नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि सिविल सेवा के सफल अभ्यर्थियों को उनकी पसंद का कैडर और नियुक्ति का स्थान पाने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि अखिल भारतीय सेवाओं के उम्मीदवार के तौर पर उन्होंने देश में कहीं भी सेवा देना स्वीकार किया है.
मंडल मामले में दिए गए ऐतिहासिक फैसले का हवाला देते हुए शीर्ष न्यायालय ने यह भी कहा कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवार को यदि संघ लोक सेवा आयोग द्वारा सामान्य श्रेणी के तहत चुनने के योग्य पाया जाता है, तो उसे 'अनारक्षित रिक्तियों में नियुक्ति दी जाएगी.'
न्यायालय ने यह टिप्पणी केरल उच्च न्यायालय के एक फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार की अपील पर की. उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में केंद्र सरकार को हिमाचल प्रदेश में पदस्थ मुस्लिम महिला आईएएस अधिकारी ए शायनामोल को उनका गृह कैडर केरल आवंटित करने को कहा था.
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया. पीठ ने यह भी कहा कि एससी, एसटी या ओबीसी वर्ग से आने वाला कोई उम्मीदवार यदि आरक्षण का लाभ नहीं लेता है, और सामान्य श्रेणी में चुना जाता है तो बाद में वह कैडर या पसंद के स्थान पर नियुक्ति पाने के लिए आरक्षण का सहारा नहीं ले सकता.
न्यायालय ने कहा कि अखिल भारतीय सेवा के उम्मीदवार के रूप में आवेदक ने देश में कहीं भी सेवा देना स्वीकार किया है. सेवा में चयनित हो जाने के बाद गृह कैडर के लिए कोशिशें शुरू हो जाती हैं. पीठ ने यह भी कहा कि कैडर आवंटन अधिकार का मामला नहीं है.