मदुरै : मदुरै के रहने वाले वेलमुरुगन अलग तरह से काम करने वाले व्यक्ति हैं जो मिट्टी के बर्तनों को बनाने का काम करते हैं. वे युवाओं, विशेषकर बच्चों के बीच पैसे बचाने और पर्यावरण की रक्षा के बारे में जागरूकता पैदा करने का काम करते हैं.
दरअसल, दो चीजों के बीच की कड़ी क्या है ? किसी को आश्चर्य हो सकता है. यह विभिन्न पौधों और पेड़ों के बीजों से बने गुल्लकों का निर्माण कर रहे हैं. रेत की सही मात्रा के साथ मिश्रित करके उन्हें बच्चों को वितरित कर रहे हैं. जब यह टूट जाते हैं तो बीज बिखरकर रेत व मिट्टी में मिल जाते हैं जो कि कुछ महीनों में पेड़ बन जाते हैं. यह अंग्रेजी मुहावरे के अनुसार एक पत्थर से दो पक्षियों को मारने जैसा है. वैसे इस पर तमिल मुहावरा दो आमों पर एक पत्थर से चोट भी सटीक बैठता है.
हाथ की कलाई खोई, नहीं खोया हौंसला
वेलमुरुगन को अपने काम में व्यस्त देखकर कोई भी उनकी चपलता पर आश्चर्य कर सकता है. क्योंकि जब आप इस तथ्य पर ध्यान देते हैं कि उन्होंने एक दुर्घटना में अपने दाहिने हाथ की कलाई खो दी है. ऐसा क्या था जिसने इनको गुल्लक बनाने की उनकी पहल को आगे बढ़ाया. इन्होंने अगली पीढ़ी को ज्ञान देने का इरादा किया. उन्होंने कहा कि उनके पास दिमाग को परेशान करने वाला विचार था कि वे समाज के समग्र लाभ के लिए जो जानते हैं उसका उपयोग कैसे कर सकते हैं. यह स्वीकार करते हुए कि वे सामाजिक कार्यकर्ता अशोक कुमार थे जिन्होंने उन्हें प्रेरित किया और उन्हें बीज वाले गुल्लक बनाने और बच्चों को वितरित करने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने आशा व्यक्त की कि उनकी पहल लंबे समय तक सामाजिक परिवर्तन के रूप में काम करेगी.
पैसे बचाने के साथ पर्यावरण संरक्षण
वेलमुरुगन ने कहा कि बीज गुल्लक में पैसे बचाने की आदत से बच्चे विकास करेंगे. उन्होंने कहा कि जब बीज के बर्तन सिक्कों और नोटों के साथ भर जाते हैं तो वे बचत को प्राप्त करने के लिए तोड़ जाते हैं. फिर गुल्लक से जुड़े बीज टूटने के साथ-साथ धरती में समा जाते हैं. बदले में उस बीज से ताजा पौधे बाहर निकलते हैं. अशोक कुमार ने इसके बारे में बताया कि यह प्लास्टिक के उपयोग को बंद कर देगा और बच्चों को पैसे बचाने के लिए प्रेरित करेगा. उन्होंने कहा कि यह योजना सभी स्कूलों तक पहुंचाने और बीज गुल्लक के फायदों का प्रचार करने के लिए हैं.
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प्राचीन काल में था इसका चलन
अतीत में घरों में बच्चों को मिट्टी से बने गुल्लक दिए जाते थे. अब यह परंपरा गुमनामी में डूब गई है. लेकिन उस सदियों पुरानी प्रथा को पुनर्जीवित करने के लिए बीज गुल्लक बनाए जाते हैं. जो एक प्रभावी कदम है. यह न केवल पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा का मार्ग प्रशस्त करेगा बल्कि मिट्टी के बर्तनों का कायाकल्प भी करेगा. इससे पैसा बच जाता है और पेड़ बड़े होते हैं. अशोक कुमार ने कहा इन गुल्लकों को पाने वाले बच्चों को इतना अच्छा महसूस हुआ कि उन्होंने कहा कि वे इस बीज गुल्लक अवधारणा के प्रचार के लिए अधिक से अधिक बच्चों को साथ जोड़ेंगे.