नालंदा: कहते हैं कि मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती, लेकिन वही मेहनत अगर लगन से की जाए तो सफलता उसके कदम चुमती है. इसी कहावत को चरितार्थ कर दिखाया है बिहार की एक खिलाड़ी बेटी ने, जो न सिर्फ जिला और राज्य में, बल्कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना छाप छोड़ चुकी हैं. वह दूसरी लड़कियों के प्रेरणाश्रोत बनी हुई है.
बिहार की रग्बी गर्ल श्वेता शाही: बिहार में रग्बी गर्ल के नाम से मशहूर नालंदा की बेटी श्वेता शाही, जो साल 2015 में महज 16 साल की उम्र में इंडियन, इंटरनेशनल टीम का हिस्सा बनी. यही नहीं चोटिल होने के बावजूद बुलंद हौसले से चेन्नई में आयोजित एशियन गेम्स में सिल्वर मेडल जीता.
श्वेता शाही ने ईटीवी भारत से की खास बातचीत: रग्बी गर्ल श्वेता शाही ने ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान बताया कि वह मूल रूप से नालंदा जिले के सिलाव प्रखंड अंतर्गत भदारी गांव की रहने वाली है. उसके पिता सुजीत कुमार शाही किसान हैं. सुजीत कुमार बेहद मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते हैं. उन्हें 5 संतान हैं, जिनमें दो बेटियां और तीन बेटे हैं. इन 5 संतानों में श्वेता शाही दूसरे नंबर पर है.
उत्कृष्ट प्रदर्शन से श्वेता का मनोबल बढ़ा: श्वेता धीरे-धीरे अपने बेहतरीन प्रदर्शन के जरिए प्रखंड से जिला और जिला से राज्य तक पहुंची. उसके बाद 2010 से 2012 तक राज्य स्तरीय एथलीट खेला. इसी एथलीट में खेलने के दौरान साल 2013 में मुजफ्फपुर में राज्यस्तरीय खेल में हिस्सा लेने गई. उसी दौरान बिहार रग्बी एसोसिएशन के सचिव पंकज कुमार ज्योति से मुलाकात हुई.
रग्बी खेलने के लिए श्वेता को मिला ऑफर: बिहार रग्बी के सचिव पंकज कुमार ने श्वेता को ओलंपिक में रग्बी खेल में शामिल होने के लिए कहा, जिसका ट्रायल भुवनेश्वर में होना था. रग्बी के लिए हामी भरी तो पटना बुलाकर दो दिनों का प्रशिक्षण दिया गया. जिसके बाद उसे भुवनेश्वर ले जाया गया. वहां रग्बी इंडिया के मैनेजर नासिर हुसैन से मुलाकात हुई तो उन्होंने ट्रेनिंग कैंप पूरा करने के बाद श्वेता को रग्बी खेल के बारे में समझने और प्रैक्टिस करने को कहा.
पिता और भाई के साथ की प्रैक्टिस: भुवनेश्वर से जब श्वेता गांव लौटी तो अपने पिता और तीन भाइयों के साथ प्रैक्टिस करना शुरू किया. श्वेता ने बताया कि गांव के लोग पिता के साथ दौड़ की प्रैक्टिस करते वक्त तंज कसते थे. घर की आर्थिक स्थिति भी सही नहीं होने की वजह से पिता के साथ खेती में हाथ भी बंटाती थी. आज उस व्यंग्य का जवाब श्वेता ने पिता का मान-सम्मान बढ़ा कर दिया है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जीते कई मेडल: 2013 के बाद साल 2015 में महज 16 साल की उम्र में पहली बार राष्ट्रीय गेम्स में सिल्वर मेडल जीत कर लौटी. इसके बाद श्वेता ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और लगातार मेहनत के बल पर अब तक 9 अंतरराष्ट्रीय मेडल, जिसमें 4 सिल्वर और दो ब्रॉन्ज जीत चुकी हैं.
''जब पहली बार नेशनल गेम्स खेलने गई तो थोड़ा नर्वस थी, लेकिन घर वालों की दुआ के साथ कोच ने मनोबल दिया. जिस वजह से इस मुकाम को हासिल किया.''- श्वेता शाही, रग्बी गर्ल
यू ट्यूब से भी सीखा : यही नहीं श्वेता बताती है कि उसके खेल को और बेहतर करने में यू ट्यूब ने भी अहम भूमिका निभाई. उसने देश और विदेश के बेहतरीन खिलाड़ियों के खेल को समझा. यहां से वह काफी कुछ सीखी, जिसका लाभ उसको मिला.
"बिहार में प्रतिभागियों की कमी नहीं है, लेकिन सुविधाओं के अभाव में बच्चे आगे नहीं बढ़ पाते हैं. राज्य सरकार से निवेदन है कि यहां खिलाड़ियों को खेलने के लिए स्टेडियम की सुविधा मिले ताकि हर क्षेत्र में बिहार और नालंदा के लोग परचम लहराएं."- श्वेता शाही, रग्बी गर्ल
मेडल लाओ नौकरी पाओ के तहत मिली नौकरी: श्वेता अभी पंजाब प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी से M. PED की पढ़ाई कर रही हैं. राज्य सरकार की योजना मेडल लाओ नौकरी पाओ की तर्ज पर श्वेता शाही का भी बिहार पुलिस में सब इंस्पेक्टर के पद पर चयन किया गया है. कागजी कार्रवाई भी पूरी हो चुकी है, लेकिन जॉइनिंग लेटर अभी तक नहीं मिला है. श्वेता ने सरकार से जल्द जॉइनिंग कराने को भी कहा है.
4 साल की उम्र से ही खेल के लिए जुनून: श्वेता शाही के पिता ने बताया कि जब वह 4 साल की थी तो गांव में अन्य बच्चियों के साथ खेत में पढ़ाई के बाद दौड़ लगाया करती थी. वैसे ही जब वह राजकीय मध्य विद्यालय के छठी कक्षा में पढ़ाई करती थी तो बाल दिवस के मौके पर आयोजित प्रखंड स्तरीय खेल प्रतियोगिता में हिस्सा लिया, जिसमें वह अव्वल आई. धीरे-धीरे श्वेता की रुची एथलीट में बढ़ने लगी.
"शुरूआती दौर बहुत मुश्किल थे, लेकिन बच्ची का लगन के साथ मेहनत रंग लाया है. मुझे बहुत खुशी है कि जिस नजरिए से पहले बेटी को लोग देखते थे. वह पहले से बिल्कुल अलग है, बेटी की वजह से सम्मान मिल रहा है."- सुजीत कुमार शाही, श्वेता के पिता