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राजस्थान : कम स्कूल फीस का भुगतान नहीं करने पर SC ने जारी किया नोटिस - फीस कम करने के बावजूद भुगतान नहीं

उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को राजस्थान के स्कूलों के प्रबंधन द्वारा छात्रों की कम की गई फीस का भुगतान न करने के खिलाफ दायर एक याचिका पर 2 सप्ताह बाद एक नोटिस जारी किया है. पढ़ें पूरी खबर...

उच्चतम न्यायालय
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Published : Sep 17, 2021, 6:32 PM IST

जयपुर : छात्रों के फीस कम करने के बावजूद भी उसका भुगतान ना करने पर राजस्थान के स्कूलों प्रबंधन ने एक याचिका दायर की थी. इस याचिका के 2 सप्ताह बाद उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को एक नोटिस जारी किया है.

दरअसल, इस साल की शुरुआत में मई में, अदालत ने राजस्थान के निजी स्कूलों को स्कूल शुल्क का 85% जमा करने और अप्रयुक्त सुविधाओं को देखते हुए 15% छोड़ने का निर्देश दिया था. इसने आदेश दिया था कि शुल्क का भुगतान न करने के कारण छात्रों को बोर्ड या कक्षाओं सहित परीक्षाओं में बैठने की अनुमति से वंचित नहीं किया जा सकता है. इसने माता-पिता को 5 अगस्त, 2021 से पहले 6 किश्तों में शुल्क जमा करने की स्वतंत्रता दी थी और स्कूलों को उपयुक्त होने पर अधिक रियायतें प्रदान करने की भी स्वतंत्रता दी गई थी.

जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस अजय रस्तोगी (Justice AM Khanwilkar and Justice Ajay Rastogi) की बेंच को राजस्थान में प्रोग्रेसिव स्कूल्स एसोसिएशन (Progressive Schools Association) और सोसाइटी ऑफ कैथोलिक एजुकेशन इंस्टीट्यूशंस (Society of Catholic education institutions) द्वारा दायर याचिकाओं की सुनवाई के दौरान कहा गया कि छात्र 85% फीस भी देने से इनकार कर रहे हैं. उनकी ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि ऐसे छात्र हैं जिन्होंने भुगतान नहीं किया है, लेकिन परीक्षा दी है वो भी कह रहे हैं कि वे भविष्य में भी भुगतान नहीं करेंगे.

न्यायमूर्ति खानविलकर ने कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित आदेश शुल्क को घटाकर 85 प्रतिशत करने का आदेश छात्रों को कभी भी शुल्क का भुगतान न करने की स्वतंत्रता देने की भावना से जारी नहीं किया गया था. आदेश में कहा गया था कि उन्हें परीक्षा देने की अनुमति दी जाए.

जे खानविलकर ने कहा, आप सामान्य निर्देश जारी कर सकते हैं कि राज्य द्वारा प्रतिनिधित्व प्राप्त किया गया था. आदेश यह नहीं कहता है कि वे कभी भुगतान नहीं करेंगे. उन्हें परीक्षा में बैठने की अनुमति से वंचित नहीं किया जाएगा, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे कभी भुगतान नहीं करेंगे.

अदालत ने अपने आदेश में कहा, यह इस अदालत द्वारा जारी निर्देश की भावना नहीं थी. इस अदालत ने शैक्षणिक वर्ष 2019-20 और उसके बाद के लिए शुल्क कम करते हुए छात्रों से आदेश में निर्दिष्ट समय के भीतर और विशेष रूप से स्कूल प्रबंधन द्वारा दी गई रियायत के संदर्भ में राशि का भुगतान करने की अपेक्षा की थी.

पढ़ें : सुप्रीम कोर्ट का राजस्थान के निजी स्कूलों को वार्षिक स्कूल फीस में 15% कटौती का निर्देश

फिलहाल अब दो हफ्ते बाद मामले की सुनवाई होगी.

जयपुर : छात्रों के फीस कम करने के बावजूद भी उसका भुगतान ना करने पर राजस्थान के स्कूलों प्रबंधन ने एक याचिका दायर की थी. इस याचिका के 2 सप्ताह बाद उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को एक नोटिस जारी किया है.

दरअसल, इस साल की शुरुआत में मई में, अदालत ने राजस्थान के निजी स्कूलों को स्कूल शुल्क का 85% जमा करने और अप्रयुक्त सुविधाओं को देखते हुए 15% छोड़ने का निर्देश दिया था. इसने आदेश दिया था कि शुल्क का भुगतान न करने के कारण छात्रों को बोर्ड या कक्षाओं सहित परीक्षाओं में बैठने की अनुमति से वंचित नहीं किया जा सकता है. इसने माता-पिता को 5 अगस्त, 2021 से पहले 6 किश्तों में शुल्क जमा करने की स्वतंत्रता दी थी और स्कूलों को उपयुक्त होने पर अधिक रियायतें प्रदान करने की भी स्वतंत्रता दी गई थी.

जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस अजय रस्तोगी (Justice AM Khanwilkar and Justice Ajay Rastogi) की बेंच को राजस्थान में प्रोग्रेसिव स्कूल्स एसोसिएशन (Progressive Schools Association) और सोसाइटी ऑफ कैथोलिक एजुकेशन इंस्टीट्यूशंस (Society of Catholic education institutions) द्वारा दायर याचिकाओं की सुनवाई के दौरान कहा गया कि छात्र 85% फीस भी देने से इनकार कर रहे हैं. उनकी ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि ऐसे छात्र हैं जिन्होंने भुगतान नहीं किया है, लेकिन परीक्षा दी है वो भी कह रहे हैं कि वे भविष्य में भी भुगतान नहीं करेंगे.

न्यायमूर्ति खानविलकर ने कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित आदेश शुल्क को घटाकर 85 प्रतिशत करने का आदेश छात्रों को कभी भी शुल्क का भुगतान न करने की स्वतंत्रता देने की भावना से जारी नहीं किया गया था. आदेश में कहा गया था कि उन्हें परीक्षा देने की अनुमति दी जाए.

जे खानविलकर ने कहा, आप सामान्य निर्देश जारी कर सकते हैं कि राज्य द्वारा प्रतिनिधित्व प्राप्त किया गया था. आदेश यह नहीं कहता है कि वे कभी भुगतान नहीं करेंगे. उन्हें परीक्षा में बैठने की अनुमति से वंचित नहीं किया जाएगा, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे कभी भुगतान नहीं करेंगे.

अदालत ने अपने आदेश में कहा, यह इस अदालत द्वारा जारी निर्देश की भावना नहीं थी. इस अदालत ने शैक्षणिक वर्ष 2019-20 और उसके बाद के लिए शुल्क कम करते हुए छात्रों से आदेश में निर्दिष्ट समय के भीतर और विशेष रूप से स्कूल प्रबंधन द्वारा दी गई रियायत के संदर्भ में राशि का भुगतान करने की अपेक्षा की थी.

पढ़ें : सुप्रीम कोर्ट का राजस्थान के निजी स्कूलों को वार्षिक स्कूल फीस में 15% कटौती का निर्देश

फिलहाल अब दो हफ्ते बाद मामले की सुनवाई होगी.

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