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क्या 'सर' कहने से जजों की गरिमा कम हो जाती है ?

क्या न्यायमूर्ति को 'सर' कहने से कोर्ट की गरिमा कम हो जाती है ? क्या यह जरूरी है कि हम उन्हें 'योर लॉर्डशिप' कहकर ही संबोधित करें ? क्या माई लॉर्डशिप कहना गलत है ? आइए विस्तार से जानते हैं न्यायाधीशों को संबोधित करने के लिए कौन से शब्दों का उपयोग सबसे ज्यादा बेहतर है.

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Published : Jul 14, 2021, 7:15 PM IST

हैदराबाद : मद्रास हाईकोर्ट ने आज एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि हमें संबोधित करने के लिए यह जरूरी नहीं है कि आप 'योर लॉर्डशिप' शब्द का प्रयोग करें. आप चाहें तो हमें 'सर' कहकर संबोधित कर सकते हैं.

मुख्य न्यायाधीश संजीब बनर्जी और न्यायाधीश सेंथिल कुमार राममूर्ति की पीठ के सामने जब एक वकील ने 'योर लॉर्डशिप' के बजाए 'माय लॉर्डशिप' कहा, तो पीठ ने उन्हें तुरंत टोक दिया.

पीठ ने कहा कि आप गलत उच्चारण कर रहे हैं, सही शब्द 'योर लॉर्डशिप' है. पीठ ने कहा कि अगर आप इसे नहीं बोल सकते हैं, तो 'सर' शब्द का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

उसके बाद वकील ने माफी मांग ली. उन्होंने कहा कि 'माय लॉर्डशिप' शब्द अचानक ही मुंह से निकल गया था.

इस मामले की सुनवाई से पहले भी कई मौकों पर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की अलग-अलग पीठ ने इस मसले पर साफ तौर पर कहा है कि औपनिवेशिक काल से चली आ रही इस परंपरा को ढोने का कोई मतलब नहीं है.

हाईकोर्ट की कई पीठों ने उपनिवेश काल के समय में इस्तेमाल होने वाले संबोधन को छोड़ने की बात कही है.

पिछले महीने कर्नाटक हाईकोर्ट में एक मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति ज्योति मुलिमणि ने सभी वकीलों से आग्रह किया कि वे उन्हें 'मैडम' कहकर संबोधित करें.

इसी हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति कृष्ण भट्ट ने भी 'लॉर्डशिप' या 'योर लॉर्डशिप' से बचने की सलाह दी. न्यायमूर्ति ने कहा कि 'सर' कह देने से भी कोर्ट की गरिमा बरकरार रहेगी.

ओडिशा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एस मुरलीधर ने भी 'लॉर्ड' या 'लॉर्डशिप' को छोड़ सर कहने की सलाह दी है.

पिछले साल कलकत्ता हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थोट्टाथिल बी राधाकृष्णन ने जिला न्यायालय के सभी अधिकारियों को उनके लिए 'सर' शब्द का उपयोग करने को कहा.

2019 में राजस्थान हाईकोर्ट की फुल बेंच भी इसी का पक्षधर रही है.

सुप्रीम कोर्ट में 2014 में इससे जुड़ी एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी. याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यामूर्ति एचएल दत्तू और न्यायमूर्ति एसए बोबडे ने कहा कि यह कोई जरूरी नहीं है कि 'माय लॉर्ड' या 'योर लॉर्डशिप' कहा जाए. हालांकि, पीठ ने इस याचिका को खारिज कर दी थी.

पीठ ने कहा कि हमने कब कहा कि यह आवश्यक है. आप सिर्फ हमें गरिमापूर्ण ढंग से संबोधित कीजिए. इसके अलावा और कुछ नहीं.

आपको बता दें कि 2006 में बार काउंसिल ने एक प्रस्ताव पारित किया था. इसमें 'माई लॉर्ड' या 'योर लॉर्डशिप' की प्रथा बंद करने का संकल्प लिया गया था. इसके बावजूद यह शब्द आज भी प्रचलन में है.

दरअसल, 2019 में बार काउंसिल ने फिर से एक प्रस्ताव पारित किया. इसमें जजों को 'माई लॉर्ड' या 'योर लॉर्डशिप' कहने की सलाह दी गई है.

1961 के द एडवोकेट्स एक्ट के अनुसार भारत की बार काउंसिल ही वकीलों के लिए शिष्टाचार के मानक तय करती है.

अमेरिका में 'योर ऑनर' शब्द का प्रचलन है. 'जस्टिस' शब्द का भी प्रयोग होता है. जस्टिस के बाद उनका नाम लेना होता है. मुख्य न्यायाधीश के लिए 'मिस्टर' शब्द का भी उपयोग किया जाता है.

