नई दिल्ली : गुजरात के पूर्व आईपीएस अधिकारी को मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा. सुप्रीम कोर्ट ने ड्रग जब्ती मामले में पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की ओर से दायर तीन याचिकाओं को खारिज कर दिया. इसके साथ ही कोर्ट ने उनके ऊपर प्रत्येक याचिका के लिए एक-एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया. न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और राजेश बिंदल की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता बार-बार अदालतों का दरवाजा खटखटा रहा है. अदालत ने याचिकाकर्ता को कुल 3 लाख रुपये की जुर्माना राशि गुजरात उच्च न्यायालय अधिवक्ता संघ के पास जमा करने का निर्देश दिया.
भट्ट की एक याचिका में संबंधित निचली अदालत के न्यायाधीश पर मामले को गलत तरीके से निपटाने का आरोप लगाते हुए मामले की सुनवाई किसी अन्य अदालत में स्थानांतरित करने की मांग की गई है. पहले भी कई मौकों पर सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की उस याचिका को खारिज किया था जिसमें उन्होंने नशीली दवाओं की जब्ती के मामले में समयसीमा तय करने वाले गुजरात उच्च न्यायालय के निर्देश को चुनौती दी थी. उस समय उनपर 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया था.
तब भट्ट ने गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी. गुजरात उच्च न्यायालय ने उनके खिलाफ मादक पदार्थ मामले में तय समय के भीतर सुनवाई पूरी करने का निर्देश जारी किया था. जून 2019 में गुजरात की एक अदालत ने 1990 के एक अन्य हिरासत में मौत के मामले में पूर्व संजीव भट्ट को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है.
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने 10 मई को पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने हिरासत में मौत के मामले में अपनी सजा को चुनौती देते हुए गुजरात उच्च न्यायालय में दायर अपील में अतिरिक्त सबूत जोड़ने की मांग की थी. जस्टिस एमआर शाह और सीटी रविकुमार की पीठ ने संजीव भट्ट द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया था.
भट्ट के वकील ने तीन गवाहों के बयान के माध्यम से शीर्ष अदालत का रुख किया था जो डॉक्टर थे. तब अदालत ने कहा कि यह ध्यान देने की आवश्यकता है कि, उक्त गवाहों के बयान पर ट्रायल कोर्ट ने उन तीनों गवाहों से पूरी तरह से जिरह करने के बाद विचार किया था. इसमें कहा गया है कि अब अपील पर निर्णय के समय उच्च न्यायालय द्वारा 3 गवाहों की गवाही पर विचार किया जाएगा और उसकी दोबारा विवेचना की जायेगी.
शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय की ओर से पारित आदेश को पढ़ने के बाद, हमें भारत के संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत शक्तियों के प्रयोग में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता है. आदेश में कहा गया था कि उपरोक्त 3 गवाहों के बयान पर इस न्यायालय की कोई भी टिप्पणी अंततः अपील में किसी भी पक्ष के मामले को प्रभावित कर सकती है, जिस पर उच्च न्यायालय की ओर से अभी विचार किया जाना है. इसलिए, विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी जाती है.
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