देहरादून: मॉनसून के सीजन में बादल फटने की घटनाओं में इजाफा होता हुआ दिखाई दे रहा है. चिंता की बात यह है कि अब कुछ क्षेत्रों में बादल फटने की घटनाएं बार बार भी दिखाई दे रही हैं. वैसे ऐसी घटनाएं पहाड़ी क्षेत्रों के आसपास ही हो रही हैं. लेकिन चिंता की बात यह है कि कई बार कुछ जगहों पर इससे नुकसान काफी ज्यादा हो रहा है. खास बात यह है कि मौजूदा स्थितियों के पीछे के कारणों को जानने के लिए अब वैज्ञानिकों की टीम भी जुट गई हैं, ताकि कुछ चिन्हित क्षेत्रों में बार बार बादल फटने की घटनाओं की वजह को जाना जा सके.
उत्तराखंड में बढ़ीं बादल फटने की घटनाएं: उत्तराखंड के पहाड़ी जनपदों में अक्सर बादल फटने की घटनाएं सामने आती रहती हैं. हालांकि मैदानी जिलों में भी कई बार बादल फटने की घटनाएं रिकॉर्ड की गई हैं. लेकिन अधिकतर मामले पहाड़ी क्षेत्रों से ही सामने आते हैं. हाल ही में देहरादून के माल देवता क्षेत्र में बादल फटा. इस घटना के रिकॉर्ड होने के बाद न केवल सरकार बल्कि वैज्ञानिकों के लिए भी एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है. सवाल यह कि आखिरकार माल देवता क्षेत्र में बार बार बादल फटने की घटनाएं क्यों हो रही हैं. पहाड़ी जिलों के कई क्षेत्रों में अक्सर मूसलाधार बारिश का प्रकोप क्यों दिखाई दे रहा है. इन सवालों का जवाब अध्ययन के तौर पर तो वैज्ञानिकों के पास अभी नहीं है, लेकिन पर्यावरणविद एसपी सती कहते हैं कि पिछले कुछ समय से यह रिकॉर्ड किया गया है कि उत्तराखंड के पहाड़ी जनपदों में बादल फटने की घटनाएं बढ़ी हैं.
बादल फटने का कारण ग्लोबल वार्मिंग: यही नहीं कुछ निश्चित जगहों पर बार बार बादल फटने की घटनाएं भी रिकॉर्ड की गई हैं. उनका कहना है कि इसके लिए ग्लोबल वार्मिंग जिम्मेदार है. पर्यावरण में बदलाव ने ऐसी घटनाओं में इजाफा किया है. विभिन्न अध्ययन यह बताते हैं कि आने वाले दिनों में भी इससे दिक्कतें बढ़ती हुई दिखाई देंगी. हालांकि इससे हो रहे ज्यादा नुकसान के लिए वह इंसानों को ही जिम्मेदार बताते हैं.
बादल फटने का कारण: बादल फटने की घटना वैज्ञानिक तौर पर 1 घंटे के भीतर 10 सेंटीमीटर तक एक ही जगह पर बारिश रिकॉर्ड करने के रूप में देखी जाती है. यानी किसी जगह पर थोड़े ही समय में सैकड़ों गैलन पानी बरसने को ही बादल फटना कहते हैं. ऐसी ही मूसलाधार बारिश इन दिनों पहाड़ी जनपदों में दिखाई दे रही है. इसके पीछे वजह यह है कि जब एक ही जगह पर ज्यादा नमी वाले बादल एकत्रित हो जाते हैं और गर्म हवा से वह संपर्क में आते हैं, तो यह नमी एक साथ पानी के रूप में एक ही जगह पर बरसने लगती है. इसे ही बादल फटना कहते हैं. इससे बाढ़ जैसे हालात भी बन जाते हैं.
कुछ जगहों पर बार बार फट रहे बादल: परेशानी की बात यह है कि बादल फटने की घटनाओं में इजाफा होने के साथ कुछ ऐसे क्षेत्र भी विकसित हो रहे हैं, जहां बार बार बादल फटने की घटनाएं हो रही हैं. इससे बहुत ज्यादा नुकसान हो रहा है. देहरादून का माल देवता क्षेत्र भी इन्हीं में से एक है, जहां हर मॉनसून सीजन में कई बार बादल फटने की घटनाएं देखी जा रही हैं. इसी बात की चिंता लिए सरकार ने भी अब ऐसे चिन्हित स्थान और घटनाओं का अध्ययन करने के निर्देश वैज्ञानिकों को दिए हैं.
बादल फटने का कारण जानने में जुटे वैज्ञानिक: वैज्ञानिकों की तरफ से आपदा प्रबंधन विभाग से जुड़े अधिकारी और वैज्ञानिकों के साथ वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक भी बादल फटने की इन घटनाओं की मॉनिटरिंग करने के साथ इसके अध्ययन का काम शुरू कर चुके हैं. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कहते हैं कि उत्तराखंड में ऐसी घटनाओं को देखते हुए आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए केंद्र बनाने की कोशिशें की जा रही हैं. वहीं पर्यावरणविदों के साथ ही वाडिया के वैज्ञानिक भी ऐसी घटनाओं को लेकर अध्ययन करने में जुट गए हैं, ताकि इसके पीछे की वजह को जानते हुए उचित प्रबंधन किए जा सकें.
मैदान के सापेक्ष पहाड़ में बादल फटने से ज्यादा नुकसान: बादल फटने की घटनाएं वैसे तो पहले भी होती थीं और मैदानी जिलों में भी कई बार ऐसी घटनाएं होती रही हैं. लेकिन कुछ जगहों पर इसका नुकसान काफी ज्यादा होता है. मैदानी जिलों में बादल फटने की घटना ज्यादा प्रभाव नहीं डालती. ऐसा इसलिए क्योंकि नदियों के किनारे और विभिन्न झरनों के आसपास तमाम अतिक्रमण होने के कारण ऐसी जगह पर बादल फटने के बाद काफी ज्यादा नुकसान होता है.
ये भी पढ़ें: उत्तराखंड में पहाड़ से मैदान तक बारिश से हाहाकार, अब तक 7 की मौत, 263 सड़कें बंद
पहाड़ी क्षेत्र में नमी वाले बादल और गर्म हवाएं पहाड़ों से टकराकर जब संपर्क में आती है तो ज्यादा पानी बहता है. इस क्षेत्र में नदी का जलस्तर और नौले धारे इस कदर पानी से जलमग्न हो जाते हैं कि उसके आसपास हुए अतिक्रमण वालों क्षेत्रों में लोगों को अपनी जान तक गंवानी पड़ती है. उधर मैदानी जिलों में बेहद ज्यादा पानी होने के बावजूद भी यह पानी फैल जाता है और सड़कों पर पानी भले ही बेहद ज्यादा बहने लगे, लेकिन उसका जान माल के रूप में नुकसान कम होता है.
साल 2020 में कुल 14 बादल फटने/अतिवृष्टि की घटनाएं हुईं. जिसमें 19 लोगों की मौत हुई. इसमें करीब 250 करोड़ का नुकसान हुआ. वहीं, साल 2021 में कुल 50 बादल फटने /अतिवृष्टि की घटना हुईं. जिसमें 15 लोगों की जान गई और 70 जानवर भी मरे. करीब 300 करोड़ से ज्यादा का नुकसान प्रदेश को झेलना पड़ा.