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सामान्य वर्ग में मेरिट ही चयन का आधार : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को लेकर एक मामले में फैसला दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ज्यादा अंक लाने पर आरक्षण वालों को भी सामान्य वर्ग में नौकरी दी जा सकती है. पढ़ें रिपोर्ट.

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Published : Dec 22, 2020, 4:17 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया है कि यूपी पुलिस के कांस्टेबल भर्ती में अगर ओबीसी महिला वर्ग की कोई अभ्यर्थी 275.8928 अंक लाकर सामान्य वर्ग के अंतिम अभ्यर्थी से ज्यादा अंक लाती है तो उसे सामान्य वर्ग में ही रखा जाए. 2013 में कांस्टेबल पद की परीक्षा देने वाली ओबीसी और एससी महिला अभ्यर्थियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित, न्यायमूर्ति एस रविंद्र भट और न्यायमूर्ति ऋषिकेश राॅय की बेंच ने यह फैसला सुनाया. अभ्यर्थियों में से एक ने आरोप लगाया था कि उसने सामान्य वर्ग की महिला अभ्यर्थी से ज्यादा अंक प्राप्त किए थे मगर उसकी जगह सामान्य वर्ग की अभ्यर्थी को नौकरी दे दी गई.

कम अंक के बावजूद अभ्यर्थी की भर्ती ठीक नहीं

कोर्ट ने कहा कि कम अंक के बावजूद अभ्यर्थी की भर्ती होना ठीक नहीं है लेकिन उस अभ्यर्थी ने अब ट्रेनिंग पूरी कर ली है और नौकरी कर रही है तो अब उसे हटाना ठीक नहीं है. अभी बहुत से कांस्टेबल के पद रिक्त हैं तो वह एक आदेश पारित कर रही है, जिससे सक्षम अभ्यर्थियों को नौकरी मिल सके. कोर्ट ने मामले से संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया कि 4 सप्ताह में सभी सक्षम अभ्यर्थियों को पत्र भेजें. सहमति मिलने पर दो सप्ताह के अंदर सभी औपचारिकताएं पूरी कर अगले एक सप्ताह में नियुक्ति पत्र भेज दें. वेतन और वरिष्ठता नियुक्ति पत्र जारी होने की तिथि के अनुसार होगा.

आरक्षण महज एक प्रक्रिया

न्यायमूर्ति एस रविंद्र भट ने दो अन्य न्यायमूर्तियों की सहमति से फैसला सुनाते हुए कहा कि सरकारी नौकरियों में सभी वर्गों को स्थान देने के लिए आरक्षण के दोनों प्रकार वर्टिकल और हाॅरिजेंटल एक प्रक्रिया हैं. इन्हें अंतिम नहीं मानना चाहिए. अगर राज्य सरकार की दलीलों को स्वीकार किया गया तो यही होगा कि एक महिला अभ्यर्थी को मेरिट में आने के बाद भी सामान्य वर्ग में नहीं लिया गया. ऐसा करने से आरक्षण सांप्रदायिक हो जाएगा. फिर हर वर्ग आरक्षण की अपनी सीमा में कैद हो जाएगा. इससे मेरिट समाप्त हो जाएगी. सामान्य वर्ग सभी के लिए है और इसमें चयन का आधार सिर्फ और सिर्फ मेरिट होना चाहिए. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आरक्षण का फायदा मेरिट लाने वाले अभ्यर्थी ने उठाया है या नहीं.

एससी महिला अभ्यर्थी का दावा रद

एससी महिला अभ्यर्थी के मामले में कोर्ट ने पाया कि एससी महिला वर्ग की किसी भी अभ्यर्थी ने 275.8928 से ज्यादा अंक नहीं पाए. जाहिर है उनका मामला ओबीसी महिला अभ्यर्थी की तरह का नहीं है. कोर्ट ने एससी महिला अभ्यर्थी के दावे को रद कर दिया. रिक्त पदों के मामले में यह प्रशासन पर है कि वह पूरी तरह प्रक्रिया के अनुसार काम करे. यह गलत होगा कि कोर्ट रिक्त पदों के मामले में कोई आदेश पारित करे.

