हैदराबाद : पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान का तालिबान प्रेम फिर छलक आया. पीबीएस नेटवर्क को दिए गए इंटरव्यू में पीएम इमरान खान ने कहा है कि तालिबान कोई सैन्य संगठन नहीं है बल्कि वह भी हमलोगों की तरह सामान्य नागरिक हैं. इमरान खान ने कहा, पाकिस्तान में 30 लाख अफगान शरणार्थी रहते हैं. इनमें से बड़ी संख्या में पश्तून हैं और इन लोगों की तालिबान के साथ सहानुभूति है. पाकिस्तान इस बात की कैसे जांच करेगा कि कौन अफगानिस्तान में लड़ने जा रहा है.
तालिबान के प्रति इमरान खान कितने हमदर्द हैं कि इसका अंदाजा उनके जवाब में भी मिला. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने कहा, अफगानिस्तान में राजनीतिक समाधान ही विकल्प है, जो सबको मिलाकर ही होना चाहिए. ज़ाहिर है तालिबान वहां की सरकार का हिस्सा होगा.
पाकिस्तानी सेना और इंटेलिजेंस कर रही है मदद : तालिबान को अफगानिस्तान की गद्दी पर बैठाने की चाहत पुरानी है. इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि पाकिस्तान अमेरिकी सैनिकों की अफगानिस्तान से वापसी और तालिबान के बढ़ते प्रभाव को एक अवसर के तौर पर देख रहा है. पाकिस्तान तालिबान को अफगानिस्तान की सत्ता पर बैठाना चाहता है. पाकिस्तानी इंटेलिजेंस और सैनिक बॉर्डर इलाके में तालिबान की मदद कर रहे हैं.
सोशल मीडिया में पाकिस्तान-अफगानिस्तान बॉर्डर का एक वीडियो वायरल हो रहा है. कंधार के स्पिन बोल्डक इलाके में नजर सिक्युरिटी पोस्ट के पास पाकिस्तानी सैनिक गश्त कर रहे हैं और डूरंड लाइन पार करने के बाद तालिबानी लड़ाकों से बात कर रहे हैं.
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#Kandahar: Pakistani troops movement in areas under Taliban control. The video shared on social media shows Pakistani forces crossed the Durand Line into the Afghan soil, by the 'Nazar Security Post', in Spinboldak of the province. #Afghanistan pic.twitter.com/1H3DN9Bv37
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6 हजार पाकिस्तानी मुजाहिद सीधी लड़ाई में शामिल : बता दें कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान के संगठन तहरीक-ए-तालिबान के 6 हजार आतंकी अफगान सीमा के अंदर एक्टिव हैं. वे तालिबान की मदद कर रहे हैं. अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी पहले ही कह चुके हैं कि पाकिस्तान ने तालिबान को मदद करने के लिए 10 हजार जिहादी अफगानिस्तान में भेजे हैं.
तालिबान प्रेम में रियायत का ऑफर ठुकरा चुके हैं इमरान : मीडिया रिपोर्टस के अनुसार, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान का तालिबान के प्रति प्यार इतना गहरा है कि वह अमेरिका से आर्थिक मदद का एक बड़ा ऑफर ठुकरा चुके हैं. भले ही अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान से लौट रहे हैं, मगर अमेरिका तालिबान पर नजर रखना चाहता है. बताया जाता है कि अमेरिका ने पाकिस्तान के ब्लूचिस्तान में सीक्रेट सैन्य बेस बनाने की अनुमति मांगी थी.
इस मीलिट्री बेस से अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए अफगानिस्तान में अपने सीक्रेट ड्रोन मिशन ऑपरेट करना चाहती थी. बदले में अमेरिका ने रोकी गई आर्थिक मदद दोबारा बहाल करने का वादा किया था. मगर तालिबान की मदद करने के लिए इमरान खान ने सैन्य बेस बनाने की इजाजत नहीं दी. बाद में एक इंटरव्यू में इमरान खान ने स्पष्ट किया था कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद वह अमेरिका को पाकिस्तान की धरती से ऑपरेशन लॉन्च करने की इजाजत नहीं देंगे.
