नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 2007 में कथित अभद्र भाषा से संबंधित एक मामले में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी से इनकार करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी. सुप्रीम कोर्ट ने 2007 में भड़काऊ भाषण देने के आरोप में मुकदमा चलाने की अनुमति देने से मना कर दिया. राज्य सरकार ने मई 2017 में इस आधार पर अनुमति से मना कर दिया था कि मुकदमे में सबूत नाकाफी हैं. 2018 में इलाहाबाद हाई कोर्ट भी इसे सही ठहरा चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि चुनावी लोकतंत्र में असली ताकत मतदाताओं के पास होती है. वोटर ही पार्टियों और उम्मीदवारों का फैसला करते हैं.
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सुप्रीम कोर्ट 2007 के गोरखपुर दंगों में सीएम योगी आदित्यनाथ और अन्य के खिलाफ कथित भड़काऊ भाषण के आरोप में मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इनकार करने वाली यूपी सरकार को चुनौती देने वाली याचिका पर आज अपना फैसला सुनाएगा. इस मामले में चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने 24 अगस्त को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था. शीर्ष अदालत में इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी. जिसमें एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा कथित भड़काऊ भाषण की जांच की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया गया था.
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इस मामले में राज्य सरकार ने पिछले साल आदित्यनाथ योगी को अभियुक्त बनाने से ये कहकर मना कर दिया था और कहा था कि उनके खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं हैं.बता दें कि 11 साल पहले 27 जनवरी 2007 को गोरखपुर में सांप्रदायिक दंगा हुआ था. इस दंगे में दो लोगों की मौत और कई लोग घायल हुए थे. इस दंगे के लिए तत्कालीन सांसद व मौजूदा सीएम योगी आदित्यनाथ, विधायक राधा मोहन दास अग्रवाल और गोरखपुर की तत्कालीन मेयर अंजू चौधरी पर भड़काऊ भाषण देने और दंगा भड़काने का आरोप लगा था. कहा गया था कि इनके भड़काऊ भाषण के बाद ही दंगा भड़का था.