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया है कि यूपी पुलिस के कांस्टेबल भर्ती में अगर ओबीसी महिला वर्ग की कोई अभ्यर्थी 275.8928 अंक लाकर सामान्य वर्ग के अंतिम अभ्यर्थी से ज्यादा अंक लाती है तो उसे सामान्य वर्ग में ही रखा जाए. 2013 में कांस्टेबल पद की परीक्षा देने वाली ओबीसी और एससी महिला अभ्यर्थियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित, न्यायमूर्ति एस रविंद्र भट और न्यायमूर्ति ऋषिकेश राॅय की बेंच ने यह फैसला सुनाया. अभ्यर्थियों में से एक ने आरोप लगाया था कि उसने सामान्य वर्ग की महिला अभ्यर्थी से ज्यादा अंक प्राप्त किए थे मगर उसकी जगह सामान्य वर्ग की अभ्यर्थी को नौकरी दे दी गई.

कम अंक के बावजूद अभ्यर्थी की भर्ती ठीक नहीं

कोर्ट ने कहा कि कम अंक के बावजूद अभ्यर्थी की भर्ती होना ठीक नहीं है लेकिन उस अभ्यर्थी ने अब ट्रेनिंग पूरी कर ली है और नौकरी कर रही है तो अब उसे हटाना ठीक नहीं है. अभी बहुत से कांस्टेबल के पद रिक्त हैं तो वह एक आदेश पारित कर रही है, जिससे सक्षम अभ्यर्थियों को नौकरी मिल सके. कोर्ट ने मामले से संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया कि 4 सप्ताह में सभी सक्षम अभ्यर्थियों को पत्र भेजें. सहमति मिलने पर दो सप्ताह के अंदर सभी औपचारिकताएं पूरी कर अगले एक सप्ताह में नियुक्ति पत्र भेज दें. वेतन और वरिष्ठता नियुक्ति पत्र जारी होने की तिथि के अनुसार होगा.

आरक्षण महज एक प्रक्रिया

न्यायमूर्ति एस रविंद्र भट ने दो अन्य न्यायमूर्तियों की सहमति से फैसला सुनाते हुए कहा कि सरकारी नौकरियों में सभी वर्गों को स्थान देने के लिए आरक्षण के दोनों प्रकार वर्टिकल और हाॅरिजेंटल एक प्रक्रिया हैं. इन्हें अंतिम नहीं मानना चाहिए. अगर राज्य सरकार की दलीलों को स्वीकार किया गया तो यही होगा कि एक महिला अभ्यर्थी को मेरिट में आने के बाद भी सामान्य वर्ग में नहीं लिया गया. ऐसा करने से आरक्षण सांप्रदायिक हो जाएगा. फिर हर वर्ग आरक्षण की अपनी सीमा में कैद हो जाएगा. इससे मेरिट समाप्त हो जाएगी. सामान्य वर्ग सभी के लिए है और इसमें चयन का आधार सिर्फ और सिर्फ मेरिट होना चाहिए. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आरक्षण का फायदा मेरिट लाने वाले अभ्यर्थी ने उठाया है या नहीं.

एससी महिला अभ्यर्थी का दावा रद

एससी महिला अभ्यर्थी के मामले में कोर्ट ने पाया कि एससी महिला वर्ग की किसी भी अभ्यर्थी ने 275.8928 से ज्यादा अंक नहीं पाए. जाहिर है उनका मामला ओबीसी महिला अभ्यर्थी की तरह का नहीं है. कोर्ट ने एससी महिला अभ्यर्थी के दावे को रद कर दिया. रिक्त पदों के मामले में यह प्रशासन पर है कि वह पूरी तरह प्रक्रिया के अनुसार काम करे. यह गलत होगा कि कोर्ट रिक्त पदों के मामले में कोई आदेश पारित करे.

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