नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश संजय किशन कौल ने मंगलवार को कहा कि कभी-कभी कुछ चीजों को अनकहा छोड़ देना ही बेहतर होता है. उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की पदोन्नति और स्थानांतरण के विषय पर कॉलेजियम की सिफारिशों पर कदम उठाने में केंद्र सरकार की कथित देरी से संबंधित याचिकाओं को वाद सूची से अचानक हटाये जाने का कुछ वकीलों ने आरोप लगाया, जिसपर न्यायमूर्ति कौल ने यह टिप्पणी की.
शीर्ष अदालत के विचारार्थ दो याचिकाएं हैं, जिनमें से एक में कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित नामों को मंजूरी देने में सरकार पर देरी करने का आरोप लगाया गया है. न्यायमूर्ति कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने 20 नवंबर को विषय की सुनवाई की थी और इसे आगे की सुनवाई के लिए मंगलवार को सूचीबद्ध करने को कहा था.
याचिकाकर्ताओं में से एक का प्रतिनिधित्व कर रहे एक वकील ने पीठ के समक्ष मुद्दे का उल्लेख किया और कहा कि याचिकाएं आज सुनवाई के लिए सूचीबद्ध की जानी थीं, लेकिन वाद सूची से हटा दी गईं. न्यायमूर्ति कौल ने वकील से कहा, 'मैंने इन्हें नहीं हटाया है.' बाद में, एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने भी इस मुद्दे को उठाया. उन्होंने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा, 'यह अजीब है कि इसे हटा दिया गया है.'
न्यायमूर्ति कौल ने भूषण से कहा, 'आपके मित्र ने सुबह (मुद्दे का) उल्लेख किया था. मैंने सिर्फ एक बात कही थी, मैंने वह विषय नहीं हटाया है.' भूषण ने जब कहा कि अदालत को रजिस्ट्री से इस बारे में स्पष्टीकरण मांगना चाहिए, तो न्यायमूर्ति कौल ने उनसे कहा, 'मुझे यकीन है कि प्रधान न्यायाधीश को इसकी जानकारी है.' भूषण ने कहा कि यह बहुत असामान्य है कि विषय को हटा दिया गया, जबकि इसे आज सूचीबद्ध करने का न्यायिक आदेश था.
न्यायमूर्ति कौल ने वरिष्ठ वकील से कहा, 'कभी-कभी कुछ चीजों को अनकहा छोड़ देना ही बेहतर होता है.' भूषण ने कहा कि यह मामला काफी समय से न्यायमूर्ति कौल की अगुवाई वाली पीठ देख रही है. न्यायमूर्ति कौल ने कहा, 'इसलिए मैं स्पष्ट करता हूं कि ऐसा नहीं है कि मैंने मामला हटा दिया है या मैं इस मामले को सुनने का इच्छुक नहीं हूं.' शीर्ष अदालत ने 20 नवंबर को मामले की सुनवाई करते हुए कॉलेजियम द्वारा स्थानांतरण के लिए अनुशंसित उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को केंद्र द्वारा चुनने के मुद्दे को उठाते हुए कहा था कि इससे अच्छा संकेत नहीं जाएगा.
कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से न्यायाधीशों की नियुक्ति उच्चतम न्यायालय और केंद्र के बीच तनातनी का एक मुद्दा बन गया है. शीर्ष अदालत जिन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, उनमें एडवोकेट्स एसोसिएशन, बेंगलुरु द्वारा दायर एक याचिका भी शामिल है, जिसमें अनुशंसित नामों को मंजूरी देने के लिए 2021 के फैसले में न्यायालय द्वारा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की पदोन्नति और स्थानांतरण के लिए निर्धारित समय-सीमा का पालन नहीं करने को लेकर केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की मांग की गई है.
एक याचिका में, न्यायाधीशों की समय पर नियुक्ति के लिए शीर्ष अदालत द्वारा 20 अप्रैल, 2021 के आदेश में निर्धारित समय-सीमा की (केंद्र द्वारा) जानबूझकर अवज्ञा करने का आरोप लगाया गया है. उक्त आदेश में, अदालत ने कहा था कि अगर कॉलेजियम सर्वसम्मति से अपनी सिफारिशें दोहराती है तो केंद्र तीन-चार सप्ताह के भीतर न्यायाधीशों की नियुक्ति करेगा.
ये भी पढ़ें - सुप्रीम कोर्ट अविवाहित महिलाओं के सरोगेसी का लाभ उठाने पर लगे प्रतिबंध के खिलाफ याचिका पर विचार के लिए सहमत