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पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव : पत्रकार से राजनेता बनने तक का सफर

देश के पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव (P. V. Narasimha Rao) ने छात्र जीवन से ही स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़ चढ़कर भाग लिया और आजादी के बाद भी देश के विभिन्न मंत्रालयों के अलावा विभिन्न पदों पर काम करते हुए नई दिशा दी. उनकी 100वीं जयंती पर पढ़िए पूरी रिपोर्ट...

पीवी नरसिम्हा राव
पीवी नरसिम्हा राव
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Published : Jun 28, 2021, 6:28 PM IST

हैदराबाद : देश के पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव (P. V. Narasimha Rao) का जन्म 28 जून 1921 को आंध्र प्रदेश के करीमनगर में पी. रंगाराव के यहां हुआ था. उन्होंने हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय, मुंबई विश्वविद्यालय एवं नागपुर विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई की. उनके तीन बेटे और पांच बेटियां हैं. उनकी मृत्यु 23 दिसम्बर 2004 को नई दिल्ली में हुई थी.

17 भाषाएं बोल सकते थे राव

वह आंध्र प्रदेश के करीमनगर जिले के भीमदेवरपल्ले उप-जिले के वंगारा नामक गांव के एक धनी तेलुगु ब्राह्मण परिवार से थे. नरसिम्हा राव पीवी के नाम से मशहूर थे. उन्होंने फर्ग्यूसन कॉलेज और मुंबई और नागपुर के विश्वविद्यालयों में अध्ययन किया जहां उन्होंने कानून में स्नातक और मास्टर डिग्री प्राप्त की. इतना ही नहीं वह उर्दू, मराठी, कन्नड़, हिंदी, तमिल, तेलुगू, संस्कृत और उड़िया सहित 17 भाषाएं बोल सकते थे. उनकी मातृभाषा तेलुगु थी.

वह आठ भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी, फ्रेंच, अरबी, स्पेनिश, जर्मन, ग्रीक, लैटिन और फारसी भाषा भी बोल लेते थे. इतना ही नहीं उन्होंने अपने चचेरे भाई पामुलापर्थी सदाशिव राव के साथ 1948 से 1955 तक एक तेलुगु साप्ताहिक पत्रिका काकतीय का संपादन किया.

ब्रिटिश शासन के खिलाफ

ब्रिटिश राज से भारत की स्वतंत्रता के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक प्रमुख सदस्य बनने से पहले पी वी नरसिम्हा राव ने औपनिवेशिक प्रशासन के खिलाफ विरोध और प्रदर्शनों में सक्रिय रूप से भाग लिया. पीवी नरसिम्हा एक सक्रिय छात्र नेता थे, जहां उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों के शोषण पर ब्रिटिश प्रशासन के खिलाफ आंध्र प्रदेश के विभिन्न इलाकों में कई सत्याग्रही आंदोलनों का नेतृत्व किया.उन्होंने 1930 के दशक में हैदराबाद राज्य में हुए वंदे मातरम आंदोलन के भी सक्रिय भूमिका निभाई थी. नतीजतन, ऐसे में कई बार ब्रिटिश अधिकारियों के विरोध प्रदर्शन के कारण उनको साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया था.

राजनीतिक सफर

पेशे से कृषि विशेषज्ञ एवं वकील राव राजनीति में आए एवं कुछ महत्वपूर्ण विभागों का कार्यभार संभाला. वे आंध्र प्रदेश सरकार में 1962 से 64 तक कानून एवं सूचना मंत्री, 1964 से 67 तक कानून एवं विधि मंत्री, 1967 में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा मंत्री एवं 1968 से 1971 तक शिक्षा मंत्री रहे.

वे 1971 से 73 तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. इसके अलावा वे 1975 से 76 तक अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव, 1968 से 74 तक आंध्र प्रदेश के तेलुगू अकादमी के अध्यक्ष एवं 1972 से मद्रास के दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के उपाध्यक्ष रहे. वे 1957 से 1977 तक आंध्र प्रदेश विधान सभा के सदस्य, 1977 से 84 तक लोकसभा के सदस्य रहे और दिसंबर 1984 में रामटेक से आठवीं लोकसभा के लिए चुने गए.

