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गुजरात सरकार पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, कहा- आपके सीएम कुछ नहीं जानते हैं - corona in gujarat

गुजरात में कोरोना से मौत मामलों में अनुग्रह राशि (Compensation ) देने संबंधी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. कोर्ट ने जांच समिति गठित करने को लेकर गुजरात सरकार की खिंचाई की. कोर्ट ने कहा कि यह प्रक्रिया पूरी होने में क्या काफी समय लगेगा. कुछ फर्जी दावे आए हैं इसका मतलब सभी इंतजार क्यों करें. साथ ही सवाल किया कि यह किसके दिमाग की उपज है.

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Nov 22, 2021, 6:26 PM IST

Updated : Nov 22, 2021, 9:00 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को कोविड के कारण मरने वालों के परिजनों को अनुग्रह राशि के वितरण के लिए एक जांच समिति गठित करने के लिए गुजरात सरकार की खिंचाई की.

शीर्ष कोर्ट ने कहा कि उसने कभी जांच समिति गठित करने का आदेश नहीं दिया था ऐसा करने से पूरी प्रक्रिया में देरी होगी. कोर्ट ने कहा कि ' जांच समिति से प्रमाण पत्र प्राप्त करने में क्या एक साल का समय लगेगा. ये कहा जाता है कि अस्पताल से प्रमाण पत्र के साथ आओ.' कोर्ट ने सवाल उठाया कि कौन सा अस्पताल प्रमाण पत्र दे रहा है?

न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बीवी नागरथ की पीठ गौरव बंसल द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी. बंसल ने कोविड 19 मौतों के लिए अनुग्रह राशि के वितरण की मांग संबंधी याचिका दायर की है.

यह किसके दिमाग की उपज है?

पिछली सुनवाई में अदालत ने राज्य को यह कहते हुए फटकार लगाई थी कि वह अदालत के निर्देशों तक पहुंचने की कोशिश कर रही है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने राज्य के लिए अपील करते हुए आज अदालत को जानकारी दी कि अब एक संशोधित प्रस्ताव जारी किया गया है. मेहता ने जोर देकर कहा कि संशोधित प्रस्ताव में भी कुछ बदलाव की जरूरत है. इस पर अदालत ने कहा कि किसने पहली अधिसूचना जारी की? किसी को तो पहली अधिसूचना की जिम्मेदारी लेनी चाहिए. कोर्ट ने सवाल किया कि 'आपने ऐसा मसौदा तैयार करने के लिए कहा 'किसने इसे मंजूरी दी? यह किसके दिमाग की उपज है?'
अतिरिक्त मुख्य सचिव आईएएस मनोज अग्रवाल ने अदालत को बताया कि मसौदा विभिन्न अधिकारियों के माध्यम से जाता है और शीर्ष पर सक्षम प्राधिकारी द्वारा अंतिम अनुमोदन दिया जाता है.

इस पर जस्टिस शाह ने पूछा 'सक्षम प्राधिकारी कौन है? उन्होंने कहा कि सक्षम प्राधिकारी मुख्यमंत्री हैं. पीठ ने कहा, 'आपके मुख्यमंत्री कुछ भी नहीं जानते! श्रीमान सचिव, आप किसलिए हैं?' यदि यह आपके दिमाग का प्रयोग है, तो आप कुछ भी नहीं जानते हैं क्या आप अंग्रेजी जानते हैं? क्या आप हमारे आदेश को समझते हैं?' अदालत ने कहा कि यह मामले को विलंबित करने और गड़बड़ाने का सिर्फ एक नौकरशाही प्रयास है.

सिर्फ कुछ दावे फर्जी हैं इसके लिए सभी इंतजार क्यों करें?

कोर्ट ने कहा कि सरकार के आंकड़ों के अनुसार ही 10,000 लोग मारे गए हैं और सिर्फ इसलिए कि कुछ दावे फर्जी हैं इसका मतलब यह नहीं है कि वास्तविक लोगों को इंतजार करना होगा. कोर्ट ने सवाल किया कि जब मृत्यु प्रमाण पत्र विभाग द्वारा ही जारी किया जाता है और यह कैसे जाली हो सकता है. एसजी मेहता ने जवाब देते हुए कहा कि ये जाली नहीं हैं बल्कि आरटी पीसीआर टेस्ट हैं.

एसजी मेहता ने कहा कि इस बार वह खुद अधिकारियों के साथ बैठकर मामले की जांच करेंगे. कोर्ट ने 10,000 लोगों को मुआवजे की स्थिति के बारे में भी जानकारी मांगी.

लोकपाल नियुक्त करने की दी चेतावनी
साथ ही चेतावनी दी कि वह मुआवजे के लिए कानूनी सेवा प्राधिकरण के सदस्यों को लोकपाल के रूप में नियुक्त करेगा जैसे उसने गुजरात भूकंप के दौरान किया था. इसने गुजरात सरकार को उन लोगों को 50,000 की अनुग्रह राशि देने का निर्देश दिया, जिनका कम से कम विवरण सरकार के पास है. इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार को भी निर्देश दिया कि अनुग्रह राशि के संबंध में 29 नवंबर तक विवरण प्रस्तुत करे.

