नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को सेवानिवृत्ति से ठीक एक महीने पहले सेवा से बर्खास्तगी को चुनौती देने वाली पूर्व आईपीएस सतीश चंद्र वर्मा की याचिका को खारिज कर दिया. मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा की खंडपीठ ने यह फैसला दिया. वर्मा ने इशरत जहां मुठभेड़ मामले की जांच में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की सहायता की थी. उनकी रिपोर्ट के आधार पर मामले की जांच कर रहे विशेष जांच दल (एसआईटी) ने निष्कर्ष निकाला था कि मुठभेड़ फर्जी थी.
26 सितंबर 2022 को कोर्ट ने वर्मा को यह कहते हुए अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया था कि उस समय बर्खास्तगी के आदेश में किसी भी तरह के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि वर्मा को 30 सितंबर को सेवानिवृत्त होना था. नतीजतन हम इस स्तर पर 30 अगस्त 2022 के बर्खास्तगी के आदेश पर रोक लगाने के लिए इच्छुक नहीं हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने तीन महीने में फैसला देने का दिया था आदेशः कोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट किया जाता है कि यदि याचिकाकर्ता रिट याचिका में सफल होता है तो याचिकाकर्ता अपनी सेवानिवृत्ति के सभी परिणामी लाभों के हकदार होंगे. इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. शीर्ष अदालत ने आदेश पर रोक लगाने से इनकार करते हुए हाईकोर्ट से तीन महीने के भीतर मामले का निस्तारण करने को कहा.
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यह था मामलाः मामला 2016 में एक टीवी चैनल को साक्षात्कार देने के लिए वर्मा के खिलाफ शुरू की गई विभागीय कार्रवाई से जुड़ा है. वह उस समय शिलांग में नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन के मुख्य सतर्कता अधिकारी थे. इशरत जहां मामले की जांच के दौरान सीबीआई द्वारा उन पर लगाए गए आरोपों को वे स्पष्ट कर रहे थे. हालांकि, सरकार ने तर्क दिया कि साक्षात्कार में वर्मा के बयानों का मुठभेड़ की प्रतिकूल आलोचना का प्रभाव था और वे पड़ोसी देश के साथ भारत के संबंधों को प्रभावित करने में सक्षम थे.
उन पर इशरत जहां मामले में जांच की जानकारी देने और मामले के संबंध में एक वरिष्ठ अधिकारी से पूछताछ की जानकारी देने का आरोप लगाया गया था. आगे यह भी आरोप लगाया गया कि वर्मा ने गृह मंत्रालय और राज्य स्तर पर मामले से निपटने वाले अधिकारियों के व्यक्तिगत विवरण और संवेदनशील मामले से निपटने में आंतरिक प्रक्रिया (जिसमें विदेशी आतंकवादी शामिल थे, जो व्यक्तिगत सुरक्षा और मुद्दों पर प्रभाव डालते हैं) के बारे में बताया.