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ये हैं छत्तीसगढ़ के अनाथ बच्चों के नाथ - राजधानी रायपुर

छत्तीसगढ़ की राजधानी में एक शख्स ऐसा है, जिसने अपना पूरा जीवन अनाथ बच्चों की परवरिश में बीता दिया. उम्र के आखिरी पड़ाव में उनका जज्बा आज भी बरकरार (person who supported the orphan children of Raipur) है.

Human service of Sudhakar Madhav Kondapurkar of Raipur
छत्तीसगढ़ के अनाथ बच्चों के नाथ
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Published : Jul 22, 2022, 9:08 AM IST

रायपुर : मानवता को शर्मसार करने वाली कई ऐसी तस्वीरें सामने आती है, जिसमें लोग नवजात बच्चों को कूड़े के ढेर या नदी-नालों में फेंक देते (person who supported the orphan children of Raipur) हैं. ऐसे ही नवजातों या अनाथों के लिए राजधानी रायपुर का 90 वर्षीय बुजुर्ग मसीहा बनकर सामने आया (Save the life of orphan children in Raipur) है. इस उम्र में भी उनके मन में अनाथ बच्चों का जीवन संवारने की धुन सवार है. उनके अंतर्मन में हमेशा यह फिक्र होती है कि कहीं किसी अनाथ बच्चे का जीवन बर्बाद ना हो जाए. भले ही उनकी आंखों की रोशनी धुंधली हो चुकी है, फिर भी जज्बा बरकरार है. वर्षों पहले उन्होंने जिस मातृ छाया की शुरुआत की, वहां अब भी वे जाते हैं. बच्चों का हाल चाल भी पूछते हैं. जी हां हम बात कर रहे हैं सुधाकर माधव कोंडापुरकर की. आखिर इन्होंने इसकी शुरुआत कैसे की. चलिए सीधे उनसे ही जानने की कोशिश करते (Human service of Sudhakar Madhav Kondapurkar of Raipur) हैं.

छत्तीसगढ़ के अनाथ बच्चों के नाथ
सवाल: आपने नवजातों और अनाथों की परवरिश की शुरुआत कैसे की? जवाब: सेवा भारती की स्थापना 1978 में राष्ट्रीय स्तर पर हुई. इसका उद्देश्य शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलंबन, संस्कार और सामाजिक न्याय के माध्यम से उपेक्षित समाज का सर्वांगीण विकास करना था. वह चलते रहा. उसकी वजह से हमारी सेवाएं देश भर में चल रही है. साल 2000 में एक प्रश्न उठा कि जो बच्चे गुमशुदा हो जाते हैं या जिन बच्चों को फेंक दिया जाता है. इन बच्चों को कोई उठाकर ले जाता था. उसको पॉकेटमारी, भीख मंगवाना या विदेश में बेच दिया जाता था. यह परिस्थितियां साल 2000 में बनी हुई थी. उसी समय जेजे एक्ट आया. इसी के तहत मैंने इन बच्चों की देखरेख की जिम्मेदारी उठानी शुरू की. सवाल: किस तरह के बच्चों का भविष्य संवारा जा रहा है? जवाब: हमारे यहां तीन तरह के बच्चों को आश्रय दिया जाता है. परित्यक्त, परित्याग और गुमशुदा बच्चे शामिल हैं. हमारे यहां सिर्फ शून्य से लेकर 6 वर्ष तक बच्चों को रखते हैं. इसमें परित्यक्त का अर्थ सामाजिक मान्यता न होने की वजह से बच्चों को फेंक दिया जाता है. परित्याग का मतलब होता है ऐसा कोई परिवार जो आर्थिक या शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं, वे अपने बच्चे को त्याग देते हैं. तीसरा गुमशुदा बच्चे होते हैं, जिन्हें पुलिस हमारे पास छोड़ देती है. उन बच्चों की परवरिश हमारे माध्यम से की जाती है. सवाल: अब तक कितने बच्चे आपके यहां आ चुके हैं?


जवाब: हमारे यहां 312 बच्चे आ चुके हैं. उसमें से 177 बच्चे गोद ले लिए गए हैं, जबकि 63 ऐसे बच्चे हैं जिनके माता पिता को हमने वापस किया है. वहीं जिन बच्चों की उम्र अधिक हो गई. ऐसे 37 बच्चों को स्थानांतरित किया है. यदि इन बड़े बच्चों को कोई गोद लेना चाहता है तो उसकी भी प्रक्रिया हम लोग ही पूरी करते हैं.


सवाल: इस पूरे काम के लिए आप लोग शासन से किसी तरह का सहयोग लेते हैं?