50 साल से है अफगानिस्तान की सत्ता पर पाकिस्तान की नजर : अफगानिस्तान के भीतर विभिन्न गुटों को सैन्य समर्थन देना पाकिस्तान का इतिहास रहा है. 1970 के दशक से ही पाकिस्तान के सभी राष्ट्र प्रमुख अफगानिस्तान में अपना दबदबा बनाने की कवायद कर रहे हैं. 1980 के दशक में जब सोवियत संघ की सेना अफगानिस्तान में तैनात थी, तब पाकिस्तान ने ढाई लाख से ज्यादा मुजाहिदों को आर्मी ट्रेनिंग दी. हालांकि उस दौर में ट्रेनिंग का खर्च अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए उठाती थी. 1989 में सोवियत सैनिकों की अफगानिस्तान से वापसी के बाद भी पाकिस्तान ने तालिबान को ट्रेनिंग देना जारी रखा. 1995 में हेरात और 1996 में काबुल में अपने हमलों के दौरान तालिबान ने सैन्य रणनीति दिखाई, वह पाकिस्तान की ट्रेनिंग का ही नतीजा था.
ह्यूमन राइट्स वॉच के अनुसार, 2000 के अंत में युद्ध अभियानों के दौरान पाकिस्तानी विमानों ने तालिबान बलों की टुकड़ी के रोटेशन में सहायता की थी. पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और सेना के वरिष्ठ सदस्य तालिबान के प्रमुख सैन्य अभियानों की योजना बनाने में शामिल थे.
कौन है तालिबान : तालिबान का अफगानिस्तान में उदय 90 के दशक में हुआ. सोवियत संघ की सेना 1989 में अफ़ग़ानिस्तान से वापस चली गई, लेकिन देश में गृह युद्ध चलता रहा. सोवियत सैनिकों के लौटने के बाद वहां अराजकता का माहौल पैदा हुआ, जिसका फायदा तालिबान ने उठाया. सितंबर 1995 में तालिबान ने ईरान सीमा से लगे हेरात प्रांत पर कब्ज़ा कर लिया. 1996 में अफगानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति बुरहानुद्दीन रब्बानी को सत्ता से हटाकर काबुल पर कब्जा कर लिया था.
बड़ा जालिम है तालिबान का कानून : तालिबान ने अफगानिस्तान में इस्लामिक कानून को सख्ती लागू किया था. मसलन मर्दों का दाढ़ी बढाना और महिलाओं का बुर्का पहनना अनिवार्य कर दिया. साथ ही लड़कियों के पढ़ाई करने और जेंट्स डॉक्टर से इलाज कराने पर पाबंदी लगा दी. जो महिलाएं घर में लड़कियों को पढ़ाती थीं, उन्हें उनके स्टूडेंट और बच्चों के सामने गोली मार दी गई. पेशेवर स्कूलों को बंद करा दिया गया और मदरसे खोले गए.
तालिबान ने सिनेमा और संगीत पर भी प्रतिबंध लगा दिया था. बामियान में तालिबान ने यूनेस्को संरक्षित बुद्ध की प्रतिमा तोड़ दी.2001 में जब 9/11 के हमले हुए तो तालिबान अमेरिका के निशाने पर आया. अलकायदा के ओसामा बिन लादेन को पनाह देने के आरोप में अमेरिका ने तालिबान पर हमले किए. करीब 20 साल तक अमेरिका तालिबान के साथ लड़ता रहा. 1 मई से वहां से अमेरिकी सैनिकों ने वापसी शुरू कर दी है. 11 सितंबर 2021 तक अमेरिकी सेना पूरी तरह अफगानिस्तान से हट जाएगी.
85 फीसदी हिस्से पर तालिबान का नियंत्रण : 13 जुलाई को तालिबान ने दावा किया था कि उसने युद्ध प्रभावित इस देश के 85 फीसद से ज्यादा हिस्से पर कब्जा कर लिया है. एपी की रिपोर्ट मुताबिक़, तालिबान के नियंत्रण वाले क्षेत्र में कथित तौर पर स्कूलों को जलाया जा रहा है और महिलाओं पर कई तरह के बैन लगाए जा रहे हैं. तालिबान ने जिन सीमा चौकियों पर क़ब्ज़ा किया है वहां से हो रहे व्यापार पर वही टैक्स वसूल रहे हैं. आज के हालात में इमरान खान के सपने पूरे हो रहे हैं, ऐसे में तालिबान को वह लगातार मोरल सपोर्ट दे रहे हैं.