पढ़ें- सुप्रीम कोर्ट का आदेश : दलित छात्र को आईआईटी बॉम्बे में मिलेगी सीट, जानिए पूरा मामला

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को कोविड के कारण मरने वालों के परिजनों को अनुग्रह राशि के वितरण के लिए एक जांच समिति गठित करने के लिए गुजरात सरकार की खिंचाई की.

शीर्ष कोर्ट ने कहा कि उसने कभी जांच समिति गठित करने का आदेश नहीं दिया था ऐसा करने से पूरी प्रक्रिया में देरी होगी. कोर्ट ने कहा कि ' जांच समिति से प्रमाण पत्र प्राप्त करने में क्या एक साल का समय लगेगा. ये कहा जाता है कि अस्पताल से प्रमाण पत्र के साथ आओ.' कोर्ट ने सवाल उठाया कि कौन सा अस्पताल प्रमाण पत्र दे रहा है?

न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बीवी नागरथ की पीठ गौरव बंसल द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी. बंसल ने कोविड 19 मौतों के लिए अनुग्रह राशि के वितरण की मांग संबंधी याचिका दायर की है.

यह किसके दिमाग की उपज है?

पिछली सुनवाई में अदालत ने राज्य को यह कहते हुए फटकार लगाई थी कि वह अदालत के निर्देशों तक पहुंचने की कोशिश कर रही है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने राज्य के लिए अपील करते हुए आज अदालत को जानकारी दी कि अब एक संशोधित प्रस्ताव जारी किया गया है. मेहता ने जोर देकर कहा कि संशोधित प्रस्ताव में भी कुछ बदलाव की जरूरत है. इस पर अदालत ने कहा कि किसने पहली अधिसूचना जारी की? किसी को तो पहली अधिसूचना की जिम्मेदारी लेनी चाहिए. कोर्ट ने सवाल किया कि 'आपने ऐसा मसौदा तैयार करने के लिए कहा 'किसने इसे मंजूरी दी? यह किसके दिमाग की उपज है?'
अतिरिक्त मुख्य सचिव आईएएस मनोज अग्रवाल ने अदालत को बताया कि मसौदा विभिन्न अधिकारियों के माध्यम से जाता है और शीर्ष पर सक्षम प्राधिकारी द्वारा अंतिम अनुमोदन दिया जाता है.

इस पर जस्टिस शाह ने पूछा 'सक्षम प्राधिकारी कौन है? उन्होंने कहा कि सक्षम प्राधिकारी मुख्यमंत्री हैं. पीठ ने कहा, 'आपके मुख्यमंत्री कुछ भी नहीं जानते! श्रीमान सचिव, आप किसलिए हैं?' यदि यह आपके दिमाग का प्रयोग है, तो आप कुछ भी नहीं जानते हैं क्या आप अंग्रेजी जानते हैं? क्या आप हमारे आदेश को समझते हैं?' अदालत ने कहा कि यह मामले को विलंबित करने और गड़बड़ाने का सिर्फ एक नौकरशाही प्रयास है.

सिर्फ कुछ दावे फर्जी हैं इसके लिए सभी इंतजार क्यों करें?

कोर्ट ने कहा कि सरकार के आंकड़ों के अनुसार ही 10,000 लोग मारे गए हैं और सिर्फ इसलिए कि कुछ दावे फर्जी हैं इसका मतलब यह नहीं है कि वास्तविक लोगों को इंतजार करना होगा. कोर्ट ने सवाल किया कि जब मृत्यु प्रमाण पत्र विभाग द्वारा ही जारी किया जाता है और यह कैसे जाली हो सकता है. एसजी मेहता ने जवाब देते हुए कहा कि ये जाली नहीं हैं बल्कि आरटी पीसीआर टेस्ट हैं.

एसजी मेहता ने कहा कि इस बार वह खुद अधिकारियों के साथ बैठकर मामले की जांच करेंगे. कोर्ट ने 10,000 लोगों को मुआवजे की स्थिति के बारे में भी जानकारी मांगी.

लोकपाल नियुक्त करने की दी चेतावनी
साथ ही चेतावनी दी कि वह मुआवजे के लिए कानूनी सेवा प्राधिकरण के सदस्यों को लोकपाल के रूप में नियुक्त करेगा जैसे उसने गुजरात भूकंप के दौरान किया था. इसने गुजरात सरकार को उन लोगों को 50,000 की अनुग्रह राशि देने का निर्देश दिया, जिनका कम से कम विवरण सरकार के पास है. इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार को भी निर्देश दिया कि अनुग्रह राशि के संबंध में 29 नवंबर तक विवरण प्रस्तुत करे.

पढ़ें- सुप्रीम कोर्ट का आदेश : दलित छात्र को आईआईटी बॉम्बे में मिलेगी सीट, जानिए पूरा मामला

Last Updated : Nov 22, 2021, 9:00 PM IST
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