जवाब: शासन सहयोग देना चाहती है, लेकिन हम लोग किसी तरह का सहयोग लेना नहीं चाहते. हमारी सोच है कि समाज को जोड़ें. समाज को लगना चाहिए कि ये संस्था हमारी है. उस दृष्टि से हमने यह काम किया. नतीजा यह हुआ कि समाज ने हमको सहयोग दिया.

रायपुर : मानवता को शर्मसार करने वाली कई ऐसी तस्वीरें सामने आती है, जिसमें लोग नवजात बच्चों को कूड़े के ढेर या नदी-नालों में फेंक देते (person who supported the orphan children of Raipur) हैं. ऐसे ही नवजातों या अनाथों के लिए राजधानी रायपुर का 90 वर्षीय बुजुर्ग मसीहा बनकर सामने आया (Save the life of orphan children in Raipur) है. इस उम्र में भी उनके मन में अनाथ बच्चों का जीवन संवारने की धुन सवार है. उनके अंतर्मन में हमेशा यह फिक्र होती है कि कहीं किसी अनाथ बच्चे का जीवन बर्बाद ना हो जाए. भले ही उनकी आंखों की रोशनी धुंधली हो चुकी है, फिर भी जज्बा बरकरार है. वर्षों पहले उन्होंने जिस मातृ छाया की शुरुआत की, वहां अब भी वे जाते हैं. बच्चों का हाल चाल भी पूछते हैं. जी हां हम बात कर रहे हैं सुधाकर माधव कोंडापुरकर की. आखिर इन्होंने इसकी शुरुआत कैसे की. चलिए सीधे उनसे ही जानने की कोशिश करते (Human service of Sudhakar Madhav Kondapurkar of Raipur) हैं.

छत्तीसगढ़ के अनाथ बच्चों के नाथ
सवाल: आपने नवजातों और अनाथों की परवरिश की शुरुआत कैसे की? जवाब: सेवा भारती की स्थापना 1978 में राष्ट्रीय स्तर पर हुई. इसका उद्देश्य शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलंबन, संस्कार और सामाजिक न्याय के माध्यम से उपेक्षित समाज का सर्वांगीण विकास करना था. वह चलते रहा. उसकी वजह से हमारी सेवाएं देश भर में चल रही है. साल 2000 में एक प्रश्न उठा कि जो बच्चे गुमशुदा हो जाते हैं या जिन बच्चों को फेंक दिया जाता है. इन बच्चों को कोई उठाकर ले जाता था. उसको पॉकेटमारी, भीख मंगवाना या विदेश में बेच दिया जाता था. यह परिस्थितियां साल 2000 में बनी हुई थी. उसी समय जेजे एक्ट आया. इसी के तहत मैंने इन बच्चों की देखरेख की जिम्मेदारी उठानी शुरू की. सवाल: किस तरह के बच्चों का भविष्य संवारा जा रहा है? जवाब: हमारे यहां तीन तरह के बच्चों को आश्रय दिया जाता है. परित्यक्त, परित्याग और गुमशुदा बच्चे शामिल हैं. हमारे यहां सिर्फ शून्य से लेकर 6 वर्ष तक बच्चों को रखते हैं. इसमें परित्यक्त का अर्थ सामाजिक मान्यता न होने की वजह से बच्चों को फेंक दिया जाता है. परित्याग का मतलब होता है ऐसा कोई परिवार जो आर्थिक या शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं, वे अपने बच्चे को त्याग देते हैं. तीसरा गुमशुदा बच्चे होते हैं, जिन्हें पुलिस हमारे पास छोड़ देती है. उन बच्चों की परवरिश हमारे माध्यम से की जाती है. सवाल: अब तक कितने बच्चे आपके यहां आ चुके हैं?


जवाब: हमारे यहां 312 बच्चे आ चुके हैं. उसमें से 177 बच्चे गोद ले लिए गए हैं, जबकि 63 ऐसे बच्चे हैं जिनके माता पिता को हमने वापस किया है. वहीं जिन बच्चों की उम्र अधिक हो गई. ऐसे 37 बच्चों को स्थानांतरित किया है. यदि इन बड़े बच्चों को कोई गोद लेना चाहता है तो उसकी भी प्रक्रिया हम लोग ही पूरी करते हैं.


सवाल: इस पूरे काम के लिए आप लोग शासन से किसी तरह का सहयोग लेते हैं?

जवाब: शासन सहयोग देना चाहती है, लेकिन हम लोग किसी तरह का सहयोग लेना नहीं चाहते. हमारी सोच है कि समाज को जोड़ें. समाज को लगना चाहिए कि ये संस्था हमारी है. उस दृष्टि से हमने यह काम किया. नतीजा यह हुआ कि समाज ने हमको सहयोग दिया.

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