नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली सरकार की मुख्यमंत्री घर-घर राशन योजना के खिलाफ केंद्र सरकार की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया क्योंकि यह मामला दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है और अगले सप्ताह 22 नवंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है.
27 सितंबर को दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार को उचित मूल्य की दुकानों में आपूर्ति में कटौती करने की अनुमति दी थी क्योंकि कुछ लोगों ने होम डिलीवरी का विकल्प चुना था.
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि वे ऐसे ही योजना का विरोध नहीं कर रहे हैं बल्कि यह राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के खिलाफ है जो खाद्यान्न वितरण का प्रावधान करता है. उन्होंने कहा कि सबसे पहले खाद्यान्न लाइसेंसी उचित मूल्य की दुकानों को दिया जाता है, जहां से लोग इसे लेते हैं. आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत राशन कार्ड धारकों को उचित मूल्य की दुकानों पर आवश्यक सामग्री वितरित की जाती है.
अब सरकार (दिल्ली) कहती है कि हम उचित मूल्य की दुकानों को नहीं बल्कि एजेंसी (निजी) को आपूर्ति करेंगे जो अनाज से आटा तैयार करेगी और वह आटा लाभार्थी को दिया जाएगा. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हम नहीं जानते कि कितनी राशि की आपूर्ति की जाएगी, किस गुणवत्ता की आपूर्ति की जाएगी, अगर कोई व्यक्ति नहीं है तो क्या स्थिति होगी. मेहता ने कहा, निजी एजेंसियां घर-घर बांट रही हैं, क्या गुणवत्ता, मात्रा, कोई नहीं जानता. कोई जवाबदेही नहीं है.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि रिक्शा चालक, झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले, प्रवासी आदि जैसे लोग हैं जिनके पास स्थायी पता नहीं है और इसलिए यह उचित नहीं होगा. उन्होंने कहा कि इससे वन नेशन वन कार्ड योजना भी बाधित हो सकती है.
दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने कहा कि यह योजना वैकल्पिक है और 72 लाख में से 69 लाख लोगों ने होम डिलीवरी का विकल्प चुना है. उन्होंने कहा कि अमेज़न डिलीवरी, होम डिलीवरी, शराब की डिलीवरी आदि है तो राशन वितरण में क्या समस्या है. आगे उन्होंने कहा कि वे इसके जरिए कालाबाजारी पर राेक लगाना चाहते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि यह योजना वन नेशन वन राशन कार्ड योजना के अनुकूल है और उसी बायोमेट्रिक का उपयोग कर रही है. मामले की लंबी सुनवाई के बाद अदालत ने इसे दिल्ली एचसी पर छोड़ दिया.