ETV Bharat / bharat

झारखंड के इस गांव में बढ़ी मानसिक बीमारी, मासूमों को जंजीर में बांधकर रखना मजबूरी

बेड़ियों में बचपन, ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि खेलने-कूदने की उम्र में ये दो बच्चे जंजीरों में जकड़े हैं. क्या दिन, क्या रात हर वक्त इनको रस्सी से बांधकर रखा जाता है. ईटीवी की खास रिपोर्ट से जानिए इन बच्चों व उनके परिजनों का दर्द.

suffering
बेड़ियों में बचपन
author img

By

Published : Apr 3, 2022, 6:47 PM IST

पलामू: दादी की मजबूरी है कि उसने दो मासूमों को बेड़ियों में कैद करके रखा है. दोनों मानसिक रूप से कमजोर हैं, इतना ही नहीं इस गांव में और कई लोग भी मानसिक रूप से बीमार हैं. जो बचपन खेलकूद में गुजरता है, वो बच्चे बेड़ियों में अपना बचपन गुजार रहे हैं. जिन पोतों के लिए एक दादी ने सपने देखे थे, उन पोतों को जंजीरों से बांधकर रखना पड़ रहा है. दादी की मजबूरी है कि दोनों मासूम की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है.

यह मामला पलामू प्रमंडल के मुख्यालय मेदिनीनगर से महज सात किलोमीटर की दूरी पर मौजूद सुआ के बिंदुआ टोला गांव की है. फूलकुमारी देवी नाम की महिला ने अपने दो पोतों आशीष परहिया और मुकेश परहिया को जंजीरों में कैद रखा है. दोनों का खाना, पीना, रहना और नित्य क्रिया भी लोहे की चेन से बंधे रहते ही होता है. दादी बताती हैं कि दोनों बच्चों की मां की मौत दो वर्ष पहले सड़क दुर्घटना में हुई थी. इनके पिता भी मानसिक रूप से कमजोर है और मजदूरी का काम करता है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

दादी ने बताया कि दोनों भाइयों की एक बहन की भी मानसिक बीमारी से मौत हो चुकी है. दोनों भाइयों को करीब तीन वर्ष पहले से मिरगी बीमारी हुई थी, उसके बाद से दोनों मानसिक रूप से कमजोर होते चले गए. आज आलम ऐसा है कि दोनों मासूम बच्चे कंकड़, पत्थर, कपड़े तक खा जाते हैं. दादी ने बताया कि मजबूरी में दोनों बच्चे जंजीरों में जकड़े हैं. क्योंकि बेड़ियों से आजाद होने के बाद बच्चे भागने लगते हैं.

हालांकि दोनों बच्चों का इलाज चल रहा है. बेड़ियों में जकड़े दोनों बच्चों को देखने वाले डॉक्टर अमित मिश्रा ने बताया कि दोनों बच्चे काफी कमजोर हैं, उनकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है. दोनों को इलाज की जरूरत है. इलाज के बाद ही पता चल पाएगा कि इनकी मानसिक कमजोरी का कारण क्या है. पूरे मामले में बाल संरक्षण आयोग की टीम ने संज्ञान लिया है. आयोग ने पूरे मामले में चाइल्ड लाइन और पलामू सिविल सर्जन को पत्र लिखकर दोनों बच्चों को इलाज करवाने को कहा है. सीडब्ल्यूसी सदस्य धीरेंद्र किशोर कहते हैं कि बच्चों को इलाज की जरूरत है, जिसके लिए पहल की जा रही है.

इंडियन रोटी बैंक ने की पहलः बेड़ियों में कैद बच्चों और उनके परिजनों के मदद के लिए इंडियन रोटी बैंक में पहल की है. संस्था की ओर से मासूम बच्चों के परिजनों को खाद्य सामग्री और कपड़े उपलब्ध करवाए हैं. मानसिक रोग से ग्रस्त बच्चे के लिए दवाइयां भी दी गयी हैं. इंडियन रोटी बैंक के कोऑर्डिनेटर दीपक तिवारी ने बताया कि दोनों बच्चों के पुनर्वास के लिए व्यवस्था की जा रही है.

यह भी पढ़ें- अजब-गजब: यूपी के आगरा में शिक्षक बने चौकीदार, मैनपुरी में छुट्टा जानवर पकड़ेंगे मास्टर साहब

गांव में कई लोग हैं बीमारः सदर प्रखंड के सुआ के बिंदुआ टोला में कई अन्य लोग भी मानसिक रूप से बीमार हैं. ग्रामीणों के अनुसार करीब आधा दर्जन अन्य लोग भी मानसिक रूप से कमजोर हुए हैं. करीब 40 घरों की आबादी वाले इस गांव में पेयजल का भी संकट, पूरा इलाका फ्लोराइड प्रभावित है. हालांकि यह गांव कोयल नदी के तट पर मौजूद है. गांव में जाने के लिए पक्की सड़क भी नहीं है.

