नई दिल्ली : नीती आयोग के सदस्य (कृषि) रमेश चंद ने एक साक्षात्कार में कहा कि अभी सब्सिडी, मूल्य और प्रौद्योगिकी पर भारत की नीति बहुत ज्यादा चावल, गेहूं और गन्ने के पक्ष में झुकी हुई है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि देश में खरीद और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर नीतियों को दलहनों के पक्ष में बनाया जाना चाहिए.
नीती आयोग के सदस्य ने कहा कि ग्रामीण इलाकों में कोविड-19 संक्रमण मई में फैलना शुरू हुआ था. मई में कृषि गतिविधियां काफी सीमित रहती हैं. विशेष रूप से कृषि जमीन से जुड़ी गतिविधियां. उन्होंने कहा कि मई में किसी फसल की बुवाई और कटाई नहीं होती. सिर्फ कुछ सब्जियों तथा ऑफ सीजन के फसलों की खेती होती है.
चंद ने कहा कि मार्च के महीने या अप्रैल के मध्य तक कृषि गतिविधियां चरम पर होती हैं. उसके बाद इनमें कमी आती है. मानसून के आगमन के साथ ये गतिविधियां फिर जोर पकड़ती हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे में यदि मई से जून के मध्य तक श्रमिकों की उपलब्धता कम भी रहती है, तो इससे कृषि क्षेत्र पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला.
यह पूछे जाने पर कि भारत अभी तक दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर क्यों नहीं बन पाया है, चंद ने कहा कि सिंचाई के तहत दलहन क्षेत्र बढ़ाने की जरूरत है. इससे उत्पादन और मूल्य स्थिरता के मोर्चे पर काफी बदलाव आएगा.
उन्होंने कहा कि भारत में हमारी सब्सिडी नीति, मूल्य नीति और प्रौद्योगिकी नीति बहुत ज्यादा चावल और गेहूं तथा गन्ने के पक्ष में झुकी हुई है. ऐसे में मेरा मानना है कि हमें अपनी खरीद तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नीति को दलहनों के अनुकूल बनाने की जरूरत है.
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कृषि क्षेत्र की वृद्धि के बारे में चंद ने कहा कि 2021-22 में क्षेत्र की वृद्धि दर तीन प्रतिशत से अधिक रहेगी. बीते वित्त वर्ष में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 3.6 प्रतिशत रही थी. वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था में 7.3 प्रतिशत की गिरावट आई थी.
(पीटीआई-भाषा)