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Same Sex Marriage : समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिलेगी या नहीं, सुप्रीम कोर्ट कल सुनाएगा फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने मई में समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी देने की मांग वाली याचिकाओं पर 10 दिन दिन तक सुनवाई की थी. शीर्ष कोर्ट मंगलवार को इन याचिकाओं पर फैसला सुनाएगा. SC to pronounce verdict, Supreme Court, same-sex marriage, verdict on same sex marriage.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 16, 2023, 7:42 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) समलैंगिक विवाह (same sex marriage) को कानूनी मंजूरी देने की मांग करने वाली कई याचिकाओं पर मंगलवार को अपना फैसला सुनाएगा. भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, एस रवींद्र भट, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 11 मई, 2023 को मामले में पक्षों को 10 दिनों तक सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था.

याचिकाकर्ताओं की ओर कई वरिष्ठ अधिवक्ता पेश हुए थे इनमें मुकुल रोहतगी, नीरज किशन कौल, ए एम सिंघवी, मेनका गुरुस्वामी, के वी विश्वनाथन (अब एससी जज के रूप में पदोन्नत), आनंद ग्रोवर और सौरभ किरपाल शामिल थे. मामले में 20 से अधिक याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील ने बहस की. याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि समलैंगिक विवाह को मान्यता न देना समानता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और गरिमा के अधिकारों का उल्लंघन है.

मई में, शीर्ष अदालत ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के मुद्दे और याचिकाओं से उत्पन्न कानूनी और सामाजिक सवालों पर विचार करने के लिए मैराथन सुनवाई की थी. केंद्र ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि याचिकाकर्ताओं की दलील को अनुमति देने से व्यक्तिगत कानूनों के क्षेत्र में तबाही मच जाएगी. केंद्र सरकार ने इस बात पर भी जोर दिया कि इस विषय को विधायिका द्वारा ही संभाला जा सकता है क्योंकि इसके व्यापक प्रभाव होंगे.

केंद्र सरकार ने अदालत के समक्ष दलील दी कि राजस्थान, आंध्र प्रदेश और असम ने समलैंगिक विवाह के लिए कानूनी मंजूरी की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं की दलील का विरोध किया है.

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि वे समलैंगिक विवाह के लिए कानूनी मान्यता चाहते हैं और अदालत से विशेष विवाह अधिनियम (एसएमए) 1954 के प्रावधानों की दोबारा व्याख्या करने के लिए कहा था.

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि उनके संघों को गरिमा प्रदान करने के लिए एसएमए के तहत समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी जा सकती है, और शीर्ष अदालत को समुदाय की सामाजिक सुरक्षा और अन्य कल्याणकारी लाभों तक पहुंच के लिए उचित निर्देश भी पारित करना चाहिए.

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याचिकाकर्ताओं की ओर कई वरिष्ठ अधिवक्ता पेश हुए थे इनमें मुकुल रोहतगी, नीरज किशन कौल, ए एम सिंघवी, मेनका गुरुस्वामी, के वी विश्वनाथन (अब एससी जज के रूप में पदोन्नत), आनंद ग्रोवर और सौरभ किरपाल शामिल थे. मामले में 20 से अधिक याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील ने बहस की. याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि समलैंगिक विवाह को मान्यता न देना समानता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और गरिमा के अधिकारों का उल्लंघन है.

मई में, शीर्ष अदालत ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के मुद्दे और याचिकाओं से उत्पन्न कानूनी और सामाजिक सवालों पर विचार करने के लिए मैराथन सुनवाई की थी. केंद्र ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि याचिकाकर्ताओं की दलील को अनुमति देने से व्यक्तिगत कानूनों के क्षेत्र में तबाही मच जाएगी. केंद्र सरकार ने इस बात पर भी जोर दिया कि इस विषय को विधायिका द्वारा ही संभाला जा सकता है क्योंकि इसके व्यापक प्रभाव होंगे.

केंद्र सरकार ने अदालत के समक्ष दलील दी कि राजस्थान, आंध्र प्रदेश और असम ने समलैंगिक विवाह के लिए कानूनी मंजूरी की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं की दलील का विरोध किया है.

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि वे समलैंगिक विवाह के लिए कानूनी मान्यता चाहते हैं और अदालत से विशेष विवाह अधिनियम (एसएमए) 1954 के प्रावधानों की दोबारा व्याख्या करने के लिए कहा था.

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि उनके संघों को गरिमा प्रदान करने के लिए एसएमए के तहत समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी जा सकती है, और शीर्ष अदालत को समुदाय की सामाजिक सुरक्षा और अन्य कल्याणकारी लाभों तक पहुंच के लिए उचित निर्देश भी पारित करना चाहिए.

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