लोक लेखा समिति के अध्यक्ष के तौर पर 1978-79 में उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय के एशियाई एवं अफ्रीकी अध्ययन स्कूल द्वारा आयोजित दक्षिण एशिया पर हुए एक सम्मेलन में भाग लिया. राव भारतीय विद्या भवन के आंध्र केंद्र के भी अध्यक्ष रहे. वे 14 जनवरी 1980 से 18 जुलाई 1984 तक विदेश मंत्री, 19 जुलाई 1984 से 31 दिसंबर 1984 तक गृह मंत्री एवं 31 दिसंबर 1984 से 25 सितम्बर 1985 तक रक्षा मंत्री रहे. उन्होंने 5 नवंबर 1984 से योजना मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी संभाला था. 25 सितम्बर 1985 से उन्होंने मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में पदभार संभाला.

संगीत, सिनेमा व नाटक में थी रुचि

पीवी नरसिम्हा राव संगीत, सिनेमा एवं नाटकशाला में रुचि रखते थे. साथ ही उन्हें भारतीय दर्शन एवं संस्कृति, कथा साहित्य एवं राजनीतिक टिप्पणी लिखने, भाषाएं सीखने, तेलुगू एवं हिंदी में कविताएं लिखने एवं साहित्य में उनकी विशेष रुचि थी. उन्होंने स्वर्गीय विश्वनाथ सत्यनारायण के प्रसिद्ध तेलुगु उपन्यास ‘वेई पदागालू’ के हिंदी अनुवाद ‘सहस्रफन’ एवं केन्द्रीय साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित स्वर्गीय हरि नारायण आप्टे के प्रसिद्ध मराठी उपन्यास 'पान लक्षत कोन घेटो' के तेलुगू अनुवाद ‘अंबाला जीवितम’ को सफलतापूर्वक प्रकाशित किया.

उन्होंने कई प्रमुख पुस्तकों का मराठी से तेलुगू एवं तेलुगु से हिंदी में अनुवाद किया एवं विभिन्न पत्रिकाओं में कई लेख एक उपनाम के अन्दर प्रकाशित किया. उन्होंने राजनीतिक मामलों एवं संबद्ध विषयों पर संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिम जर्मनी के विश्वविद्यालयों में व्याख्यान दिया. इसके अलावा उन्होंने विदेश मंत्री के रूप में उन्होंने 1974 में ब्रिटेन, पश्चिम जर्मनी, स्विट्जरलैंड, इटली और मिस्र इत्यादि देशों की यात्रा की.

1980 में संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन के सम्मेलन की अध्यक्षता की

विदेश मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान राव ने अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के क्षेत्र में अपनी शैक्षिक पृष्ठभूमि एवं राजनीतिक तथा प्रशासनिक अनुभव का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया. प्रभार संभालने के कुछ ही दिनों बाद उन्होंने जनवरी 1980 में नई दिल्ली में संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन के तृतीय सम्मेलन की अध्यक्षता की. इसके अलावा उन्होंने मार्च 1980 में न्यूयॉर्क में जी-77 की बैठक की भी अध्यक्षता की. वहीं फरवरी 1981 में गुट निरपेक्ष देशों के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में उनकी भूमिका के लिए राव की बहुत प्रशंसा की गई थी. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मुद्दों में व्यक्तिगत रूप से गहरी रुचि दिखाई थी. व्यक्तिगत रूप से मई 1981 में कराकास में ईसीडीसी पर जी-77 के सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया.

वर्ष 1982 और 1983 भारत और इसकी विदेश नीति के लिए काफी महत्त्वपूर्ण था. खाड़ी युद्ध के दौरान गुट निरपेक्ष आंदोलन का सातवां सम्मलेन भारत में हुआ जिसकी अध्यक्षता श्रीमती इंदिरा गांधी ने की. वर्ष 1982 में जब भारत को इसकी मेजबानी करने के लिए कहा गया और उसके अगले वर्ष जब विभिन्न देशों के राज्य और शासनाध्यक्षों के बीच आंदोलन से सम्बंधित अनौपचारिक विचार के लिए न्यूयॉर्क में बैठक की गई, तब पी.वी. नरसिम्हा राव ने गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों के विदेश मंत्रियों के साथ नई दिल्ली और संयुक्त राष्ट्र संघ में होने वाली बैठकों की अध्यक्षता की थी.