ग्रेट ब्रिटेन में 'माई लॉर्ड' या 'माई लेडी' शब्द का प्रयोग हाईकोर्ट के जजों के लिए किया जाता है. जिला जजों को 'सर' या 'मैडम' कहा जाता है. मजिस्ट्रेट को 'योर लॉर्डशिप' कहा जाता है.

ये भी पढ़ें : देशद्रोह कानून की संवैधानिकता पर उठे सवाल, मीडिया पेशेवरों ने भी दी चुनौती

हैदराबाद : मद्रास हाईकोर्ट ने आज एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि हमें संबोधित करने के लिए यह जरूरी नहीं है कि आप 'योर लॉर्डशिप' शब्द का प्रयोग करें. आप चाहें तो हमें 'सर' कहकर संबोधित कर सकते हैं.

मुख्य न्यायाधीश संजीब बनर्जी और न्यायाधीश सेंथिल कुमार राममूर्ति की पीठ के सामने जब एक वकील ने 'योर लॉर्डशिप' के बजाए 'माय लॉर्डशिप' कहा, तो पीठ ने उन्हें तुरंत टोक दिया.

पीठ ने कहा कि आप गलत उच्चारण कर रहे हैं, सही शब्द 'योर लॉर्डशिप' है. पीठ ने कहा कि अगर आप इसे नहीं बोल सकते हैं, तो 'सर' शब्द का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

उसके बाद वकील ने माफी मांग ली. उन्होंने कहा कि 'माय लॉर्डशिप' शब्द अचानक ही मुंह से निकल गया था.

इस मामले की सुनवाई से पहले भी कई मौकों पर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की अलग-अलग पीठ ने इस मसले पर साफ तौर पर कहा है कि औपनिवेशिक काल से चली आ रही इस परंपरा को ढोने का कोई मतलब नहीं है.

हाईकोर्ट की कई पीठों ने उपनिवेश काल के समय में इस्तेमाल होने वाले संबोधन को छोड़ने की बात कही है.

पिछले महीने कर्नाटक हाईकोर्ट में एक मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति ज्योति मुलिमणि ने सभी वकीलों से आग्रह किया कि वे उन्हें 'मैडम' कहकर संबोधित करें.

इसी हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति कृष्ण भट्ट ने भी 'लॉर्डशिप' या 'योर लॉर्डशिप' से बचने की सलाह दी. न्यायमूर्ति ने कहा कि 'सर' कह देने से भी कोर्ट की गरिमा बरकरार रहेगी.

ओडिशा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एस मुरलीधर ने भी 'लॉर्ड' या 'लॉर्डशिप' को छोड़ सर कहने की सलाह दी है.

पिछले साल कलकत्ता हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थोट्टाथिल बी राधाकृष्णन ने जिला न्यायालय के सभी अधिकारियों को उनके लिए 'सर' शब्द का उपयोग करने को कहा.

2019 में राजस्थान हाईकोर्ट की फुल बेंच भी इसी का पक्षधर रही है.

सुप्रीम कोर्ट में 2014 में इससे जुड़ी एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी. याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यामूर्ति एचएल दत्तू और न्यायमूर्ति एसए बोबडे ने कहा कि यह कोई जरूरी नहीं है कि 'माय लॉर्ड' या 'योर लॉर्डशिप' कहा जाए. हालांकि, पीठ ने इस याचिका को खारिज कर दी थी.

पीठ ने कहा कि हमने कब कहा कि यह आवश्यक है. आप सिर्फ हमें गरिमापूर्ण ढंग से संबोधित कीजिए. इसके अलावा और कुछ नहीं.

आपको बता दें कि 2006 में बार काउंसिल ने एक प्रस्ताव पारित किया था. इसमें 'माई लॉर्ड' या 'योर लॉर्डशिप' की प्रथा बंद करने का संकल्प लिया गया था. इसके बावजूद यह शब्द आज भी प्रचलन में है.

दरअसल, 2019 में बार काउंसिल ने फिर से एक प्रस्ताव पारित किया. इसमें जजों को 'माई लॉर्ड' या 'योर लॉर्डशिप' कहने की सलाह दी गई है.

1961 के द एडवोकेट्स एक्ट के अनुसार भारत की बार काउंसिल ही वकीलों के लिए शिष्टाचार के मानक तय करती है.

अमेरिका में 'योर ऑनर' शब्द का प्रचलन है. 'जस्टिस' शब्द का भी प्रयोग होता है. जस्टिस के बाद उनका नाम लेना होता है. मुख्य न्यायाधीश के लिए 'मिस्टर' शब्द का भी उपयोग किया जाता है.

ग्रेट ब्रिटेन में 'माई लॉर्ड' या 'माई लेडी' शब्द का प्रयोग हाईकोर्ट के जजों के लिए किया जाता है. जिला जजों को 'सर' या 'मैडम' कहा जाता है. मजिस्ट्रेट को 'योर लॉर्डशिप' कहा जाता है.

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