पूरे देश में छह लाख साठ हजार से ज्यादा गांव हैं. लेकिन इन गांवों में कुछ ऐसे हैं जो बेहद खास है. यहां हम आपको देश सभी खास गांवों के बारे में तो नहीं बता रहे, लेकिन कुछ गांवों के बारे में जरूर बता रहे हैं, जो कुछ खास चीजों के लिए जाने जाते हैं. तो चलिए जानते हैं कि आखिर इन गांवों में क्या खास है.
सब कुछ संस्कृत में
![Village where everyone speaks Sanskrit](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/18122022sun-sf2aa_1812newsroom_1671349093_343.jpg)
संस्कृत को देववाणी कहां जाता है. लेकिन देश में कितने लोग इस भाषा को बोल सकते हैं? हमें लगता है कि कुछ लोग अंकों के लिए अध्ययन करने या वेद मंत्रों को सुनने के अलावा अपने साथियों से पूरी तरह से संस्कृत में बात नहीं करते हैं. लेकिन, असम के करीनगंज जिले के पटियाला गांव पर नजर डालें तो पता चलता है कि यहां राय गलत है. इस गांव के सभी लोग केवल संस्कृत बोलते हैं. दैनिक कार्यों के लिए एक ही भाषा का प्रयोग किया जाता है.
![Village where everyone speaks Sanskrit](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/18122022sun-sf2a_1812newsroom_1671349093_90.jpg)
यहां पर रहने वाले सभी लोग शुरू से ही संस्कृत नहीं बोलते थे. साल 2015 में गांव गए 'संस्कृत भारती' के कार्यकर्ताओं ने संस्कृत शिविर लगाया था, जिसमें ग्रामीणों ने उनसे संस्कृत सीखी. इसके बाद से ही सभी गांव वालों ने संस्कृत में बोलना शुरू कर दिया और अब वे इसे अपने बच्चों को भी पढ़ा रहे हैं. गांव में प्रतिदिन सुबह 5 से 7 बजे तक योग शिविर भी लगाया जाता है. खेती के काम में फुरसत न मिलने पर भी ग्रामीण प्रतिदिन योगाभ्यास करते हैं.
भारत में अफ्रीका
अफ्रीकी हमारे देश के कुछ मेट्रो शहरों में रहते हैं और यहां अपना जीवन बरस कर रहे हैं. कुछ अफ्रीकी यहां रहने आए हैं, तो कुछ यहां नौकरी के लिए रह रहे हैं. लेकिन, क्या आपने कभी अफ़्रीकी लोगों को देखा है, जो शुद्ध गुजराती बोलते हैं? अगर आप गुजरात में गिर नेशनल पार्क के पास जंबूर जाएं, तो आप इन्हें देख सकते हैं. जंबूर भारत में एक मिनी अफ्रीकी गांव है. वे बंटू जनजाति के वंशज हैं, जो कुछ सदियों पहले दक्षिण पूर्वी अफ्रीका से हमारे देश में आए थे.
![African village of Gujarat](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/18122022sun-sf2b_1812newsroom_1671349093_846.jpg)
उस समय उनके पूर्वज गुलाम और नाविक के रूप में यहां पहुंचे थे. अरब व्यापारियों ने उनमें से कुछ को भारतीय नवाबों को सौंप दिया. अन्य पुर्तगालियों द्वारा लाए गए थे. जिन अफ्रीकियों को सब सिद्धि कहते हैं, बरसों से अपनी मातृभाषा भूल गए हैं. गुजराती की बात करें तो वे स्थानीय रीति-रिवाजों के अभ्यस्त हो गए. अधिकांश जम्बूर सिद्धियां कृषि में लगी हुई हैं.
सिद्धि पर्यटकों के लिए आदिवासी नृत्य करके आय अर्जित करती है. हाल ही में गुजरात विधानसभा चुनाव के अवसर पर पहली बार उस गांव में एक मतदान केंद्र बनाया गया था. यहां 3,400 से ज्यादा वोटर हैं, इनमें 90 फीसदी सिद्धि हैं. अपने गांव में मतदान केंद्र के आगमन पर आनन्दित होकर, उन सभी ने अपने लोक नृत्य के साथ एक बड़ा उत्सव मनाया.
पहलवान गांव
देश की राजधानी दिल्ली के बाहरी इलाके में स्थित इस गांव में आप जाएंगे, तो आपको पहलवानी पसंद करने वाले बाहुबली बदन वाले तमाम पहलवान मिल जाएंगे. इसका इस गांव का नाम असोला-फतेपुर बेरी है. नाइटक्लब, बार और अन्य इलाकों में काम करने वाले ज्यादातर बाउंसर इसी गांव के हैं. सुबह और शाम को लड़के पारंपरिक तरीके से कठोर व्यायाम करते हैं. वे कुश्ती सीखते हैं और उन प्रतियोगिताओं में भाग लेते हैं. बीस साल पहले उस गांव के विजय तंवर ने भी संघर्ष किया था.
![wrestler village of delhi](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/18122022sun-sf2c_1812newsroom_1671349093_623.jpg)
लेकिन, उन्हें ओलंपिक में भाग लेने वाली भारतीय कुश्ती टीम में जगह नहीं मिल पाई. इसलिए वह नौकरी की तलाश में बाउंसर के रूप में कार्य करने लगे. उनके बाद उस गांव के कई युवा भी उसी रास्ते पर चल पड़े. वे धूम्रपान और शराब पीने जैसी बुरी आदतों से दूर रहते हैं और पौष्टिक आहार लेते हैं और उपयुक्त व्यायाम से अपने शरीर को मजबूत बनाते हैं.
![wrestler village of delhi](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/18122022sun-sf2cc_1812newsroom_1671349093_526.jpg)
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इसके अलावा, उन ग्रामीणों के पूर्वज उस समय योद्धा थे. वे दिल्ली पर हमला करने वाले दुश्मन के शिविरों का सामना करने वाले पहले लोगों में से थे. विरासत में मिले कुश्ती के हुनर को निखारना, इसी तरह उन्हें रोजगार मिलता है. हाल ही में 'बबली बाउंसर' फिल्म में तमन्ना ने बाउंसर की भूमिका निभाई थी. बता दें कि उन्हें असोला-फतेपुर बेरी के ग्रामीण के रूप में ही दिखाया गया था.