाडु के राज्यपाल की ओर से देरी पर सवाल उठाया था. कोर्ट ने कहा था कि बिल जनवरी 2020 से लंबित हैं और राज्यपाल तीन साल से क्या कर रहे थे?