सिंगूर (हुगली): आज हम हुगली जिले के छोटे से क्षेत्र सिंगूर की बात कर रहे हैं. इस क्षेत्र ने 2011 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और लेफ्ट फ्रंट के 34 साल के शासन का अंत हुआ था.
दरअसल, तत्कालीन लेफ्ट फ्रंट सरकार ने सिंगूर में टाटा मोटर्स की कार विनिर्माण इकाई स्थापित करने की मंजूरी दी थी. जिसके लिए किसानों की भूमि का अधिग्रहण किया गया था, लेकिन तब विपक्ष की नेता ममता बनर्जी की अगुआई में कृषि भूमि रक्षा समिति का गठन किया गया और इस तरह भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत हुई.
कृषि भूमि रक्षा समिति के बैनर तले सिंगूर में टाटा मोटर्स के प्लांट के खिलाफ आंदोलन हुआ, जिसके कारण टाटा कंपनी को अपनी सिंगूर परियोजना दूसरी जगह शिफ्ट करनी पड़ी थी. बाद में किसानों को उनकी जमीन तो वापस मिल गई थी, लेकिन सिंगूर आज एक सुनसान रेगिस्तान से ज्यादा कुछ नहीं है. किसानों का आरोप है कि यहां की जमीन अब कृषि योग्य नहीं है.
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 में सिंगूर में औद्योगीकरण का मुद्दा फिर से चर्चा में है. राज्य के विपक्षी दल के साथ-साथ सिंगूर के लोग भी चाहते हैं कि टाटा मोटर्स परियोजना के लिए आवंटित भूमि का उपयोग उद्योग उद्देश्य के लिए किया जाए.
सिंगूर बना चुनावी मुद्दा
लेफ्ट-कांग्रेस-आईएसएफ गठबंधन और भाजपा चुनाव प्रचार के दौरान इस मुद्दे को लगातार उठा रहे हैं. हालांकि, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले ही सिंगूर में एक औद्योगिक पार्क बनाने की घोषणा कर चुकी हैं. लेकिन विपक्ष को लगता है कि इस पार्क से सिंगूर की किस्मत नहीं बदलेगी.
अब सवाल यह है कि क्या सिंगूर में विकास होगा या आगे भी यह क्षेत्र सुनसान रेगिस्तान की तरह ही पड़ा रहेगा. या विधानसभा चुनाव 2021 के बाद अगर राज्य में सत्ता परिवर्तन होता है तो सिंगूर औद्योगिकरण की नई उम्मीद का गवाह बनेगा.
2006 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में, लेफ्ट फ्रंट का मुख्य नारा था- कृषि हमारा आधार है और उद्योग हमारा भविष्य. इसके बाद तृणमूल कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल में लेफ्ट सरकार के खिलाफ एक बड़ा भूमि आंदोलन शुरू किया और आरोप लगाया गया था कि टाटा मोटर्स की सिंगूर परियोजना के लिए राज्य सरकार ने जबरन उपजाऊ जमीन का अधिग्रहण किया है. इस दौरान दो लोगों की मौत के बाद आंदोलन को बल मिला और 2011 में बंगाल में लेफ्ट फ्रंट शासन का पतन हुआ तथा तृणमूल कांग्रेस के शासन की शुरुआत हुई. मुख्यमंत्री बनने के फौरन बाद ममता बनर्जी ने सिंगूर के किसानों के लिए प्रतिमाह 2,000 रुपये भत्ता और 16 किलोग्राम चावल की घोषणा की, यह योजना अभी भी जारी है.
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सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को कृषि योग्य भूमि बनाकर उसे किसानों को वापस देने का आदेश दिया था, लेकिन राज्य सरकार के भूमि को फिर से कृषि योग्य बनाने के सभी प्रयास विफल रहे और सिंगूर में खेती करना असंभव सा हो गया.
विशेषज्ञों का मानना है कि भूमि को फिर से कृषि योग्य बनाने में कुछ और साल लगेंगे. लेकिन सिंगूर के स्थानीय लोग अब और इंतजार नहीं करना चाहते हैं और वे वहां उद्योग चाहते हैं. उनका कहना है कि सिंगूर में उद्योग स्थापित करने से बेरोजगारी की समस्या का समाधान होगा. राज्य के विपक्षी दल भी इस मुद्दे को विधानसभा चुनाव में भुनाने की कोशिश लगे हैं.
उद्योग के पक्ष में स्थानीय लोग
एक स्थानीय किसान ने कहा कि उनके पास एकड़ से अधिक भूमि थी, जो उपजाऊ थी और इसलिए वह भूमि अधिग्रहण-विरोधी आंदोलन में शामिल हुए. लेकिन तब स्थिति अलग थी. आज उन्हें लगता है कि अब उद्योग ही हमें बचा सकता है.
अन्य किसान ने कहा कि उन्होंने स्वेच्छा से औद्योगिक परियोजना के लिए चार एकड़ जमीन दी थी. दूसरों की तरह उन्हें भी जमीन वापस मिल गई. लेकिन यह जमीन अब खेती के लिए उपयुक्त नहीं है. हम चाहते हैं कि इस जमीन का उपयोग उद्योग के लिए किया जाए.
सिंगूर से सीपीएम उम्मीदवार, श्रीजन भट्टाचार्य ने कहा कि लेफ्ट फ्रंट सरकार का तब औद्योगिकीकरण का दृष्टिकोण सही था, लेकिन इसके क्रियान्वयन में कुछ खामी थी. उन्होंने कहा कि अब सिंगूर में न तो कृषि है और न ही उद्योग. सिंगूर को बर्बाद करने के बाद मुख्यमंत्री ममत बनर्जी अब सिंगूर में कृषि आधारित उद्योग स्थापित करने की बात कर रही हैं.
सिंगूर के पूर्व विधायक और इस बार भाजपा उम्मीदवार रवींद्रनाथ भट्टाचार्य स्थानीय लोगों की तरह अब सिंगूर में उद्योग के पक्ष में हैं.