पलामू: दादी की मजबूरी है कि उसने दो मासूमों को बेड़ियों में कैद करके रखा है. दोनों मानसिक रूप से कमजोर हैं, इतना ही नहीं इस गांव में और कई लोग भी मानसिक रूप से बीमार हैं. जो बचपन खेलकूद में गुजरता है, वो बच्चे बेड़ियों में अपना बचपन गुजार रहे हैं. जिन पोतों के लिए एक दादी ने सपने देखे थे, उन पोतों को जंजीरों से बांधकर रखना पड़ रहा है. दादी की मजबूरी है कि दोनों मासूम की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है.

यह मामला पलामू प्रमंडल के मुख्यालय मेदिनीनगर से महज सात किलोमीटर की दूरी पर मौजूद सुआ के बिंदुआ टोला गांव की है. फूलकुमारी देवी नाम की महिला ने अपने दो पोतों आशीष परहिया और मुकेश परहिया को जंजीरों में कैद रखा है. दोनों का खाना, पीना, रहना और नित्य क्रिया भी लोहे की चेन से बंधे रहते ही होता है. दादी बताती हैं कि दोनों बच्चों की मां की मौत दो वर्ष पहले सड़क दुर्घटना में हुई थी. इनके पिता भी मानसिक रूप से कमजोर है और मजदूरी का काम करता है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

दादी ने बताया कि दोनों भाइयों की एक बहन की भी मानसिक बीमारी से मौत हो चुकी है. दोनों भाइयों को करीब तीन वर्ष पहले से मिरगी बीमारी हुई थी, उसके बाद से दोनों मानसिक रूप से कमजोर होते चले गए. आज आलम ऐसा है कि दोनों मासूम बच्चे कंकड़, पत्थर, कपड़े तक खा जाते हैं. दादी ने बताया कि मजबूरी में दोनों बच्चे जंजीरों में जकड़े हैं. क्योंकि बेड़ियों से आजाद होने के बाद बच्चे भागने लगते हैं.

हालांकि दोनों बच्चों का इलाज चल रहा है. बेड़ियों में जकड़े दोनों बच्चों को देखने वाले डॉक्टर अमित मिश्रा ने बताया कि दोनों बच्चे काफी कमजोर हैं, उनकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है. दोनों को इलाज की जरूरत है. इलाज के बाद ही पता चल पाएगा कि इनकी मानसिक कमजोरी का कारण क्या है. पूरे मामले में बाल संरक्षण आयोग की टीम ने संज्ञान लिया है. आयोग ने पूरे मामले में चाइल्ड लाइन और पलामू सिविल सर्जन को पत्र लिखकर दोनों बच्चों को इलाज करवाने को कहा है. सीडब्ल्यूसी सदस्य धीरेंद्र किशोर कहते हैं कि बच्चों को इलाज की जरूरत है, जिसके लिए पहल की जा रही है.

इंडियन रोटी बैंक ने की पहलः बेड़ियों में कैद बच्चों और उनके परिजनों के मदद के लिए इंडियन रोटी बैंक में पहल की है. संस्था की ओर से मासूम बच्चों के परिजनों को खाद्य सामग्री और कपड़े उपलब्ध करवाए हैं. मानसिक रोग से ग्रस्त बच्चे के लिए दवाइयां भी दी गयी हैं. इंडियन रोटी बैंक के कोऑर्डिनेटर दीपक तिवारी ने बताया कि दोनों बच्चों के पुनर्वास के लिए व्यवस्था की जा रही है.

यह भी पढ़ें- अजब-गजब: यूपी के आगरा में शिक्षक बने चौकीदार, मैनपुरी में छुट्टा जानवर पकड़ेंगे मास्टर साहब

गांव में कई लोग हैं बीमारः सदर प्रखंड के सुआ के बिंदुआ टोला में कई अन्य लोग भी मानसिक रूप से बीमार हैं. ग्रामीणों के अनुसार करीब आधा दर्जन अन्य लोग भी मानसिक रूप से कमजोर हुए हैं. करीब 40 घरों की आबादी वाले इस गांव में पेयजल का भी संकट, पूरा इलाका फ्लोराइड प्रभावित है. हालांकि यह गांव कोयल नदी के तट पर मौजूद है. गांव में जाने के लिए पक्की सड़क भी नहीं है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.