राव ने विशेष गुट निरपेक्ष मिशन के भी नेता रहे जिसने फिलीस्तीनी मुक्ति आन्दोलन को सुलझाने के लिए नवंबर 1983 में पश्चिम एशियाई देशों का दौरा किया. इसके अलावा वे नई दिल्ली सरकार के राष्ट्रमंडल प्रमुखों एवं सायप्रस सम्बन्धी मामले पर हुई बैठक द्वारा गठित कार्य दल के साथ सक्रिय रूप से जुड़े हुए थे.

विदेश मंत्री के रूप में नरसिम्हा राव ने अमेरिका, यूएसएसआर, पाकिस्तान, बांग्लादेश, ईरान, वियतनाम, तंजानिया एवं गुयाना जैसे देशों के साथ हुए विभिन्न संयुक्त आयोगों की भारत की ओर से अध्यक्षता की.

मौत के बाद विवाद

नरसिम्हा राव के निधन के बाद गांधी परिवार ने उन्हें भूली हुई श्रेणी में रख दिया . इतना ही नहीं एआईसीसी मुख्यालय में उनके शरीर को भी प्रवेश करने से मना कर दिया गया था और राव के परिवार के उस अनुरोध को भी ठुकरा दिया था कि जिसमें उन्होंने राव के शव को दफनाने के लिए राजधानी में जगह की मांग की थी.

इसके बाद आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. वाई.एस.राजशेखर रेड्डी के हस्तक्षेप के बाद हैदराबाद में पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया. इससे पहले राव का पार्थिव शरीर हैदराबाद के जुबली हॉल में राज्य रखा गया था. उनके अंतिम संस्कार में वर्तमान प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व प्रधान मंत्री एच डी देवेगौड़ा, तत्कालीन भाजपा के अध्यक्ष एलके आडवाणी, रक्षा मंत्री प्रणब मुखर्जी, वित्त मंत्री पी. चिदंबरम और कई अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे.

ये भी पढ़ें - नरसिम्हा राव क्यों कहे जाते हैं आधुनिक चाणक्य, जानें पूर्व गृह सचिव के. पद्मनाभैया से

हैदराबाद : देश के पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव (P. V. Narasimha Rao) का जन्म 28 जून 1921 को आंध्र प्रदेश के करीमनगर में पी. रंगाराव के यहां हुआ था. उन्होंने हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय, मुंबई विश्वविद्यालय एवं नागपुर विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई की. उनके तीन बेटे और पांच बेटियां हैं. उनकी मृत्यु 23 दिसम्बर 2004 को नई दिल्ली में हुई थी.

17 भाषाएं बोल सकते थे राव

वह आंध्र प्रदेश के करीमनगर जिले के भीमदेवरपल्ले उप-जिले के वंगारा नामक गांव के एक धनी तेलुगु ब्राह्मण परिवार से थे. नरसिम्हा राव पीवी के नाम से मशहूर थे. उन्होंने फर्ग्यूसन कॉलेज और मुंबई और नागपुर के विश्वविद्यालयों में अध्ययन किया जहां उन्होंने कानून में स्नातक और मास्टर डिग्री प्राप्त की. इतना ही नहीं वह उर्दू, मराठी, कन्नड़, हिंदी, तमिल, तेलुगू, संस्कृत और उड़िया सहित 17 भाषाएं बोल सकते थे. उनकी मातृभाषा तेलुगु थी.

वह आठ भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी, फ्रेंच, अरबी, स्पेनिश, जर्मन, ग्रीक, लैटिन और फारसी भाषा भी बोल लेते थे. इतना ही नहीं उन्होंने अपने चचेरे भाई पामुलापर्थी सदाशिव राव के साथ 1948 से 1955 तक एक तेलुगु साप्ताहिक पत्रिका काकतीय का संपादन किया.

