नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) पर लगाया गया बैन सही ठहराया है. अपने जवाबी हलफनामे में केंद्र ने अदालत को बताया कि सिमी का उद्देश्य 'देश में इस्लामी व्यवस्था की स्थापना' करना है. इस तरह के उद्देश्यों को 'भारत के लोकतंत्र के साथ सीधे संघर्ष के रूप में देखा जाना चाहिए और हमारे धर्मनिरपेक्ष समाज में इसे चिरस्थायी होने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.'
केंद्र ने बताया कि सिमी 25.4.1977 को अस्तित्व में आया और "जिहाद" (धार्मिक युद्ध) और राष्ट्रवाद का विनाश और इस्लामी शासन या खिलाफत की स्थापना इसके कुछ उद्देश्य थे. केंद्र ने कहा, "संगठन राष्ट्र-राज्य या भारतीय संविधान में अपनी धर्मनिरपेक्ष प्रकृति सहित विश्वास नहीं करता है. संगठन मूर्ति पूजा को पाप के रूप में मानता है, और इस तरह की प्रथाओं को समाप्त करने के अपने 'कर्तव्य' का प्रचार करता है."
हलफनामे में कहा गया है कि सिमी का इस्तेमाल जम्मू और कश्मीर राज्य से अन्य बातों के साथ-साथ संचालित विभिन्न कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवादी संगठनों द्वारा किया गया था. साथ ही, हिज्ब-उल-मुजाहिदीन और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकवादी संगठन अपने देश-विरोधी लक्ष्य को हासिल करने के लिए सिमी कैडरों में घुसने में सफल रहे हैं. यह हलफनामा हुमाम अहमद सिद्दीकी द्वारा दायर एक विशेष अनुमति याचिका के जवाब में दायर किया गया था, जिसने संगठन के पूर्व सदस्य होने का दावा किया था, जिसमें 2019 की अधिसूचना को चुनौती दी गई थी.
अधिसूचना के तहत सिमी पर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत लगाए गए प्रतिबंध को बढ़ा दिया गया था. याचिका का विरोध करते हुए केंद्र ने कहा, "रिकॉर्ड पर लाए गए साक्ष्य स्पष्ट रूप से स्थापित करते हैं कि 27 सितंबर, 2001 के बाद से प्रतिबंधित होने के बावजूद, बीच की एक संक्षिप्त अवधि को छोड़कर, सिमी कार्यकर्ता मिल रहे हैं, बैठक कर रहे हैं, साजिश कर रहे हैं, हथियार और गोला-बारूद प्राप्त कर रहे हैं, और विघटनकारी गतिविधियों में लिप्त हैं. भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को खतरे में डालने में सक्षम हैं. वे अन्य देशों में स्थित अपने सहयोगियों और आकाओं के साथ नियमित संपर्क में हैं. उनके कृत्य देश में शांति और सांप्रदायिक सद्भाव को बाधित करने में सक्षम हैं. उनके घोषित उद्देश्य हमारे देश के कानून के विपरीत हैं. विशेष रूप से भारत में इस्लामी शासन स्थापित करने के उनके उद्देश्य को किसी भी परिस्थिति में जीवित रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती है."
केंद्र ने इस बात पर जोर दिया गया कि प्रतिबंध के बावजूद, सिमी गुप्त रूप से काम करना जारी रखे हुए है और कई फ्रंट संगठन धन संग्रह, साहित्य के संचलन, कैडर के पुनर्गठन आदि सहित विभिन्न गतिविधियों में इसकी मदद करते हैं. केंद्र ने यह कहते हुए याचिकाकर्ता के अधिकार क्षेत्र पर भी सवाल उठाया कि केवल पदाधिकारी ही यूएपीए की धारा 4(2) और (3) के अनुसार प्रतिबंध को चुनौती दे सकते हैं. सिमी पर प्रतिबंध लगाने से अनुच्छेद 19(1)(सी) के तहत मौलिक अधिकारों का कोई उल्लंघन नहीं होता है और यह देश की संप्रभुता और सुरक्षा के हितों में एक उचित प्रतिबंध है. सिमी पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिकाएं जस्टिस एसके कौल की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध हैं.
(इनपुट-एजेंसी)