नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि आपराधिक मुकदमा दर्ज कर नागरिकों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला नहीं घोंटा जा सकता है. न्यायालय ने फेसबुक पोस्ट के जरिए कथित तौर पर साम्प्रदायिक वैमनस्य फैलाने के लिए पत्रकार पैट्रिशिया मुखिम के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दी.
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने मेघालय उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ मुखिम की याचिका पर सुनवाई की. मेघालय उच्च न्यायालय ने मुखिम के खिलाफ प्राथमिकी रद्द करने से इनकार कर दिया था.
जस्टिस एल नागेश्वर राव और एस रवींद्र भट की पीठ ने कहा कि मेघालय में रहने वाले गैर-आदिवासियों की सुरक्षा के लिए पत्रकार मुखिम द्वारा सोशल मीडिया पोस्ट को नफरत फैलाने वाले भाषण के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुखिम के लिखित फेसबुक पोस्ट के विश्लेषण से पता चलता है कि यह हेट स्पीच का मामला नहीं है.
पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा, हमने अपील को मंजूर कर लिया है.
मेघालय सरकार के वकील ने उच्चतम न्यायालय में पहले दावा किया था कि नाबालिग लड़कों के बीच झगड़े को साम्प्रदायिक रंग दिया गया और मुखिम के पोस्ट दिखाते हैं कि यह आदिवासी और गैर आदिवासी लोगों के बीच एक साम्प्रदायिक घटना थी.
पिछले साल 10 नवंबर को मेघालय उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने एक पारंपरिक संस्थान लॉसोहतुन दरबार शनोंग द्वारा दायर प्राथमिकी रद्द करने से इनकार कर दिया था.
मुखिम ने एक बास्केटबॉल कोर्ट में पांच लड़कों पर हमले के बाद जानलेवा हमला करने वाले लोगों की पहचान करने में नाकाम रहने के लिए फेसबुक पर लॉसोहतुन गांव की परिषद दरबार पर निशाना साधा था.
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इस मामले में 11 लोगों को पकड़ा गया और दो लोगों को गिरफ्तार किया गया.
गांव की परिषद ने पिछले साल छह जुलाई को मुखिम के फेसबुक पोस्ट के लिए उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करायी और आरोप लगाया कि उनके बयान ने साम्प्रदायिक तनाव बढ़ाया और संभवत: साम्प्रदायिक संघर्ष भड़काया.