ब्रिटिश शासन के खिलाफ

ब्रिटिश राज से भारत की स्वतंत्रता के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक प्रमुख सदस्य बनने से पहले पी वी नरसिम्हा राव ने औपनिवेशिक प्रशासन के खिलाफ विरोध और प्रदर्शनों में सक्रिय रूप से भाग लिया. पीवी नरसिम्हा एक सक्रिय छात्र नेता थे, जहां उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों के शोषण पर ब्रिटिश प्रशासन के खिलाफ आंध्र प्रदेश के विभिन्न इलाकों में कई सत्याग्रही आंदोलनों का नेतृत्व किया.उन्होंने 1930 के दशक में हैदराबाद राज्य में हुए वंदे मातरम आंदोलन के भी सक्रिय भूमिका निभाई थी. नतीजतन, ऐसे में कई बार ब्रिटिश अधिकारियों के विरोध प्रदर्शन के कारण उनको साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया था.

राजनीतिक सफर

पेशे से कृषि विशेषज्ञ एवं वकील राव राजनीति में आए एवं कुछ महत्वपूर्ण विभागों का कार्यभार संभाला. वे आंध्र प्रदेश सरकार में 1962 से 64 तक कानून एवं सूचना मंत्री, 1964 से 67 तक कानून एवं विधि मंत्री, 1967 में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा मंत्री एवं 1968 से 1971 तक शिक्षा मंत्री रहे.

वे 1971 से 73 तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. इसके अलावा वे 1975 से 76 तक अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव, 1968 से 74 तक आंध्र प्रदेश के तेलुगू अकादमी के अध्यक्ष एवं 1972 से मद्रास के दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के उपाध्यक्ष रहे. वे 1957 से 1977 तक आंध्र प्रदेश विधान सभा के सदस्य, 1977 से 84 तक लोकसभा के सदस्य रहे और दिसंबर 1984 में रामटेक से आठवीं लोकसभा के लिए चुने गए.

लोक लेखा समिति के अध्यक्ष के तौर पर 1978-79 में उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय के एशियाई एवं अफ्रीकी अध्ययन स्कूल द्वारा आयोजित दक्षिण एशिया पर हुए एक सम्मेलन में भाग लिया. राव भारतीय विद्या भवन के आंध्र केंद्र के भी अध्यक्ष रहे. वे 14 जनवरी 1980 से 18 जुलाई 1984 तक विदेश मंत्री, 19 जुलाई 1984 से 31 दिसंबर 1984 तक गृह मंत्री एवं 31 दिसंबर 1984 से 25 सितम्बर 1985 तक रक्षा मंत्री रहे. उन्होंने 5 नवंबर 1984 से योजना मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी संभाला था. 25 सितम्बर 1985 से उन्होंने मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में पदभार संभाला.

संगीत, सिनेमा व नाटक में थी रुचि

पीवी नरसिम्हा राव संगीत, सिनेमा एवं नाटकशाला में रुचि रखते थे. साथ ही उन्हें भारतीय दर्शन एवं संस्कृति, कथा साहित्य एवं राजनीतिक टिप्पणी लिखने, भाषाएं सीखने, तेलुगू एवं हिंदी में कविताएं लिखने एवं साहित्य में उनकी विशेष रुचि थी. उन्होंने स्वर्गीय विश्वनाथ सत्यनारायण के प्रसिद्ध तेलुगु उपन्यास ‘वेई पदागालू’ के हिंदी अनुवाद ‘सहस्रफन’ एवं केन्द्रीय साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित स्वर्गीय हरि नारायण आप्टे के प्रसिद्ध मराठी उपन्यास 'पान लक्षत कोन घेटो' के तेलुगू अनुवाद ‘अंबाला जीवितम’ को सफलतापूर्वक प्रकाशित किया.

