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महामारी के दौरान अनाथ हुए सभी बच्चों को मिलेगा सरकारी योजनाओं का लाभ - ORPHAN CHILDREN

उच्चतम न्यायालय ((Supreme Court)) ने कहा कि कोविड-19 के चलते अपने माता-पिता को गंवा चुके बच्चों की पहचान में अब और विलंब बर्दाश्त नहीं है. साथ ही महत्वपूर्ण टिप्पणी की कि महामारी के दौरान अनाथ हुए सभी बच्चों को विभिन्न सरकारी योजनाओं (government schemes) का लाभ दिया जाएगा, न कि केवल उन बच्चों को जिनके माता-पिता की मृत्यु कोविड 19 के कारण हुई है. पढ़ें पूरी खबर.

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Jul 27, 2021, 6:45 PM IST

नई दिल्ली : कोरोना महामारी के दौरान अनाथ हुए बच्चों को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महामारी के दौरान अनाथ हुए सभी बच्चों को विभिन्न सरकारी योजनाओं (government schemes) का लाभ दिया जाएगा, न कि केवल उन बच्चों को जिनके माता-पिता की मृत्यु कोविड 19 के कारण हुई है. पीएम केयर्स (PM Cares) सहित विभिन्न योजनाओं पर चर्चा की जा रही है. इसमें कहा गया कि बच्चों की देखभाल करना राज्यों का दायित्व है चाहें कोविड हो या न हो.

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव ( Nageswara Rao) और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस (Aniruddha Bose) की खंडपीठ बाल संरक्षण गृहों में कोविड 19 से संबंधित एक मामले की सुनवाई कर रही थी. अदालत के समक्ष अनाथ बच्चों की पहचान, उनकी शिक्षा, उन्हें लाभान्वित करने वाली योजनाओं आदि पर चर्चा हुई.

अनाथ बच्चों की पहचान में और विलंब बर्दाश्त नहीं

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कोविड-19 के चलते अपने माता-पिता को गंवा चुके बच्चों की पहचान में अब और विलंब बर्दाश्त नहीं है. इसके साथ ही न्यायालय ने राज्य सरकारों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने और मार्च, 2020 के बाद अनाथ हुए बच्चों की संख्या का ब्योरा देने का निर्देश दिया.

पीठ ने जिलाधिकारियों को अनाथों की पहचान के लिए जिला बाल संरक्षण अधिकारियों को पुलिस, नागरिक समाज, ग्राम पंचायतों, आंगनवाडी एवं आशाकर्मियों की मदद लेने के लिये जरूरी दिशानिर्देश जारी करने का निर्देश दिया.

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह किशोर न्याय (बाल देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम एवं नियमावली में उपलब्ध प्रणालियों के अतिरिक्त होगा. पीठ ने कहा, 'मार्च, 2020 के बाद जिन बच्चों ने अपने माता-पिता गंवाये हैं, उनकी पहचान में अब और विलंब बर्दाश्त नहीं है.'

पीठ ने कहा कि जिलाधिकारियों को राष्ट्रीय बाल अधिकार सुरक्षा आयोग के बाल स्वराज पेार्टल पर सूचनाएं लगातार अपलोड करने का निर्देश दिया जाता है. पीठ ने यह भी कहा कि बाल कल्याण समितियों को इस अधिनियम के तहत निर्धारित समय सीमा में जांच पूरी करने एवं अनाथों को सहायता एवं पुनर्वास प्रदान करने का निर्देश दिया जाता है.

पीठ न कहा, 'सभी राज्य सरकारों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को मार्च, 2020 के बाद अनाथ हुए बच्चों की संख्या का ब्योरा देते हुए स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया जाता है. उसमें बच्चों की संख्या और राज्य सरकारों द्वारा उनतक पहुंचाये गये योजनाओं का लाभ का ब्योरा आदि हो.'

