नई दिल्ली। मध्यप्रदेश सरकार को धर्म परिवर्तन के नए कानून के मामले में फौरी तौर पर राहत मिलती नहीं दिखाई दे रही है. देश की सर्वोच्च अदालतन ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट निर्णय पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है. इतना ही नहीं अन्य धर्म में परिवर्तित होने से पहले 60 दिनों की पूर्व सूचना नहीं देने वालों पर भी प्रदेश सरकार कोई कठोर कार्रवाई नहीं कर पाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार की याचिका पर नोटिस जारी किया है. (MP government did not get relief in conversion case)
7 फरवरी को अंतरिम रोक पर विचार करेगा सुप्रीम कोर्टः मध्यप्रदेश सरकार के लिए आंशिक राहत की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही यह भी कहा है कि वह आगामी 7 फरवरी को अंतरिम रोक लगाने पर विचार करेगी. SG तुषार मेहता ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग की थी. सर्वोच्च न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार ने सुनवाई के दौरान कहा कि शादी या धर्मांतरण पर कोई रोक नहीं है. जिला कलेक्टर को सिर्फ सूचना दी जा सकती है, इसी पर रोक लगाई गई है. इसलिए सबी धर्मांतरण को अवैध नहीं कहा जा सकता है. हम यह तो कह सकते हैं कि सूचना दी जाए, लेकिन किन्हीं कारणोंवश अगर सूचना नहीं दी जाती तो दंडात्मक कार्रवाई नहीं होनी चाहिए. मध्यप्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट के उस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. जिसमें राज्य सरकार को धर्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 10 के तहत अनिवार्य रूप से अन्य धर्म अपनाने से पहले जिलाधिकारी को 60 दिनों पहले सूचना नहीं देने के लिए कोई भी कठोर कार्रवाई करने से रोक दिया गया था. (SC will consider the interim stay on February 7)
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हाईकोर्ट ने गत वर्ष राज्य सरकार पर लगाई थी रोकः इस मामले में पिछले साल नवंबर में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया था कि धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2021 में एक अनिवार्य प्रावधान है, जिसके लिए किसी भी व्यक्ति को अपना धर्म बदलने के लिए जिला कलेक्टर को पूर्व सूचना देना आवश्यक होता है. इस पर हाईकोर्ट ने अपना निर्णय देते हुए कहा था कि यह पहली नजर में असंवैधानिक है. इतना ही नहीं अदालत ने राज्य सरकार को धारा 10 के तहत इस तरह के किसी भी व्यक्ति पर मुकदमा न चलाने का निर्देश दिया था. (MP hc imposed ban on state government last year)
धारा 10 के खिलाफ हाईकोर्ट ने दो वयस्कों को दिया था संरक्षणः उक्त कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए, हाईकोर्ट की मुख्य सीट जबलपुर के दो न्यायाधीशों की पीठ, जिसमें जस्टिस सुजॉय पॉल और जस्टिस प्रकाश चंद्र गुप्ता शामिल थे, ने 14 नवंबर के अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा राहत प्रदान करने के लिए एक मजबूत प्रथम दृष्टया मामला बनाया गया है. धारा 10 के उल्लंघन के लिए दो वयस्क नागरिकों के विवाह के संबंध में उनकी इच्छा और किसी भी कठोर कार्रवाई के खिलाफ अंतरिम संरक्षण दिया जाता है. (HC given protection to 2 adults against Section 10)
क्या है धारा 10 में प्रावधानः "धारा 10 धर्मांतरण के इच्छुक नागरिक के लिए जिला मजिस्ट्रेट को इस संबंध में एक घोषणा देने के लिए अनिवार्य बनाती है. इस पर हाईकोर्ट के न्यायाधीशों ने कहा था कि हमारी राय में, इस न्यायालय के पूर्वोक्त निर्णयों के अनुसार यह असंवैधानिक है. इस कारण अगले आदेश तक, राज्य वयस्क नागरिकों पर मुकदमा नहीं चलाएगा. यदि वे अपनी इच्छा से विवाह करते हैं तो राज्य सरकार अधिनियम 21 की धारा 10 के उल्लंघन के लिए कठोर कार्रवाई नहीं करेंगी. (MP government did not get relief in conversion case)