उन्होंने कई प्रमुख पुस्तकों का मराठी से तेलुगू एवं तेलुगु से हिंदी में अनुवाद किया एवं विभिन्न पत्रिकाओं में कई लेख एक उपनाम के अन्दर प्रकाशित किया. उन्होंने राजनीतिक मामलों एवं संबद्ध विषयों पर संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिम जर्मनी के विश्वविद्यालयों में व्याख्यान दिया. इसके अलावा उन्होंने विदेश मंत्री के रूप में उन्होंने 1974 में ब्रिटेन, पश्चिम जर्मनी, स्विट्जरलैंड, इटली और मिस्र इत्यादि देशों की यात्रा की.

1980 में संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन के सम्मेलन की अध्यक्षता की

विदेश मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान राव ने अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के क्षेत्र में अपनी शैक्षिक पृष्ठभूमि एवं राजनीतिक तथा प्रशासनिक अनुभव का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया. प्रभार संभालने के कुछ ही दिनों बाद उन्होंने जनवरी 1980 में नई दिल्ली में संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन के तृतीय सम्मेलन की अध्यक्षता की. इसके अलावा उन्होंने मार्च 1980 में न्यूयॉर्क में जी-77 की बैठक की भी अध्यक्षता की. वहीं फरवरी 1981 में गुट निरपेक्ष देशों के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में उनकी भूमिका के लिए राव की बहुत प्रशंसा की गई थी. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मुद्दों में व्यक्तिगत रूप से गहरी रुचि दिखाई थी. व्यक्तिगत रूप से मई 1981 में कराकास में ईसीडीसी पर जी-77 के सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया.

वर्ष 1982 और 1983 भारत और इसकी विदेश नीति के लिए काफी महत्त्वपूर्ण था. खाड़ी युद्ध के दौरान गुट निरपेक्ष आंदोलन का सातवां सम्मलेन भारत में हुआ जिसकी अध्यक्षता श्रीमती इंदिरा गांधी ने की. वर्ष 1982 में जब भारत को इसकी मेजबानी करने के लिए कहा गया और उसके अगले वर्ष जब विभिन्न देशों के राज्य और शासनाध्यक्षों के बीच आंदोलन से सम्बंधित अनौपचारिक विचार के लिए न्यूयॉर्क में बैठक की गई, तब पी.वी. नरसिम्हा राव ने गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों के विदेश मंत्रियों के साथ नई दिल्ली और संयुक्त राष्ट्र संघ में होने वाली बैठकों की अध्यक्षता की थी.

राव ने विशेष गुट निरपेक्ष मिशन के भी नेता रहे जिसने फिलीस्तीनी मुक्ति आन्दोलन को सुलझाने के लिए नवंबर 1983 में पश्चिम एशियाई देशों का दौरा किया. इसके अलावा वे नई दिल्ली सरकार के राष्ट्रमंडल प्रमुखों एवं सायप्रस सम्बन्धी मामले पर हुई बैठक द्वारा गठित कार्य दल के साथ सक्रिय रूप से जुड़े हुए थे.

विदेश मंत्री के रूप में नरसिम्हा राव ने अमेरिका, यूएसएसआर, पाकिस्तान, बांग्लादेश, ईरान, वियतनाम, तंजानिया एवं गुयाना जैसे देशों के साथ हुए विभिन्न संयुक्त आयोगों की भारत की ओर से अध्यक्षता की.

मौत के बाद विवाद

नरसिम्हा राव के निधन के बाद गांधी परिवार ने उन्हें भूली हुई श्रेणी में रख दिया . इतना ही नहीं एआईसीसी मुख्यालय में उनके शरीर को भी प्रवेश करने से मना कर दिया गया था और राव के परिवार के उस अनुरोध को भी ठुकरा दिया था कि जिसमें उन्होंने राव के शव को दफनाने के लिए राजधानी में जगह की मांग की थी.

इसके बाद आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. वाई.एस.राजशेखर रेड्डी के हस्तक्षेप के बाद हैदराबाद में पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया. इससे पहले राव का पार्थिव शरीर हैदराबाद के जुबली हॉल में राज्य रखा गया था. उनके अंतिम संस्कार में वर्तमान प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व प्रधान मंत्री एच डी देवेगौड़ा, तत्कालीन भाजपा के अध्यक्ष एलके आडवाणी, रक्षा मंत्री प्रणब मुखर्जी, वित्त मंत्री पी. चिदंबरम और कई अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे.

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