नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि वह जिला स्तर पर अल्पसंख्यकों की घोषणा की मांग वाली याचिका पर तभी सुनवाई कर सकता है, जब राज्यों में हिंदुओं के अल्पसंख्यक दर्जे से वंचित होने का कोई ठोस मामला सामने आए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह चाहता है कि राज्य स्तर पर हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने के कुछ 'ठोस उदाहरण' दिए जाएं.
न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति रवींद्र भट की पीठ देविकानंदन ठाकुर की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इस याचिका में उन्होंने 1993 की केंद्र सरकार की उस अधिसूचना को चुनौती दी थी जिसमें मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, पारसी और जैन को राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक घोषित किया गया था. उन्होंने जिला स्तर पर अल्पसंख्यकों की घोषणा की मांग करते हुए कहा कि कई राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं और उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं दिया जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि हिंदू अल्पसंख्यक नहीं हो सकते.
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को यह साबित करने की जरूरत है कि लोग प्रभावित हैं, तभी वह मामले को आगे बढ़ा सकता है न कि अस्पष्ट स्थिति में. जस्टिस यूयू ललित ने कहा, 'इस देश में हर व्यक्ति अल्पसंख्यक हो सकता है. मैं महाराष्ट्र के बाहर अल्पसंख्यक हो सकता हूं, इसी तरह कन्नड़ बोलने वाला व्यक्ति कर्नाटक के बाहर अल्पसंख्यक हो सकता है... इसलिए अगर कोई ठोस मामला है, तो हम देखेंगे.' अदालत ने कहा, 'हम बिल्कुल आश्वस्त नहीं हैं.'
याचिकाकर्ता ने अपने मामले के लिए अतिरिक्त दस्तावेज जमा करने के लिए अदालत से समय मांगा और मामले में स्थगन की मांग की. कोर्ट ने मामले की सुनवाई 2 हफ्ते के लिए स्थगित कर दी.
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