शिक्षा के मामले में ये दिए आदेश

शीर्ष अदालत ने राज्यों को समेकित बाल विकास सेवाएं योजना के तहत जरूरतमंद अनाथ बच्चों को दी गई 2000 रुपये की मौद्रिक सहायता का विवरण पेश करने का भी निर्देश दिया. न्यायालय ने ऐसे बच्चों की शिक्षा के संदर्भ में राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि अनाथ बच्चे जहां भी -- सरकारी या निजी विद्यालय में पढ़ रहे हों, इस अकादिमक वर्ष में वहीं उनकी पढ़ाई लिखाई जारी रहे, तथा किसी मुश्किल की स्थिति में शिक्षा के अधिकार कानून के तहत समीप के विद्यालय में उसका दाखिला किया जाए.

बंगाल को लगाई फटकार, दी ये चेतावनी

कोर्ट ने कम संख्या में डेटा देने के लिए पश्चिम बंगाल, पंजाब और जम्मू-कश्मीर राज्य की खिंचाई की. अदालत ने कहा कि वह इस पर विश्वास नहीं करती है. पश्चिम बंगाल ने दलील दी कि उसे नहीं पता कि एनसीपीसीआर किस आधार पर वसूली कर रहा है. इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए, अदालत ने कहा कि यह कोई राजनीतिक मामला नहीं है और राज्य को उस स्थिति को समझना चाहिए जहां अनाथों को उनके खुद के जिम्मे छोड़ दिया जाता है. कोर्ट ने चेतावनी दी कि अगर बंगाल अगली बार बहाना बनाता है, तो वह इस मामले में एक एजेंसी को जांच करने का आदेश देगा.

पढ़ें- अस्पतालों में ज्यादा चार्ज पर सुप्रीम कोर्ट ने मांगा केंद्र से जवाब

शीर्ष अदालत ने न्याय मित्र नियुक्त किए गए वकील गौरव अग्रवाल की रिपोर्ट पर गौर करते हुए यह निर्देश दिए. न्यायालय कोविड-19 से अनाथ हुए बच्चों की पहचान के लिए स्वत: संज्ञान लेकर मामले की सुनवाई कर रहा था. कोर्ट तीन सप्ताह बाद मामले की सुनवाई करेगा तब तक अदालत ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को महामारी के दौरान अनाथ बच्चों की संख्या, सीडब्ल्यूसी से पहले पैदा हुए बच्चों की संख्या और योजनाओं का लाभ प्रदान करने वाले बच्चों की संख्या पर एक स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा.

नई दिल्ली : कोरोना महामारी के दौरान अनाथ हुए बच्चों को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महामारी के दौरान अनाथ हुए सभी बच्चों को विभिन्न सरकारी योजनाओं (government schemes) का लाभ दिया जाएगा, न कि केवल उन बच्चों को जिनके माता-पिता की मृत्यु कोविड 19 के कारण हुई है. पीएम केयर्स (PM Cares) सहित विभिन्न योजनाओं पर चर्चा की जा रही है. इसमें कहा गया कि बच्चों की देखभाल करना राज्यों का दायित्व है चाहें कोविड हो या न हो.

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव ( Nageswara Rao) और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस (Aniruddha Bose) की खंडपीठ बाल संरक्षण गृहों में कोविड 19 से संबंधित एक मामले की सुनवाई कर रही थी. अदालत के समक्ष अनाथ बच्चों की पहचान, उनकी शिक्षा, उन्हें लाभान्वित करने वाली योजनाओं आदि पर चर्चा हुई.

अनाथ बच्चों की पहचान में और विलंब बर्दाश्त नहीं

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कोविड-19 के चलते अपने माता-पिता को गंवा चुके बच्चों की पहचान में अब और विलंब बर्दाश्त नहीं है. इसके साथ ही न्यायालय ने राज्य सरकारों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने और मार्च, 2020 के बाद अनाथ हुए बच्चों की संख्या का ब्योरा देने का निर्देश दिया.

