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पहली शादी कानूनी तौर पर भंग न होने पर दूसरी पत्नी पेंशन की हकदार नहीं : HC

अगर पहली शादी को कानूनी तौर पर खत्म नहीं किया गया है तो दूसरी पत्नी पेंशन की हकदार नहीं है. बम्बई उच्च न्यायालय ने टिप्पणी की, साथ ही याचिका खारिज कर दी. जानिए क्या है पूरा मामला.

Bombay High Court
बम्बई उच्च न्यायालय
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Published : Feb 16, 2022, 8:29 PM IST

मुंबई : बम्बई उच्च न्यायालय ( Bombay High Court ) ने बुधवार को कहा कि दूसरी पत्नी अपने मृतक पति की पेंशन की हकदार नहीं हो सकती है, यदि पहली शादी को कानूनी तौर पर खत्म किए बिना ही यह (दूसरी) शादी की गई हो.

न्यायमूर्ति एस जे कठवल्ला और न्यायमूर्ति जाधव की खंडपाीठ ने सोलापुर निवासी शामल टाटे की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने पेंशन का लाभ देने से सरकार के इनकार को चुनौती दी थी.

उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार, टाटे के पति महादेव सोलापुर जिला कलेक्टर कार्यालय में चपरासी पद पर कार्यरत थे और उनका निधन 1996 में हो गया. महादेव ने दो शादियां की थीं.

महादेव की पहली पत्नी का कैंसर के कारण निधन हो जाने के बाद दूसरी पत्नी टाटे ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि महादेव की बाकी पेंशन का उसे तत्काल भुगतान किया जाए.

काफी विचार विमर्श के बाद राज्य सरकार ने टाटे की ओर से 2007 और 2014 के बीच दी गई चार अर्जियों को खारिज कर दिया था. उसके बाद टाटे ने 2019 में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था. उनकी दलील थी कि वह महादेव के तीन बच्चों की मां है और समाज में इस शादी के बारे में पता है इसलिए वह पेंशन पाने की हकदार है, खासकर पहली पत्नी के मर जाने के बाद.

अदालत ने उच्चतम न्यायालय के विभिन्न फैसलों का हवाला दिया था जिसमें इसने कहा था कि हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत जब तक पहली शादी को कानूनी तौर पर खत्म नहीं किया जाता है, तब तक दूसरी शादी वैध नहीं होती.

पढ़ें- विधवा पुत्री स्वतंत्रता सैनिक पेंशन योजना के तहत आश्रित पेंशन की हकदार : हाईकोर्ट

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता को पेंशन न देने का राज्य सरकार का फैसला सही था. राज्य सरकार ने कहा था कि केवल कानूनी तौर पर वैध पत्नी ही पेंशन की हकदार है. इसके साथ ही अदालत ने याचिका खारिज कर दी.

(पीटीआई-भाषा)

मुंबई : बम्बई उच्च न्यायालय ( Bombay High Court ) ने बुधवार को कहा कि दूसरी पत्नी अपने मृतक पति की पेंशन की हकदार नहीं हो सकती है, यदि पहली शादी को कानूनी तौर पर खत्म किए बिना ही यह (दूसरी) शादी की गई हो.

न्यायमूर्ति एस जे कठवल्ला और न्यायमूर्ति जाधव की खंडपाीठ ने सोलापुर निवासी शामल टाटे की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने पेंशन का लाभ देने से सरकार के इनकार को चुनौती दी थी.

उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार, टाटे के पति महादेव सोलापुर जिला कलेक्टर कार्यालय में चपरासी पद पर कार्यरत थे और उनका निधन 1996 में हो गया. महादेव ने दो शादियां की थीं.

महादेव की पहली पत्नी का कैंसर के कारण निधन हो जाने के बाद दूसरी पत्नी टाटे ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि महादेव की बाकी पेंशन का उसे तत्काल भुगतान किया जाए.

काफी विचार विमर्श के बाद राज्य सरकार ने टाटे की ओर से 2007 और 2014 के बीच दी गई चार अर्जियों को खारिज कर दिया था. उसके बाद टाटे ने 2019 में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था. उनकी दलील थी कि वह महादेव के तीन बच्चों की मां है और समाज में इस शादी के बारे में पता है इसलिए वह पेंशन पाने की हकदार है, खासकर पहली पत्नी के मर जाने के बाद.

अदालत ने उच्चतम न्यायालय के विभिन्न फैसलों का हवाला दिया था जिसमें इसने कहा था कि हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत जब तक पहली शादी को कानूनी तौर पर खत्म नहीं किया जाता है, तब तक दूसरी शादी वैध नहीं होती.

पढ़ें- विधवा पुत्री स्वतंत्रता सैनिक पेंशन योजना के तहत आश्रित पेंशन की हकदार : हाईकोर्ट

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता को पेंशन न देने का राज्य सरकार का फैसला सही था. राज्य सरकार ने कहा था कि केवल कानूनी तौर पर वैध पत्नी ही पेंशन की हकदार है. इसके साथ ही अदालत ने याचिका खारिज कर दी.

(पीटीआई-भाषा)

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