पीठ ने जिलाधिकारियों को अनाथों की पहचान के लिए जिला बाल संरक्षण अधिकारियों को पुलिस, नागरिक समाज, ग्राम पंचायतों, आंगनवाडी एवं आशाकर्मियों की मदद लेने के लिये जरूरी दिशानिर्देश जारी करने का निर्देश दिया.

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह किशोर न्याय (बाल देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम एवं नियमावली में उपलब्ध प्रणालियों के अतिरिक्त होगा. पीठ ने कहा, 'मार्च, 2020 के बाद जिन बच्चों ने अपने माता-पिता गंवाये हैं, उनकी पहचान में अब और विलंब बर्दाश्त नहीं है.'

पीठ ने कहा कि जिलाधिकारियों को राष्ट्रीय बाल अधिकार सुरक्षा आयोग के बाल स्वराज पेार्टल पर सूचनाएं लगातार अपलोड करने का निर्देश दिया जाता है. पीठ ने यह भी कहा कि बाल कल्याण समितियों को इस अधिनियम के तहत निर्धारित समय सीमा में जांच पूरी करने एवं अनाथों को सहायता एवं पुनर्वास प्रदान करने का निर्देश दिया जाता है.

पीठ न कहा, 'सभी राज्य सरकारों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को मार्च, 2020 के बाद अनाथ हुए बच्चों की संख्या का ब्योरा देते हुए स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया जाता है. उसमें बच्चों की संख्या और राज्य सरकारों द्वारा उनतक पहुंचाये गये योजनाओं का लाभ का ब्योरा आदि हो.'

शिक्षा के मामले में ये दिए आदेश

शीर्ष अदालत ने राज्यों को समेकित बाल विकास सेवाएं योजना के तहत जरूरतमंद अनाथ बच्चों को दी गई 2000 रुपये की मौद्रिक सहायता का विवरण पेश करने का भी निर्देश दिया. न्यायालय ने ऐसे बच्चों की शिक्षा के संदर्भ में राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि अनाथ बच्चे जहां भी -- सरकारी या निजी विद्यालय में पढ़ रहे हों, इस अकादिमक वर्ष में वहीं उनकी पढ़ाई लिखाई जारी रहे, तथा किसी मुश्किल की स्थिति में शिक्षा के अधिकार कानून के तहत समीप के विद्यालय में उसका दाखिला किया जाए.

बंगाल को लगाई फटकार, दी ये चेतावनी

कोर्ट ने कम संख्या में डेटा देने के लिए पश्चिम बंगाल, पंजाब और जम्मू-कश्मीर राज्य की खिंचाई की. अदालत ने कहा कि वह इस पर विश्वास नहीं करती है. पश्चिम बंगाल ने दलील दी कि उसे नहीं पता कि एनसीपीसीआर किस आधार पर वसूली कर रहा है. इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए, अदालत ने कहा कि यह कोई राजनीतिक मामला नहीं है और राज्य को उस स्थिति को समझना चाहिए जहां अनाथों को उनके खुद के जिम्मे छोड़ दिया जाता है. कोर्ट ने चेतावनी दी कि अगर बंगाल अगली बार बहाना बनाता है, तो वह इस मामले में एक एजेंसी को जांच करने का आदेश देगा.

पढ़ें- अस्पतालों में ज्यादा चार्ज पर सुप्रीम कोर्ट ने मांगा केंद्र से जवाब

शीर्ष अदालत ने न्याय मित्र नियुक्त किए गए वकील गौरव अग्रवाल की रिपोर्ट पर गौर करते हुए यह निर्देश दिए. न्यायालय कोविड-19 से अनाथ हुए बच्चों की पहचान के लिए स्वत: संज्ञान लेकर मामले की सुनवाई कर रहा था. कोर्ट तीन सप्ताह बाद मामले की सुनवाई करेगा तब तक अदालत ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को महामारी के दौरान अनाथ बच्चों की संख्या, सीडब्ल्यूसी से पहले पैदा हुए बच्चों की संख्या और योजनाओं का लाभ प्रदान करने वाले बच्चों की संख्या पर एक स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा.

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